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Alzheimer and Parkinson disease: दिल्ली एम्स के डॉक्टर ने विकसित की नई तकनीक, बीमारी को शुरुआती स्टेज में ठीक किया जा सकता है

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Published : Apr 7, 2023, 9:20 PM IST

दिल्ली एम्स के प्रोफेसर डॉ. सरोज कुमार ने नई तकनीक की खोज की है, जो अल्जाइमर और पार्किंसंस जैसे न्यूरोडीजेनेरेटिव रोगों से लड़ रहे लाखों लोगों का जीवन बचा सकता है. इस तकनीक से बीमारी को प्राइमरी स्टेज में ही ट्रेस किया जा सकता है. अब तक ऐसा नहीं होने से हर साल हजारों लोग जिंदगी और मौत से जूझते थे.

दिल्ली एम्स के प्रोफेसर डॉ. सरोज कुमार
दिल्ली एम्स के प्रोफेसर डॉ. सरोज कुमार

नई दिल्ली: नई दिल्ली एम्स में बायोफिजिक्स विभाग के प्रोफेसर डॉ. सरोज कुमार ने एक ऐसी तकनीक का आविष्कार किया है, जिसमें अल्जाइमर और पार्किंसंस जैसे न्यूरोडीजेनेरेटिव रोगों के निदान को बदलने की क्षमता है. इस तकनीक से बीमारी के लक्षण शुरू होने से बहुत पहले ही न्यूरोडीजेनेरेटिव विकारों का पता लगाया जा सकता है. इसका इस्तेमाल बुजुर्गों में पार्किंसंस के बहुत प्रारंभिक चरण में स्क्रीनिंग के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. यह आसान, तेज और कम लागत में बीमारी के प्रमुख कारणों की जांच कर उनका पता लगा सकती है. यह तकनीक उन लोगों की पहचान कर सकती है, जो परिवर्तनों से गुजर रहे हैं और उनमें बीमारी के लक्षण विकसित हो सकते हैं.

उनका कहना है कि अल्जाइमर और पार्किंसंस जैसी न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारियों से भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में लाखों लोग प्रभावित हैं. उम्र के साथ इन बीमारियों के होने की संभावना काफी बढ़ जाती है. इनमें तंत्रिका कोशिकाएं समय के साथ अपनी क्षमताओं को खो देती हैं, जिससे मस्तिष्क में कोशिकाओं की मृत्यु हो जाती है. विशिष्ट लक्षण केवल रोग के बाद के चरणों में होते हैं. इससे बीमारी का पता लगने में देर हो जाती है.

डॉ. सरोज ने बताया कि हाल के वर्षों में हुए अध्ययनों से यह बात सामने आई है कि अल्जाइमर और पार्किंसन्स जैसे रोगों से जुड़े विशिष्ट लक्षणों के प्रकट होने से दशकों पहले मस्तिष्क में अपक्षयी परिवर्तन होने लगते हैं. इन परिवर्तनों का पता लगाकर बीमारी के लक्षणों की उत्पत्ति होने से पहले ही इसका इलाज करने की तकनीक विकसित करना एक चुनौती है.

दिल्ली एम्स के प्रोफेसर डॉ. सरोज कुमार
दिल्ली एम्स के प्रोफेसर डॉ. सरोज कुमार

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क्या है नई तकनीकः डॉ. सरोज ने एक नई विधि विकसित की है. इसे सामान्य प्रयोगशाला उपकरणों और बहुत कम संसाधनों का उपयोग करके लार और रक्त से इन कणों को अलग करने में नियोजित किया जा सकता है. इन कणों को नियमित रूप से इस्तेमाल की जाने वाली तकनीक एलिसा के उपयोग से आसानी से पहचाना जा सकता है. इस पद्धति के लिए एक पेटेंट (पेटेंट आवेदन संख्या: 202211022537) लागू किया गया है. साथ ही एक किट भी विकसित की जा रही है जिसका उपयोग अस्पतालों और डायग्नोस्टिक केंद्रों में किया जा सकता है.

इस कार्य में एम्स न्यूरोलॉजी विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. रूपा राजन ने भी सहयोग किया है. डॉ. सरोज के अनुसार, पहले लक्षणों के प्रकट होने के वर्षों पहले भी बहुत प्रारंभिक अवस्था में न्यूरोडीजेनेरेटिव रोगों के निदान में एक बड़ी प्रगति का संकेत मिलता है. यह आविष्कार बहुत ही गंभीरता के साथ आया है. उनकी टीम बुजुर्ग स्वस्थ नियंत्रणों की तुलना करते हुए अल्जाइमर और पार्किंसंस रोग में नए बायोमार्कर की तलाश कर रही थी.

इसमें उन्होंने पाया कि ये कण कुछ बुजुर्ग स्वस्थ लोगों में मौजूद हैं, जिनमें अल्जाइमर और पार्किंसन्स जैसे रोगों के कोई लक्षण नहीं हैं. आगे प्रयोग और जांच करने पर यह समझ में आया कि ये मस्तिष्क की कोशिकाओं में गिरावट के संकेत हैं, जो बीमारी की शुरुआत से पहले का संकेत हैं. अनुसंधान दल एक प्रोटोटाइप किट विकसित करने और बड़ी आबादी में इन बीमारियों की स्क्रीनिंग करने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है. यह आविष्कार उन लाखों लोगों के लिए एक सफलता हो सकती है, जिनका आने वाले वर्षों में न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारियों का इलाज किया जाएगा.

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