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कमाल अतातुर्क की धर्मनिरपेक्ष सोच पर चोट है हागिया सोफिया का मस्जिद में बदलना

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Published : Jul 16, 2020, 10:00 AM IST

Updated : Jul 17, 2020, 5:01 PM IST

तुर्की के इस्तांबुल स्थित सभी धर्मों के मिलन का एक सार्वभौमिक प्रतीक रही है, जिसे तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोआन ने अब मस्जिद में तब्दील कर दिया. राष्ट्रपति के इस फैसले का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विरोध हो रहा है. वहीं 24 जुलाई से हागिया सोफिया के दरवाजे नमाजियों के लिए खोल दिए जाएंगे. बता दें कि हागिया सोफिया चर्च इस्तांबुल की एक महत्वपूर्ण दर्शनीय इमारत है, जो यूरोप और एशिया के चौराहे पर स्थित है. यह पश्चिमी और पूर्वी सभ्यताओं का प्रतीक भी मानी जाती है.

Hagia Sophia
हगिया सोफिया

तुर्की के इस्तांबुल स्थित प्रतिष्ठित हागिया सोफिया को एक मस्जिद में बदलने के तुर्की के राष्ट्रपति के फैसले का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काफी विरोध हो रहा है, क्योंकि यह निर्णय बीसवीं शताब्दी की शुरुआत में आधुनिक तुर्की के संस्थापक माने जाने वाले कमाल अतातुर्क के मूल विचार पर प्रहार करता है. पड़ोसी देश ग्रीस से लेकर संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोपीय संघ और रूस तक की सरकारों ने इस मुद्दे पर चिंता व्यक्त की और विरोध प्रदर्शित किया है. वेटिकन ने कहा कि उसे गहरी पीड़ा हुई है. यूनेस्को ने चेतावनी दी है कि इससे इमारत की विश्व विरासत पहचान संदेह के घेरे में आ सकती है और संभवतः वह इसे खो भी सकती है. इसलिए कोई भी कदम उठाने में सावधानी बरतनी चाहिए.

24 जुलाई से हागिया सोफिया के दरवाजे नमाजियों के लिए खोल दिए जाएंगे और शुक्रवार की नमाज इस इमारत के भीतर ही पढ़ी जाएगी. तुर्की की सर्वोच्च प्रशासकीय अदालत द्वारा 1934 के हागिया सोफिया को संग्रहालय में बदलने के मंत्रिमंडल के फैसले को उलट दिए जाने के बाद राष्ट्रपति रेसेप तैय्यब एर्दोआन ने 10 जुलाई को एक कानून जारी कर छठी शताब्दी के इस शानदार बीजान्टिन चर्च को मस्जिद में बदल दिया और इसे मुसलमानों की इबातात के लिए खुला घोषित कर दिया.

हागिया सोफिया चर्च इस्तांबुल की एक महत्वपूर्ण दर्शनीय इमारत है, जो यूरोप और एशिया के चौराहे पर स्थित है. यह पश्चिमी और पूर्वी सभ्यताओं का प्रतीक भी मानी जाती है. इस चर्च को ओटोमन साम्राज्य के दौरान मस्जिद में परिवर्तित कर दिया गया था और अतातुर्क के सत्ता में आने के बाद म्यूजियम में बदल दिया गया था. इसे तुर्की के सर्वधर्म समभाव के प्रतीक के रूप में दुनिया में जाना जाता है. इसके फिर से मस्जिद बना दिए जाने के विरोध में वाइट हाउस से लेकर क्रेमलिन तक विरोध हुआ. हालांकि यूरोपियन यूनियन के शामिल होने के बावजूद भारत इस विरोध से दूर रहा है.

एर्दोआन अपने आपको सऊदी अरब और ईरान की प्रतिस्पर्धा में विश्व फलक पर इस्लामिक नेता के रूप में प्रचारित कर रहे हैं. एर्दोआन पिछले एक साल से विश्व के विभिन्न पटलों पर भारत की आलोचना करते रहे हैं. उन्होंने कश्मीर से धारा 370 को हटाने से लेकर हाल के दिल्ली दंगों तक भारत की आलोचना की है. इसलिए भारत से यह अपेक्षा थी कि हागिया सोफिया को मस्जिद में बदलने के फैसले का वह विरोध करेगा.

भारत के बारे में एर्दोआन ने कहा, 'वह बड़ी जनसंख्या की वजह से अपने आप को शक्तिशाली कहता है, जो वह वास्तव में है नहीं.' दूसरी तरफ उसने पाकिस्तान को ज्यादा मात्रा में रक्षा सामग्री बेचनी शुरू कर दी और भारत की आलोचना करने में मलेशिया के सुर में सुर मिलाया है.

