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Afghan Crisis पर बोलीं न्यूजीलैंड की पीएम, सभी को निकालने में रहे असमर्थ

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Published : Aug 27, 2021, 8:53 PM IST

प्रधानमंत्री जैसिंडा अर्डर्न
प्रधानमंत्री जैसिंडा अर्डर्न

न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जैसिंडा अर्डर्न (Prime Minister Jacinda Ardern) ने कहा कि वह इस बात को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त नहीं है कि कितने लोग अफगानिस्तान में छूट गए है. उन्होंने कहा कि हाल के दिनों में सेना ने लोगों को तलाशने के लिए बहुत प्रयास किए हैं.

वेलिंगटन : न्यूजीलैंड का कहना है कि काबुल हवाईअड्डे के पास हुए हमलों से पहले वह अफगानिस्तान से हर उस व्यक्ति को समय पर नहीं निकाल पाया, जिसे वह निकालना चाहता था. प्रधानमंत्री जैसिंडा अर्डर्न (Prime Minister Jacinda Ardern) ने कहा कि वह अभी तक इस बात को लेकर पूरी तरह आश्वस्त नहीं है कि कितने लोग छूट गए हैं और क्या वे न्यूजीलैंड के नागरिक, निवासी या वीजा धारक थे या नहीं?

पीएम ने कहा कि न्यूजीलैंड की सेना ने हाल के दिनों में लोगों को तलाशने के लिए बहुत प्रयास किया और सैकड़ों लोगों को सुरक्षित निकालने में कामयाब रहे है.

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अर्डर्न ने कहा, हम अधिक से अधिक संख्या में जितने लोगों को वापस ला सकते थे उसके लिए भरपूर प्रयास किया गया, चाहे वे न्यूजीलैंड के नागरिक रहे या जिन्होंने न्यूजीलैंड का समर्थन किया था. हालांकि, यह बेहद बुरा रहा कि हम सभी को लाने में सक्षम नहीं थे. अब हमें यह देखने की आवश्यकता है कि बचे हुए लोगों को वापस लाने के लिए क्या कर सकते हैं.

भारत ने भी लोगों को निकाला
बता दें कि अफगानिस्तान से लोगों को सुरक्षित निकालने के लिए कई देशों ने अभियान चलाया. इसमें भारत ने भी सैकड़ों लोगों को बाहर निकाला. अफगानिस्तान से निकालकर लाए गए 146 भारतीय नागरिक कतर की राजधानी से चार अलग-अलग विमानों के जरिये गत 23 अगस्त को भारत पहुंचे थे. इन नागरिकों को अमेरिका और उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के विमान के जरिए पिछले कुछ दिन में काबुल से दोहा ले जाया गया था. भारत तीन उड़ानों के जरिए दो अफगान सांसदों समेत 392 लोगों को रविवार को देश वापस लाया था.

इससे पहले, 16 अगस्त को 40 से अधिक लोगों को स्वदेश लाया गया था जिनमें से ज्यादातर भारतीय दूतावास के कर्मी थे. काबुल से दूसरे विमान से 150 लोगों को लाया गया, जिनमें भारतीय राजनयिक, अधिकारी, सुरक्षा अधिकारी और कुछ अन्य भारतीय थे, जिन्हें 17 अगस्त को लाया गया था.

बता दें कि अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी के देश छोड़कर चले जाने के बाद रविवार को तालिबान ने काबुल पर कब्जा कर लिया. इसके बाद से वहां अफरा-तफरी का माहौल है. अफगानिस्तान-तालिबान संकट (Afghan Taliban Crisis) के बीच एक अहम घटनाक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गत 17 अगस्त को सुरक्षा मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति की बैठक की.

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प्रधानमंत्री ने अपने सरकारी आवास पर हुई इस अहम बैठक के बाद अधिकारियों को यह निर्देश दिए. इसी बीच सूत्रों ने कहा है कि भारत इंतजार करेगा और देखेगा कि सरकार का गठन कितना समावेशी होगा और तालिबान कैसे आचरण करेगा. सूत्रों के मुताबिक तालिबान ने कश्मीर पर भी अपना रुख स्पष्ट किया है. इसके मुताबिक तालिबान कश्मीर को एक द्विपक्षीय, आंतरिक मुद्दा मानता है. पीएम ने कहा कि हिंदुओं और सिखों को देंगे शरण.

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इसके बाद काबुल में भारतीय राजदूत एवं दूतावास के कर्मियों समेत 120 लोगों को लेकर भारतीय वायुसेना का एक विमान मंगलवार को अफगानिस्तान से भारत पहुंचा था. विदेश मंत्रालय ने कहा है कि भारत सभी भारतीयों की अफगानिस्तान से सकुशल वापसी को लेकर प्रतिबद्ध है और काबुल हवाईअड्डे से वाणिज्यिक उड़ानों की बहाली होते ही वहां फंसे अन्य भारतीयों को स्वदेश लाने का प्रबंध किया जाएगा.

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काबुल पर कब्जे के बाद तालिबान ने लचीला रुख अपनाते हुए पूरे अफगानिस्तान में 'आम माफी' की घोषणा की और महिलाओं से उसकी सरकार में शामिल होने का आह्वान किया. इसके साथ ही तालिबान ने लोगों की आशंका दूर करने की कोशिश है, जो एक दिन पहले उसके शासन से बचने के लिए काबुल छोड़कर भागने की कोशिश करते दिखे थे और जिसकी वजह से हवाई अड्डे पर अफरा-तफरी का माहौल पैदा होने के बाद कई लोग मारे गए थे.

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गौरतलब है कि भारत ने 2001 के बाद से अफगानिस्तान में पुनर्निर्माण में करीब 3 बिलियन डॉलर से अधिक का निवेश किया है. संसद भवन, सलमा बांध और जरांज-देलाराम हाईवे प्रोजेक्ट में भारी निवेश किया है. इनके अलावा भारत-ईरान के चाबहार बंदरगाह के विकास का काम कर रहा है. भारत को ईरान के रणनीतिक चाबहार के शाहिद बेहेश्टी क्षेत्र में पांच बर्थ के साथ दो टर्मिनल का निर्माण करना था, जो एक पारगमन गलियारे का हिस्सा होता. यह भारतीय व्यापार की पहुंच को अफगानिस्तान, मध्य एशिया और रूस तक पहुंच प्रदान करता. इस परियोजना में दो टर्मिनल, 600-मीटर कार्गो टर्मिनल और 640-मीटर कंटेनर टर्मिनल शामिल थे. इसके अलावा 628 किलोमीटर लंबी रेलवे लाइन का निर्माण होना था, जो चाबहार को अफगानिस्तान सीमावर्ती शहर जाहेदान से जोड़ती. जानकारों का मानना है कि भारत ने चीन के चाबहार के जवाब में ग्वादर प्रोजेक्ट में निवेश किया था. अब तालिबान के राज में इसके पूरा होने पर संशय है.

(पीटीआई-भाषा)

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