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मध्यवर्गीय अफगानों पर नौकरियां जाने के साथ गरीबी व भूखमरी की मार

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Published : Nov 22, 2021, 6:32 PM IST

अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे (Taliban occupation of Afghanistan) के बाद से देश के कई लोगों की नौकरियां चली गई हैं. जिंदा रहने के लिए भोजन और नकदी पाने के लिए निराश-हताश अफगान नागरिक संयुक्त राष्ट्र के विश्व खाद्य कार्यक्रम (United Nations World Food Program) में खुद को पंजीकृत कर रहे हैं.

Poverty
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काबुल : अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद मध्यवर्गीय अफगानों पर नौकरियां जाने के साथ गरीबी व भूखमरी की मार (Poverty and hunger) पड़ी है. इसी वजह से अफगान नागरिक संयुक्त राष्ट्र के विश्व खाद्य कार्यक्रम (United Nations World Food Program) में खुद को पंजीकृत कर रहे हैं.

कुछ समय पहले ही फरिश्ता सालिही और उनका परिवार बहुत अच्छे से अपनी जिंदगी बिता रहा था. उसका पति काम करता था और अच्छा वेतन पाता था. वह अपनी कई बेटियों को निजी स्कूलों में पढ़ने भेज सकती थी. लेकिन अब उसके पति की नौकरी चली गई है. पंजीकरण कराने वाले लोगों में उसका नाम भी शुमार है.

पंजीकरण की प्रक्रिया पूरी होने के बाद सालिही ने कहा कि हमने सब कुछ खो दिया. हमारे दिमाग काम नहीं कर रहे हैं. अपनी बड़ी बेटी फातिमा को उसे स्कूल से निकालना पड़ा क्योंकि उसके पास उसकी फीस भरने के पैसे नहीं हैं और अब तक तालिबान ने किशोर लड़कियों को सरकारी स्कूलों में जाने की इजाजत नहीं दी है.

अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था चरमराने के कुछ ही महीनों में, सलीही जैसे कई स्थिर, मध्यम वर्गीय परिवार हताशा में डूब गए हैं. इस बात को लेकर अनिश्चित के बादल छाए हुए हैं कि वे अपने अगले भोजन के लिए भुगतान कहां से और कैसे करेंगे.

यह एक कारण है कि संयुक्त राष्ट्र ने भूखमरी के संकट को लेकर आगाह किया है जहां 3.8 करोड़ की 22 फीसदी आबादी पहले से ही अकाल के करीब है और अन्य 36 फीसदी खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं. इसका मुख्य कारण यह है कि लोग भोजन का खर्च उठाने में सक्षम नहीं हैं.

पिछली, अमेरिका समर्थित सरकार के तहत अर्थव्यवस्था पहले से ही संकट में थी, जो अक्सर अपने कर्मचारियों को भुगतान नहीं कर पाती थी. कोरोना वायरस महामारी और एक भयानक सूखे से स्थिति और खराब हो गई थी. जिसने खाद्य कीमतों को बढ़ा दिया था. पहले से ही 2020 में, अफगानिस्तान की लगभग आधी आबादी गरीबी में जी रही थी.

फिर तालिबान द्वारा 15 अगस्त को सत्ता हथियाने के बाद अफगानिस्तान को दी जाने वाली फंडिंग को दुनिया के देशों ने बंद कर दिया जिससे देश के छोटे मध्यम वर्ग के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई. एक बार सरकारी बजट के लिए अंतरराष्ट्रीय निधि का भुगतान किया गया और इसके बिना, तालिबान मोटे तौर पर वेतन देने या सार्वजनिक सेवाएं प्रदान करने में असमर्थ रहा है.

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अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने तालिबान शासन को मान्यता नहीं दी है और चरमपंथियों से एक अधिक समावेशी सरकार बनाने और मानवाधिकारों का सम्मान करने की मांग की है.

(एपी)

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