नई दिल्ली/गाजियाबाद: गाजियाबाद में 11 मई को एक नगर निगम, चार नगर पालिका और चार नगर पंचायत के चुनावों के लिए मतदान हुआ. जिले में मतदान का आंकड़ा 50 फ़ीसदी को भी न छू सका. नगर निगम में 41.43 फ़ीसदी मतदान हुआ. सबसे कम मतदान नगर पालिका मोदीनगर में हुआ जो कि 35 फीसदी है, जबकि सबसे अधिक मतदान नगर पंचायत पतला में हुआ जोकि 73.10 फीसदी है. नगर पालिका और नगर निगम की तुलना में नगर पंचायतों में अधिक मतदान हुआ. वरिष्ठ पत्रकार रवि अरोड़ा से समझते हैं कि आखिर गाजियाबाद में मतदान प्रतिशत कम क्यों रहा.
एलिट क्लास का रुझान कम: रवि अरोड़ा बताते हैं कि हमारे लोकतंत्र की बड़ी विडंबना है कि अशिक्षित और कम पढ़े लिखे लोगों का लोकतंत्र में विश्वास अधिक है. यह लोग बढ़-चढ़कर उत्साह के साथ मतदान करते हैं. अधिक पढ़े लिखे लोग जो कि एलिट क्लास है उनका मतदान के प्रति रुझान काफी कम होता जा रहा है. यही वजह है कि ग्रामीण इलाकों की तुलना में शहरों में वोटिंग परसेंटेज 10 से 15 फीसदी गिरावट रहती है. गाजियाबाद नगर निकाय चुनाव में भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला. जहां एक तरफ नगर पंचायतों में मतदान 70 फीसदी के पार पहुंचा. नगर पालिकाओं में 55 से फीसदी तक वोटिंग परसेंटेज रही, जबकि गाजियाबाद नगर निगम क्षेत्र में महज 41 प्रतिशत मतदान रहा. यानी कि महानगर क्षेत्र में 59 फ़ीसदी लोगों ने मतदान नहीं किया.
राजनैतिक दल भी दोषी: रवि अरोड़ा बताते हैं, जितना लोग लोकतंत्र को समझते जा रहे हैं उतनी उनकी लोकतंत्र के प्रति उदासीनता बढ़ रही है. इसके लिए राजनीतिक दल भी दोषी हैं. चुनाव जीतने के लिए तमाम दावे और वादे किए जाते हैं और चुनाव परिणाम आने के बाद उन वादों और दावों को दोहराया नहीं जाता. बाद में जनता से कह दिया जाता है की दावे और वादे तो सब जुमला थे. ऐसे में मतदाता के मन में उदासीनता आना जायज है.
चुनावी वादों को पूरा करना अहम: दिल्ली में जिस प्रकार जनता से वादे किए और चुनाव के बाद उन्हें पूरा किया गया उससे कहीं ना कहीं लोगों में लोकतंत्र के प्रति विश्वास बढ़ा है और कहीं ना कहीं इसका परिणाम चुनावों के दौरान वोटिंग परसेंटेज में देखने को मिला है. मतदान प्रतिशत पहले से बेहतर हुआ है. वोटिंग परसेंटेज को बढ़ाने में मुख्य भूमिका राजनीतिक दलों की है, जबकि इसमें सहयोगी की भूमिका प्रशासन की है. चुनाव के दिन का नायक आम आदमी होता है. ऐसे में आम आदमी की भूमिका भी अहम है.
दिल्ली काम करने जाते हैं लोग: गाजियाबाद में इंदिरापुरम, राजनगर एक्सटेंशन, कौशांबी, वैशाली और वसुंधरा आदि सीमांत के इलाकों में 70 से 80 फ़ीसदी लोग नौकरी करने दिल्ली जाते हैं. जिन लोगों में मतदान को लेकर उत्साह है वह लोग तो मतदान करते हैं, लेकिन अधिकतर लोग मतदान करने के लिए छुट्टी लेना जरूरी नहीं समझते. इन तमाम लोगों में से एक बड़ा तबका ऐसा है, जिन्होंने गाजियाबाद का मेन शहर तक नहीं देखा है. अधिकतर लोग यह नहीं जानते कि गाजियाबाद का घंटाघर कहां है.
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