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Unique Bank: दिल्ली में पत्तों का एक ऐसा बैंक जहां ब्याज के रूप में मिलती है खाद

'द समझ' नामक एनजीओ ने प्रोजेक्ट स्वर्णपात शुरू किया है. इसके तहत एनजीओ की टीम अलग-अलग लोगों के घरों से पत्ता इकट्ठा करते हैं और उन्हें एक पॉलिथीन बैग में भरकर रख देते हैं. इनपर समय-समय पर एनपीके का छिड़काव किया जाता है. टीम लोगों को पत्ते के बदले एख कार्ड देते हैं जिसके बदले वे खाद ले सकते हैं.

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Published : Mar 29, 2023, 5:10 PM IST

नई दिल्ली: आजकल लगभग हर किसी को गार्डनिंग करना पसंद है. कई लोग तो रोजाना घंटों बगीचे में बिताते हैं, लेकिन अक्सर देखा जाता है कि पेड़ पौधों के गिरे हुए पत्तों को लगभग हर कोई बेकार समझकर उन्हें जला या फेंक देता है. लेकिन दिल्ली में पांच युवाओं का एक समूह इन पत्तों को इकठ्ठा कर पौधों के लिए खाद बना रहा है. घर के कचरे से खाद बनाना तो आम बात है लेकिन पतझड़ के टूटे पत्तों को सार्वजनिक स्थानों से इकठ्ठा करके उनसे खाद बनाने से लोगों को पर्यावरण के प्रति प्रेरणा भी मिल रही है. हर साल यह खाद उन लोगों को दी जाती है जो पेड़ों से गिरे हुए पत्ते जमा करके संस्था को देते हैं. ऐसा करने वाले लोगों को सर्टिफिकेट दिया जाता है जिसे दिखाकर वे खाद प्राप्त कर सकेंगे. 'द समझ' नामक एनजीओ ने इसका नाम प्रोजेक्ट स्वर्णपात दिया है.

तीन साल पहले शुरू की पहल: 'द समझ' के फाउंडर आरजे रावत बताते हैं कि तीन साल पहले पांच लोगों के साथ मिलकर कनाट प्लेस, नई दिल्ली और दक्षिणी दिल्ली के क्षेत्रों से सार्वजनिक जगहों में पतझड़ के मौसम में गिरने वाले पत्तों को एकत्र करके काम शुरू किया था. धीरे-धीरे पांचों ने नेटवर्क बढ़ाया. कॉलेज के छात्रों को इससे जोड़ा. आज करीब 100 युवा दिल्ली के अलग-अलग क्षेत्रों में लोगों के पास जाकर उन्हें पत्तों को एकत्र करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं. इस समय ये युवा जिले के जंगपुरा, भोगल और आश्रम क्षेत्र में लोगों के घरों से पत्तों को इकठ्ठा कर रहे हैं.

रावत बताते हैं कि अभी से जमा किए गए पत्तों से बरसात के मौसम तक खाद बनकर तैयार हो जाएगी. इससे पौधों को अच्छा स्वास्थ्य प्रदान होगा. खेती के लिए अच्छी गुणवत्ता वाले उर्वरक प्रदान करेगा, किसानों को अच्छी आय और पत्तियों को जलाने से होेने वाले प्रदूषण को काफी हद तक कम भी किया जाएगा.

ऐसे बनाते है पत्तों से खादः अधिकांश आर्गेनिक खाद सूखे पत्तों से तैयार होती है. ऐसी खाद बाजार में असानी से उपलब्ध नही है. अगर है भी तो बहुत महंगी है. इसके लिए पत्तों को बड़ी मात्रा में एकत्र किया जाता है. इन पत्तियों को पानी के माध्यम से गीला करके कुछ दिनों के लिए पालीथीन के बैग में भरकर रख दिया जाता है. इसके बाद इन पत्तों पर समय-समय पर एनपीके (नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम) का छिड़काव किया जाता है. धीरे-धीरे पत्ते डिकंपोज हो जाते हैं. करीब एक से दो महीने के भीतर खाद बनकर तैयार हो जाती है.

ये भी पढ़ेंः Delhi Assembly में गूंजा आईपी कॉलेज का मुद्दा, AAP विधायकों ने LG का इस्तीफा मांगा

इस वर्ष से शुरू किया गया बैंक प्रोसेसः रावत बताते हैं कि पिछले साल तक वालेंटियर्स जाकर पत्तों को लोधी रोड, सीपी, नई दिल्ली, दक्षिणी दिल्ली से स्वयं एकत्र करते थे, लेकिन इस बार हमने बैंक प्रोसेस बनाया है. इसके तहत वालेंटियर्स घर-घर जाकर लोगों को जागरुक कर रहे हैं कि वह इन पत्तों को इकठ्ठा करें और हमें दें. ऐसा करने वालों को एक सर्टिफिकेट दिया जाएगा. इसे दिखाकर वह मुफ्त में खाद ले सकेगा. इसका नाम हमने प्रोजेक्ट स्वर्णपात रखा है.

