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चीन के बढ़ते प्रभाव से खतरे में नेपाल की स्वायत्तता : रिपोर्ट

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Published : Aug 23, 2020, 4:28 PM IST

नेपाल में चीन का प्रभाव लगातार बढ़ रहा है, जिससे इस हिमालयी राष्ट्र की स्वायत्तता खतरे में है. एक मीडिया रिपोर्ट में नेपाल की स्वायत्तता और 'स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता' पर गंभीर संदेह जताया गया है. पढ़ें पूरी खबर...

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खतरे में नेपाल की स्वायत्तता

काठमांडू : चीन लगातार विभिन्न देशों पर अपना प्रभाव बनाने की कोशिश कर रहा है. एक रिपोर्ट में नेपाल सरकार के साथ चीन की साठगांठ का खुलासा किया गया है. ग्लोबल वॉच एनालिसिस की एक रिपोर्ट के अनुसार, चीन का हिमालयी राष्ट्र नेपाल के प्रमुख संस्थानों में दखल बढ़ गया है. जिससे नेपाल की स्वायत्तता और 'स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता' पर गंभीर संदेह जताया जा रहा है.

रिपोर्ट में बताया गया है कि चीन किस तरह आर्थिक रूप से कमजोर देशों के राजनीतिक वर्ग को भ्रष्ट करने की अपने नीति लागू कर रहा है. यह भी बताया गया कि कैसे नेपाल की विदेश नीति चीन के हितों को आगे बढ़ाने की ओर गई है. नेपाल बीजिंग के रणनीतिक विस्तार का शिकार होने वाला नया देश है.

पिछले साल जनवरी में, जब चीन ने वेनेजुएला पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने के अमेरिका के कदम की निंदा की थी, तब सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) ने भी एक ऐसा ही बयान जारी किया था, जिसमें वेनेजुएला के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने के लिए अमेरिका और उसके सहयोगियों की निंदा की गई थी. यह शायद पहली बार था जब नेपाल ने लैटिन अमेरिका में वॉशिंगटन की नीतियों से संबंधित स्टैंड लिया था.

नेपाल में एक और चिंताजनक बात यहां रहने वाले तिब्बती शरणार्थियों की बिगड़ती मानव अधिकारों की स्थिति है. हिमालयी राष्ट्र तिब्बत के साथ एक लंबी सीमा साझा करता है और यहां 20,000 से अधिक तिब्बती शरणार्थी रहते हैं. दलाई लामा के 1959 में भारत में शरण लेने के बाद से कई तिब्बती यहां आ रहे हैं.

संयुक्त राष्ट्र (यूएन) को सौंपी गई एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार, दो मानवाधिकार समूहों ने बताया है कि तिब्बती शरणार्थी सबसे पहले नेपाल में आते हैं. लेकिन अब उन्हें चीन भेजे जाने के खतरों का सामना करना पड़ सकता है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि नेपाल सरकार और चीन के बीच बढ़ते संबंधों के साथ, तिब्बती शरणार्थियों को अपने शरणार्थी संघों के सदस्यों का चुनाव करने या दलाई लामा के जन्मदिन का जश्न मनाने पर रोक लगा दी गई है.

रिपोर्ट में दावा किया गया है कि नेपाली अधिकारियों द्वारा चीनी उत्पीड़न के खिलाफ विरोध का प्रयास भारी-भरकम प्रतिक्रिया के साथ किया जाता है.

नेपाल के शीर्ष संस्थानों पर चीन की पकड़ को सुनिश्चित करने के लिए, काठमांडू में चीनी दूतावास लगातार अपने विश्वासपात्रों का एक नेटवर्क तैयार कर रहा है.

चीनी दूतावास ने नेपाल-भारत संबंधों पर शोध करने के लिए एनसीपी के सदस्य राजन भट्टराई को 1.5 मिलियन नेपाली रुपये का कॉन्ट्रैक्ट दिया है. भट्टराई वर्तमान में नेपाली प्रधनामंत्री केपी शर्मा ओली के विदेश मामलों के सलाहकार हैं.

भट्टराई नवंबर 2018 में ओली के विदेश मामलों के सलाहकार नियुक्त किए गए थे. हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि चीन ने उनकी नियुक्ति में कोई भूमिका निभाई है. यह बात दिलचस्प है कि प्रधानमंत्री कार्यालय में अपनी स्थिति के बावजूद, भट्टराई ने काठमांडू में तैनात चीनी राजनयिक ली यिंगकीउ (Li Yingqiu) से संपर्क जारी रखा.

रिपोर्ट में कहा गया है कि नेपाल के प्रधानमंत्री कार्यालय के साथ उसके वरिष्ठ सलाहकारों को चीन के साथ लेन-देन संबंध स्थापित करने के लिए जाना जाता है, यह सरकार की स्वायत्तता और स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता पर गंभीर संदेह पैदा करता है.

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