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Criminal Act of Minor Children: एनसीआर में पढ़ाई से बचने के लिए कम उम्र के छात्र उठा रहे हैं आपराधिक कदम

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Published : Sep 3, 2022, 1:05 PM IST

Updated : Sep 3, 2022, 1:31 PM IST

पिछले कुछ दिनों में कई ऐसी घटनाएं सामने आई हैं, जिनमें कम उम्र के छात्र पढ़ाई से बचने के लिए आपराधिक घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं. स्कूल न जाना पड़े, इसके लिए वे झूठी कहानियां ही नहीं बना रहे, बल्कि हत्या जैसी जघन्य घटना को भी अंजाम देने से नहीं चूक रहे. आखिर कम उम्र में दिल्ली एनसीआर के छात्र क्यों ऐसे खौफनाक कदम उठा रहे हैं. पढ़िये पूरी रिपोर्ट Criminal Act of Minor Children

students becoming criminals at young age
छोटी उम्र में अपराधी बन रहे छात्र

नई दिल्ली/गाजियाबाद: बचपन से ही मां-बाप अपने सिखाते हैं कि मन लगाकर पढ़ाई करो. इससे भविष्य के साथ व्यक्तित्व भी बेहतर बनेगा. मां-बाप बच्चों को बेहतर बनाने के लिए हर संभव प्रयास करते हैं. लेकिन बदलते दौर में कुछ बच्चों को मां-बाप की सीख चुभने लगी है. हाल ही में गाज़ियाबाद में दो ऐसी घटनाएं सामने आई हैं, जिनमें पढ़ाई से बचने के लिए कम उम्र के छात्रों ने खौफनाक कदम उठाए (students commit crimes at young age). 16 वर्ष के छात्र ने 13 साल के छात्र की सिर्फ इसलिए हत्या कर दी ताकि वह हत्या के जुर्म में जेल चला जाए और पढ़ाई से बच सके.

वहीं, दूसरी तरफ एक बच्चे ने स्कूल जाने से बचने के लिए झूठी कहानी गढ़ी. 12वीं के एक बच्चे ने स्कूल जाने से बचने के लिए अपने ही अपहरण की फर्जी कहानी अपने परिवार वालों को बताई. पुलिस को 30 अगस्त को एक शिकायत मिली. इसमें बच्चे के हवाले से बताया गया था कि जब वो ट्यूशन से लौट रहा था तो उसे तीन लोग जबरदस्ती गाड़ी में उठाकर ले गए. बच्चे ने यह भी बताया कि उस पर ब्लेड से हमला करने की कोशिश की गई. इसके बाद पुलिस सक्रिय हुई.

कई इलाकों में जांच पड़ताल की गई. सीसीटीवी भी चेक किए, लेकिन ऐसी किसी भी वारदात की भनक पुलिस को नहीं लगी. कोई चश्मदीद भी नहीं मिला. कोई ऑटो वाला भी नहीं मिला. जो जगह बताई गई थी, वहां पर भी ऐसा कुछ नहीं पाया गया. इसके बाद बच्चे से प्यार से पूछा गया तो उसने बताया कि फर्जी कहानी बताई थी, क्योंकि वह स्कूल नहीं जाना चाहता था (Kidnapping story made to avoid school). उसे लगा कि अगर वह अपने परिवार को बताएगा कि उसका अपहरण हो गया है तो उसे ट्यूशन और स्कूल नहीं भेजेंगे. वह पढ़ाई नहीं करना चाहता था.