ये भी पढ़ेंः Confidence Motion: विधानसभा में केजरीवाल ने विश्वास प्रस्ताव किया पेश, कही ये बात

नई दिल्ली: आजकल लगभग हर किसी को गार्डनिंग करना पसंद है. कई लोग तो रोजाना घंटों बगीचे में बिताते हैं, लेकिन अक्सर देखा जाता है कि पेड़ पौधों के गिरे हुए पत्तों को लगभग हर कोई बेकार समझकर उन्हें जला या फेंक देता है. लेकिन दिल्ली में पांच युवाओं का एक समूह इन पत्तों को इकठ्ठा कर पौधों के लिए खाद बना रहा है. घर के कचरे से खाद बनाना तो आम बात है लेकिन पतझड़ के टूटे पत्तों को सार्वजनिक स्थानों से इकठ्ठा करके उनसे खाद बनाने से लोगों को पर्यावरण के प्रति प्रेरणा भी मिल रही है. हर साल यह खाद उन लोगों को दी जाती है जो पेड़ों से गिरे हुए पत्ते जमा करके संस्था को देते हैं. ऐसा करने वाले लोगों को सर्टिफिकेट दिया जाता है जिसे दिखाकर वे खाद प्राप्त कर सकेंगे. 'द समझ' नामक एनजीओ ने इसका नाम प्रोजेक्ट स्वर्णपात दिया है.

तीन साल पहले शुरू की पहल: 'द समझ' के फाउंडर आरजे रावत बताते हैं कि तीन साल पहले पांच लोगों के साथ मिलकर कनाट प्लेस, नई दिल्ली और दक्षिणी दिल्ली के क्षेत्रों से सार्वजनिक जगहों में पतझड़ के मौसम में गिरने वाले पत्तों को एकत्र करके काम शुरू किया था. धीरे-धीरे पांचों ने नेटवर्क बढ़ाया. कॉलेज के छात्रों को इससे जोड़ा. आज करीब 100 युवा दिल्ली के अलग-अलग क्षेत्रों में लोगों के पास जाकर उन्हें पत्तों को एकत्र करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं. इस समय ये युवा जिले के जंगपुरा, भोगल और आश्रम क्षेत्र में लोगों के घरों से पत्तों को इकठ्ठा कर रहे हैं.

रावत बताते हैं कि अभी से जमा किए गए पत्तों से बरसात के मौसम तक खाद बनकर तैयार हो जाएगी. इससे पौधों को अच्छा स्वास्थ्य प्रदान होगा. खेती के लिए अच्छी गुणवत्ता वाले उर्वरक प्रदान करेगा, किसानों को अच्छी आय और पत्तियों को जलाने से होेने वाले प्रदूषण को काफी हद तक कम भी किया जाएगा.

ऐसे बनाते है पत्तों से खादः अधिकांश आर्गेनिक खाद सूखे पत्तों से तैयार होती है. ऐसी खाद बाजार में असानी से उपलब्ध नही है. अगर है भी तो बहुत महंगी है. इसके लिए पत्तों को बड़ी मात्रा में एकत्र किया जाता है. इन पत्तियों को पानी के माध्यम से गीला करके कुछ दिनों के लिए पालीथीन के बैग में भरकर रख दिया जाता है. इसके बाद इन पत्तों पर समय-समय पर एनपीके (नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम) का छिड़काव किया जाता है. धीरे-धीरे पत्ते डिकंपोज हो जाते हैं. करीब एक से दो महीने के भीतर खाद बनकर तैयार हो जाती है.

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इस वर्ष से शुरू किया गया बैंक प्रोसेसः रावत बताते हैं कि पिछले साल तक वालेंटियर्स जाकर पत्तों को लोधी रोड, सीपी, नई दिल्ली, दक्षिणी दिल्ली से स्वयं एकत्र करते थे, लेकिन इस बार हमने बैंक प्रोसेस बनाया है. इसके तहत वालेंटियर्स घर-घर जाकर लोगों को जागरुक कर रहे हैं कि वह इन पत्तों को इकठ्ठा करें और हमें दें. ऐसा करने वालों को एक सर्टिफिकेट दिया जाएगा. इसे दिखाकर वह मुफ्त में खाद ले सकेगा. इसका नाम हमने प्रोजेक्ट स्वर्णपात रखा है.

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