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Auto Liver Transplant: उत्‍तर भारत में पहली बार किया गया ऑटो लिवर ट्रांसप्‍लांट

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Published : Apr 14, 2023, 9:23 AM IST

Auto Liver Transplant performed for first time
Auto Liver Transplant performed for first time

दिल्ली में उत्तर भारत के पहली ऑटो लिवर ट्रांसप्‍लांट ऑपरेशन को अंजाम दिया गया. इस दौरान डॉ. विवेक विज ने ऑपरेशन की जटिलताओं के साथ अन्य चीजों के बारे में बताया.

डॉ. विवेक विज, लीवर ट्रांसप्लांट विशे्षज्ञ

नई दिल्ली: उत्‍तर भारत में पहली बार एक चुनौतीपूर्ण ऑटो लिवर ट्रांसप्‍लांट ऑपरेशन को सफलतापूर्वक किया गया. इसके तहत किर्गिस्‍तान की 35 वर्षीय महिला पर यह सर्जरी की गई. मरीज के पेट में पिछले तीन महीनों से दर्द था. फोर्टिस हॉस्पिटल के डॉ. विवेक विज के नेतृत्व में डॉक्‍टरों की टीम ने इस चुनौतीपूर्ण और जटिल सर्जरी को अंजाम दिया. यह सर्जरी करीब 8 घंटे चली. मरीज को सर्जरी के बाद 8वें दिन अस्‍पताल से छुट्टी दे दी गई.

75 प्रतिशत डैमेज था लिवर: इससे पहले मरीज की किर्गिस्‍तान में जांच की गई थी और उन्‍हें पैरासाइटिक इंफेक्‍शन एकिनोकॉकिस मल्‍टीलोक्‍युलरिस से पीड़‍ित पाया गया. इसका मतलब था कि उनके लिवर में धीरे-धीरे ट्यूमर पनप रहा था, जो लिवर को क्षतिग्रस्‍त कर रहा था. इसकी वजह से करीब 75 प्रतिशत लिवर को नुकसान पहुंच चुका था. ऐसे मामलों में लिवर ट्रांसप्‍लांट ही इलाज का एकमात्र विकल्‍प बचता है. इसके लिए मरीज का सीटी स्‍कैन किया गया, जिसमें उनके लिवर में इंफेक्‍शन और एक्‍यूट लिवर फेल होने की पुष्टि हुई. लिवर और आसपास के अन्‍य अंगों को भी को काफी नुकसान पहुंच चुका था, ऐसे में डॉक्‍टरों ने उनका ऑटो-लिवर ट्रांसप्‍लांट करने का फैसला किया.

तेजी से हुआ सुधार: इस प्रक्रिया की जानकारी देने के लिए डॉ. विवेक विज ने दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब में प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की थी. इसमें बताया गया कि सर्जरी के दौरान मरीज के क्षतिग्रस्‍त लिवर को हटाकर उसके स्‍थान पर उनके लिवर के नॉर्मल भाग को लगाया गया. सर्जरी के बाद मरीज कि स्थिति में तेजी से सुधार हुआ, जिसको देखते हुए, ऑपरेशन के 8 दिन बाद उन्‍हें छुट्टी दे दी गई. उन्‍हें किसी प्रकार की इम्‍युनोसप्रेसेंट दवाएं भी नहीं देनी पड़ीं, जो कि आमतौर पर अंग प्रत्‍यारोपण (ऑर्गेन ट्रांसप्‍लांटेशन) के मामले में जरूरी होती हैं. उनके क्षतिग्रस्‍त लिवर को हटाना काफी चुनौतीपूर्ण काम था, क्‍योंकि लिवर आसपास के अन्‍य महत्‍वपूर्ण ऊतकों, संरचनाओं से जुड़ा था और उसे हटाने पर अन्‍य महत्‍वपूर्ण अंगों को भी नुकसान पहुंचने और रक्‍तस्राव जैसे खतरे भी थे.

क्या है एकिनोकॉकिस मल्‍टीलोक्‍युलरिस: यह एक दुर्लभ किस्‍म की मेडिकल परिस्थिति है, जिसके दोबारा होने की आशंका महज 10 प्रतिशत होती है. अगर समय पर और सही तरीके से इसका इलाज न किया जाए, तो इंफेक्‍शन फेफड़ों, गुर्दों, बड़ी रक्‍तवाहिकाओं और यहां तक कि मरीज की आंतों तक भी फैलने का खतरा रहता है. एकिनोकॉकिस मल्‍टीलोक्‍युलरिस के ज्‍यादातर मामलों में इलाज के लिए लिवर ट्रांसप्‍लांट किया जाता है, लेकिन इस मामले में एक नई तकनीक यानी ऑटो लिवर ट्रांसप्‍लांट को अपनाया गया. जिसमें मरीज के लिवर के क्षतिग्रस्‍त भाग को हटाकर उनके ही लिवर के स्‍वस्‍थ भाग को उसके स्‍थान पर लगाया जाता है. मरीज के खुद के लिवर का हिस्‍सा इस्‍तेमाल करने का एक बड़ा फायदा यह हुआ कि, सर्जरी के बाद मरीज को इम्‍युनोसप्रेसेंट दवाइयां नहीं देनी पड़ी.

ऑटो लिवर ट्रांसप्‍लांट का दूसरा मामला: फोर्टिस हॉस्पिटल के जोनल डॉयरेक्टर बिदेश चंद्र पॉल ने कहा कि, यह हेल्‍थकेयर और मेडिकल साइंस की दुनिया में एक बड़ी उपलब्धि है. डॉक्‍टरों ने ऑटो-लिवर ट्रांसप्‍लांटेशन की मदद से इसे सफलतापूर्वक अंजाम दिया. यह भारत में ऑटो लिवर ट्रांसप्‍लांट का दूसरा मामला है. ऐसे मामलों में काफी अनुभव और विशेषज्ञता की आवश्‍यकता होती है. यह काफी चुनौतीपूर्ण मामला था और मरीज के लिए भी काफी जोखिमपूर्ण था. लेकिन डॉ. विवेक विज के नेतृत्‍व में डॉक्‍टरों की टीम ने सभी मानकों का ध्‍यान रखते हुए इस प्रक्रिया को सफल बनाया. हमारा हॉस्पिटल, अंग प्रत्‍यारोपण करने की विशेषता रखता है और हम अपने मरीजों की सर्वोच्‍च क्‍वालिटी की संपूर्ण देखभाल के लिए प्रतिबद्ध हैं.

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