उस समय नई दिल्ली ने यह कह कर एर्दोआन को फटकार लगाई थी कि उसके बयान न तो इतिहास की समझ दर्शाते हैं और न ही कूटनीतिक व्यवहार की. वह बीती हुई घटनाओं को विकृत करके वतर्मान के संकुचित विचार प्रदर्शित करते हैं. एर्दोआन द्वारा एक ऐतिहासिक इमारत को एक संप्रदाय की मस्जिद में परिवर्तित करना बहुसंख्यक वाद की ओर लौटने को दर्शाता है, जो भारत सहित कई अन्य देशों में भी देखने को मिलता है. शायद इसी वजह से भारत ने चुप रहना पसंद किया है. इस देश समेत कई अन्य देशों में हागिया सोफिया जैसी इमारतों की सांस्कृतिक प्रासंगिकता और सह अस्तित्व के लिए श्रद्धा पर सवाल उठाए जा रहे हैं.

एक सदी पहले ओटोमन साम्राज्य के खलीफा के पतन पर खिलाफत आंदोलन हुआ, जिसने भारत की आज़ादी की लड़ाई को आगे ले जाने में मदद की, लेकिन तुर्की में धर्मनिरपेक्षता का ह्रास होने लगा. अब भारत सरकार वैश्विक विरोध के बावजूद चुप रहना पसंद कर रही है. उसकी चुप्पी को दो तरह से समझा जा सकता है. एक तो यह कि वह किसी दूसरे देश के धार्मिक मामले पर टिपण्णी नहीं करना चाहेगी, जिससे अपने देश की मुसलमान जनता विमुख हो जाए और अपने अंदरूनी धार्मिक मामलों, जैसे मंदिर निर्माण पर दूसरों को उसकी परीक्षा लेने का मौका मिल जाए.

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हागिया सोफिया सभी धर्मों के मिलन का एक सार्वभौमिक प्रतीक रही है. एर्दोआन ने अतातुर्क की विरासत को उलट दिया, लेकिन एक राष्ट्रीय प्रसारण में उन्होंने कहा कि हालांकि नमाज परिसर में होगी, लेकिन हागिया सोफिया, जो मूलरूप से बीजान्टिन ईसाई कैथेड्रल थी और बाद में एक तुर्क मस्जिद, दुनियाभर के सभी आगंतुकों के लिए खुली रहेगी. ओटोमन साम्राज्य की इस महान इमारत को मस्जिद में परिवर्तित करने के पीछे एर्दोआन की मंशा तुर्की को मुसलमान बहुल देश के रूप में प्रदर्शित करना है.

वह इस फैसले से देश के अंदर अपने लिए राजनैतिक समर्थन जुटाना चाहते हैं, जिसमें बिगड़ती आर्थिक परिस्थिति की वजह से कमी आई है. इसके साथ ही सऊदी अरब की प्रतिस्पर्धा में इस्लामी दुनिया में एक नेता के रूप में अपने दावे को रखना भी उनकी चाहत है. सामरिक और भौगोलिक स्थिति के कारण और पिछले एक दशक से सीरिया में चले आ रहे युद्ध की वजह से महान शक्ति प्रतियोगिता में टर्की खुद को अपरिहार्य पाता है. एर्दोआन ने उइगुर मुसलमानों के मुद्दे पर चीन से बचते हुए प्रभावी ढंग से रूस और अमेरिका दोनों को संभाले रखा है.

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तुर्की की जनसंख्या मुस्लिम बहुल है, लेकिन एक धर्मनिरपेक्ष देश के रूप में यह दुनिया का एकमात्र मुस्लिम देश है, जिसका कोई राज्य धर्म नहीं है और उसका संविधान धार्मिक स्वतंत्रता की गारंटी देता है. एरदोआन ने ईसाई जगत के सबसे बड़े चर्च को मस्जिद बना कर देश की इस्लामी पहचान को उजागर करने और ईसाई अल्पसंख्यक को उसकी जगह दिखाने की दिशा में एक कदम आगे बढ़ाया है.

तुर्की के नोबेल पुरस्कार विजेता लेखक ओरहान पामुक ने बीबीसी को बताया, 'दुर्भाग्य से इसे एक मस्जिद में बदलने से हमने दुनिया को यह संदेश दिया है कि हम अब धर्मनिरपेक्ष नहीं हैं.'

(लेखक- निलोवा रॉय चौधरी, वरिष्ठ पत्रकार, पूर्व में वाशिंगटन पोस्ट, स्टेट्समैन व हिंदुस्तान टाइम्स की विदेश संपादक)

Last Updated : Jul 17, 2020, 5:01 PM IST
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