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नोएडा के इस गांव में नहीं मनाया जाता दशहरा, जानिए क्या है कारण

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Published : Oct 25, 2020, 8:00 PM IST

effigy of ravan not burn in bisrakh village of noida and dussehra is not celebrated
यूपी के इस गांव में नहीं मनाया जाता दशहरा

आज देशभर में दशहरा मनाया जा रहा है. बुराई पर अच्छाई की जीत का दिन है. हर गांव, नगर, शहर में रावण के पुतले जलाए जा रहे हैं, लेकिन एक गांव ऐसा भी है जो मातम में डूबा है. ये नोएडा का बिसरख गांव है, जहां रावण का जन्म हुआ था.

नई दिल्ली/नोएडा: देशभर में बुराई पर अच्छाई के प्रतीक विजयदश्मी बड़े ही धूमधाम से मनाया जा रहा है, लेकिन नोएडा के एक गांव में दशहरा नहीं मनाया जाएगा. इस गांव का नाम है बिसरख. मान्यता है कि बिसरख गांव में लंकेश रावण का जन्म हुआ था. उनका बचपन भी इसी गांव में बीता था. इस गांव में दशहरा का पर्व नहीं मनाया जाता है और यहां रावण का भी दहन नहीं होता है.

यूपी के इस गांव में नहीं मनाया जाता दशहरा

गौतमबुद्ध नगर के सूरजपुर मुख्यालय से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बिसरख गांव वर्तमान में ग्रेटर नोएडा वेस्ट में स्थित है. कभी यह इलाका ग्रेटर नोएडा के शहरी जंगल में से एक था, लेकिन अब बड़ी-बड़ी गगनचुंबी इमारतें बनने के बाद इस क्षेत्र का विकास तेजी से हुआ है.

गांव का नाम रावण के पिता के नाम पर पड़ा

बिसरख गांव के मध्य स्थित इस शिव मंदिर को गांव वाले रावण का मंदिर के नाम से जाना जाता है. नोएडा के शासकीय गजट में रावण के पैतृक गांव बिसरख के साक्ष्य मौजूद नजर आते हैं. गजट के अनुसार बिसरख रावण का पैतृक गांव है और लंका का सम्राट बनने से पहले रावण का जीवन यहीं गुजरा था. इस गांव का नाम पहले विश्वेशरा था, जो रावण के पिता विश्वेशरा के नाम पर पड़ा है. कालांतर में इसे बिसरख कहा जाने लगा.

25 शिवलिंग और एक लंबी गुफा

गांव के बुजुर्ग बताते है कि बिसरख गांव का जिक्र शिवपुराण में भी किया गया है. कहा जाता है कि त्रेता युग में इस गांव में ऋषि विश्रवा का जन्म हुआ था. इसी गांव में उन्होंने शिवलिंग की स्थापना की थी. उन्हीं के घर रावण का जन्म हुआ था. अब तक इस गांव में 25 शिवलिंग मिल चुके हैं, एक शिवलिंग की गहराई इतनी है कि खुदाई के बाद भी उसका कहीं छोर नहीं मिला है. ये सभी अष्टभुजा के हैं.

इस दिन रहती है उदासी

गांव के लोगों का कहना है कि रावण को पापी रूप में प्रचारित किया जाता है. जबकि वह बहुत तेजस्वी, बुद्विमान, शिवभक्त, प्रकाण्ड पण्डित और क्षत्रिय गुणों से युक्त थे. जब देशभर में जहां दशहरा असत्य पर सत्य की और बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, वहीं रावण के पैतृक गांव बिसरख में इस दिन उदासी का माहौल रहता है. दशहरे के त्योहार को लेकर यहां के लोगों में कोई खास उत्साह नहीं है. इस गांव में शिव मंदिर तो है, लेकिन भगवान राम का कोई मंदिर नहीं है.

गांव बिसरख में न रामलीला होती है और ना ही रावण दहन किया जाता है. यह परंपरा सालों से चली आ रही है. मान्यता यह भी है कि जो यहां कुछ मांगता है, उसकी मुराद पूरी हो जाती है. इसलिए साल भर देश के कोने-कोने से यहां आने-जाने वालों का तांता लगा रहता है. रावण के मंदिर को देखने के लिए लोगो यहां आते रहते है.

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