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चोटों के बावजूद ओलंपिक में क्वालीफाई करने के लिए प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया: भवानी देवी

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Published : Mar 18, 2021, 12:59 PM IST

bhavani devi on qualifying in tokyo olympics
bhavani devi on qualifying in tokyo olympics

भवानी ने वर्चुअल प्रेस कांफ्रेंस के दौरान कहा, "ये मेरे लिए पहली बार था तो मैंने दोगुने प्रयास किए. मैं नहीं जानती थी कि सभी टूर्नामेंट में भाग लेना सही था या नहीं. मैं किसी भी चीज को छोड़ना नहीं चाहती थी."

नई दिल्ली: ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने वाली पहली भारतीय तलवारबाज सीए भवानी देवी ने बुधवार को कहा कि वो टोक्यो खेलों के लिए क्वालीफाई करने के लिए इतनी बेताब थीं कि उन्होंने अपनी रैंकिंग में सुधार करने के लिए चोटों के बावजूद टूर्नामेंटों में हिस्सा लिया.

भवानी देवी ने समायोजित अधिकारिक रैंकिंग (AOR) प्रणाली के जरिए टोक्यो खेलों का टिकट कटाया. वो 2016 रियो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने में विफल रही थीं. उन्होंने कहा कि वो नहीं जानती थी कि टूर्नामेंट का चयन किस तरह से करे इसलिए उसने सभी प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया.

भवानी ने वर्चुअल प्रेस कांफ्रेंस के दौरान कहा, "ये मेरे लिए पहली बार था तो मैंने दोगुने प्रयास किए. मैं नहीं जानती थी कि सभी टूर्नामेंट में भाग लेना सही था या नहीं. मैं किसी भी चीज को छोड़ना नहीं चाहती थी."

उन्होंने कहा, "इसलिए मैंने अपना सर्वश्रेष्ठ करने की कोशिश की और सभी टूर्नामेंट में शिरकत की. यहां तक अगर मुझे थोड़ी चोट भी होती तो मैंने स्पर्धाओं में भाग लेने की कोशिश की. मैं कुछ अंक हासिल करने के लिए ऐसा करना चाहती थी और एशियाई क्षेत्र क्वालीफिकेशन में अपनी रैंकिंग लाना चाहती थी. इन सभी प्रयासों और त्याग ने मुझे अपना सपना पूरा करने में मदद की."

चेन्नई की 27 वर्षीय तलवारबाज को लगता है कि भारतीय फेंसर (तलवारबाजों) को ज्यादा अनुभवी यूरोपीय प्रतिद्वंद्वियों से भिड़ने के लिए अतिरिक्त प्रयास करने होंगे क्योंकि ये खेल यहां नया है और अब भी पैर जमा रहा है.

उन्होंने कहा, "मुझे इस खेल को चुनने के फैसले के संबंध में कभी भी कोई संदेह नहीं था, भले ही नतीजे अच्छे रहे या खराब, मैंने अपना सर्वश्रेष्ठ किया. मैंने हमेशा खुद को सुधारने का प्रयास किया और टूर्नामेंट में बेहतर किया."

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भवानी ने कहा, "भारत में तलवारबाजी क्योंकि नया खेल है तो ये अभी आगे बढ़ रहा है, लेकिन इटली या किसी अन्य देश में वो 100 से ज्यादा वर्षों से इसे खेल रहे हैं. इसलिए हमें उस स्तर तक पहुंचने के लिए अन्य देशों से दोगुनी मेहनत करनी होगी."

उन्होंने कहा, "इसलिए मैंने हमेशा कड़ी मेहनत की, जैसे मैं दिन में तीन सत्र में अभ्यास करती और शनिवार को भी ट्रेनिंग करती इसलिए मैं यहां तक पहुंचने में सफल रही."

भवानी ने कहा, "अगर मैं ट्रेनिंग में जरा भी कमी कर देती तो मैं यहां तक नहीं पहुंच पाती. हमें तलवारबाजी में काफी पैसा खर्च करना होता है क्योंकि मुझे ज्यादा अंक जुटाने के लिए काफी सारे टूर्नामेंट में हिस्सा लेना पड़ा तो इसमें अन्य का सहयोग भी काफी अहम रहा."

शुरूआती दिनों की परेशानियों के बारे में बात करते हुए इस तलवारबाज ने उन दिनों को याद किया जब इस खेल से जुड़ने के लिए उन्होंने स्कूल में झूठ भी बोला था. उन्होंने कहा, "उन्होंने मुझसे मेरे पिता की सालाना आय पूछी थी और कहा कि तलवारबाजी बहुत मंहगा खेल है, अगर तुम गरीब परिवार से हो तो तुम इसका खर्चा नहीं उठा पाओगी. लेकिन मैंने झूठ बोला और अपने पिता की आय ज्यादा बता दी."

उन्होंने कहा, "शुरू में जब तलवार काफी महंगी होती तो हम बांस की लकड़ियों से खेला करते थे और अपनी तलवार केवल टूर्नामेंट के लिए ही इस्तेमाल करते थे क्योंकि अगर ये टूट जातीं तो हम फिर से इनका खर्चा नहीं उठा सकते थे और भारत में इन्हें खरीदना आसान नहीं है, आपको ये आयात करनी पड़ती हैं."

भारतीय तलवारबाजी संघ के अध्यक्ष राजीव मेहता भी प्रेस कांफ्रेंस में मौजूद थे, उन्होंने कहा, "हम देश भर में 50 तलवारबाजी अकादमियां खोल रहे हैं. प्रत्येक अकादमी में 20 से 30 खिलाड़ी होंगे."

उन्होंने कहा, "जिला स्तर पर भी हम 50 केंद्र खोलेंगे. खेल मंत्री ने भी हमसे 31 मार्च तक 20 करोड़ रूपए खर्च करने को कहा है तो हमें ये लक्ष्य 31 मार्च तक पूरा करना है. ये पहली बार है जब तलवारबाजी को सरकार से इतना सहयोग मिला है."

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