क्या कुछ वजह है, जो बच्चे इस तरह के खौफनाक कदम उठा रहे हैं और कैसे बच्चों को मानसिक रूप से मजबूत बनाकर इस तरह के कदम उठाने से रोका जा सकता है? यह जानने के लिए ईटीवी भारत ने साइकोलॉजिस्ट डॉ. एके विश्वकर्मा (Psychologist Dr. AK Vishwakarma) से बात की तो उन्होंने बताया कि "बच्चों को नकारात्मक विचारों से दूर रखने के लिए तनाव मुक्त करना बेहद जरूरी है. यदि वे बचपन में तनाव से ग्रसित रहेंगे तो उनको न सिर्फ वर्तमान बल्कि आगे आने वाले समय में भी परेशानी उठानी पड़ेगी. उनका तनाव कम करने के लिए जरूरी है कि मां-बाप उनसे बातचीत करें. अधिकतर समय उनके साथ बिताएं, जिससे जो भी उनके मन में है, वह उनके साथ शेयर कर सकें. यदि बच्चों के मन में कुछ नकारात्मक विचार है तो उनको धीरे-धीरे समझाएं. एक बार में उनका मन परिवर्तन करने का प्रयास न करें. जिस क्षेत्र में उनकी रुचि है वह काम उनके साथ करें. जैसे कि बच्चे को ड्राइंग बनाने में रुचि है तो उसके साथ ड्राइंग बनाएं. इस तरह से बच्चे के साथ तालमेल को बहुत अच्छा किया जा सकता है, जिससे कि जब मां-बाप उनसे पढ़ाई के लिए कहें तो वे घुटें न, बल्कि उनकी बात को आसानी से मान लें. यदि पैरेंट्स का बच्चों के साथ तालमेल अच्छा होगा तो वो कोई भी फैसला लेने से पहले वे उनके साथ शेयर जरूर करेंगे."

वहीं, इस विषय पर शिक्षाविद रेखा बक्शी (Academician Rekha Bakshi) बताती हैं कि "मौजूदा समय में एजुकेशन पॉलिसी भी बच्चों पर मानसिक दबाव बनाने के लिए ज़िम्मेदार है. इस कम्पटीशन के दौर में नम्बर सब कुछ बन गए हैं. शिक्षा के साथ खेल-कूद ज़रूरी है. इस दौर में मां बाप बच्चों से सिर्फ नम्बर एक्सपेक्ट करते हैं. एजुकेशन पॉलिसी में बच्चों की ओवरऑल ग्रोथ पर ध्यान देना ज़रूरी है, जिससे बच्चों और मां बाप पर मानसिक दबाव कम हो सके."

वहीं शिक्षिका प्रियंवदा राय (Teacher Priyamvada Rai) का कहना है कि "बच्चों का मन काफी चंचल होता है, जो हर समय भटकता रहता है. उनपर पढ़ाई को लेकर दबाव बनाना ठीक नहीं है. बल्कि उन्हें प्यार से समझाना और इस बात का एहसास कराना ज़रूरी है कि पढ़ाई उनके जीवन को न सिर्फ बेहतर बनाएगी बल्कि समाज में एक अलग पहचान देगी. बच्चों का मन टटोल कर उनको सही रास्ता दिखाया जा सकता है. थोड़ा बहुत प्यार से समझाने के बाद उनकी समझ में बात आ जाती है."

अभिभावक विवेक त्यागी (Parent Vivek Tyagi) बताते हैं कि "मौजूदा दौर में बच्चे केवल मां-बाप के साथ रह रहे हैं. ऐसे में दादा दादी समेत अन्य करीबियों से मुलाकात नहीं हो पाती है. घर में बड़े बुजुर्गों के साथ रहकर बच्चों में सकारात्मक ऊर्जा मौजूद रहती थी. अपने उनमें सकारात्मक ऊर्जा भरने के वह उनका ध्यान स्पोर्ट्स में केंद्रित कराते हैं, जिससे कि बच्चे मोबाइल फोन आदि पर अधिक समय बिताने से बचते हैं. स्पोर्ट्स से उनका शारीरिक के साथ-साथ मानसिक विकास भी होता है, जिससे वे नकारात्मक विचारों से दूर रहते हैं."

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Last Updated : Sep 3, 2022, 1:31 PM IST
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