नई दिल्ली: राजधानी में रोहिणी इलाके से बीजेपी विधायक विजेंद्र गुप्ता ने गुरुवार को दिल्ली विधानसभा पटल पर रखी गई याचिका समिति की सिफारिशों के संबंध में गंभीर चिंता जताई. सदन में पेश की गई अंतरिम रिपोर्ट पर समिति में विपक्ष के प्रतिनिधित्व की स्पष्ट अनुपस्थिति की ओर इशारा करते हुए उन्होंने समिति में आप विधायकों के प्रभुत्व पर प्रकाश डाला.
इसमें आप विधायकों राजेश गुप्ता, अखिलेश पति त्रिपाठी, दिलीप कुमार पांडे, जय भगवान, करतार सिंह, तंवर, कुलदीप कुमार, राज कुमार ढिल्लों, सोमनाथ भारती का नाम लिया गया. इस दौरान अस्पतालों के लिए बिना टेंडर के स्वतंत्र रूप से कंप्यूटर खरीदने की समिति की सिफारिश को संबोधित करते हुए, विजेंद्र गुप्ता ने जोर देकर कहा कि इस तरह के निर्देश प्रभारी, मंत्री या कैबिनेट के अधिकार क्षेत्र में आते हैं, हाउस कमेटी के नहीं.
सिफारिश की आलोचना की: उन्होंने अंतरिम रिपोर्ट पर चर्चा करते हुए स्वास्थ्य विभाग के सचिव, वित्त विभाग के सचिव और उप सचिव सहित अधिकारियों के खिलाफ विशेषाधिकार कार्यवाही शुरू करने की समिति की सिफारिश के खिलाफ आवाज उठाई. उन्होंने कहा कि विशेषाधिकार की कार्यवाही सदन के अध्यक्ष द्वारा की जानी चाहिए.
इसके बजाया वे अनुचित तरीके से मुख्य सचिव से कार्यवाही की रिपोर्ट मांग रहे हैं. इसके अलावा उन्होंने राष्ट्रपति, गृह मंत्रालय और भारत सरकार को याचिका समिती की रिपोर्ट के आधार पर कार्य करने की सिफारिश की भी आलोचना की. विधायक विजेंद्र गुप्ता ने कहा कि इस तरह की कार्यवाही स्पष्ट रूप से समिति के अधिकार की सीमाओं का उल्लंघन करती है.
उन्होंने समिति की दूसरी अंतरिम रिपोर्ट पर टिप्पणी करते हुए जिला समाज कल्याण अधिकारी विकास पांडे के खिलाफ सख्त कार्यवाही के लिए समिति की सिफारिश पर प्रकाश डाला. साथ ही समिति के निर्णय लेने की प्रक्रिया में पारदर्शिता और खुलासे की कमी पर चिंता जताते हुए सवाल किया कि 'स्पष्ट खुलासे के बिना समिति इस निष्कर्ष पर कैसे पहुंची?' और तो और उन्होंने विशेष रूप से भारत के राष्ट्रपति को निर्देश जारी करने में समिति की अतिशयोक्ति की तीखी आलोचना की और कहा कि उनका दुस्साहस चौंकाने वाला और मनोरंजक दोनों है.
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सिफारिशें रद्द किए जाने की मांग: उन्होंने आगे कहा, लोकतंत्र में, भूमिकाओं का सीमांकन बिल्कुल स्पष्ट है. ऐसा प्रतीत होता है कि इस समिति ने दिल्ली के प्रशासन को कमजोर करने, अधिकारियों को परेशान करने और मानसिक रूप से प्रताड़ित करने के एक तरफा मिशन पर अपना दिमाग केंद्रित किया है. उनकी सिफारिशें न केवल विरोधाभासी और आत्म-विरोधी हैं, बल्कि भय का माहौल बनाने का एक सीधा प्रयास है. यह शासन नहीं है, केवल अराजकता है. समिति की सिफारिशों की आत्म-विरोधाभासी प्रकृति को देखते हुए, अब इसकी नैतिकता पर एक प्रश्न चिह्न लग गया है. उनकी कार्यवाही और सिफारिशों को रद्द कर दिया जाना चाहिए.
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