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#YamunaRiver बस मान्यताओं में पवित्र रह गई यमुना

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Published : Apr 11, 2022, 10:49 PM IST

हिंदू धर्म में यमुना नदी विशेष महत्व रखती है. जीवन से लेकर मृत्यु तक यह पवित्र नदी हिंदू संस्कृति को समर्पित है. इस नदी के साथ कई धार्मिक मान्यता और महत्व भी जुड़े हैं. साथ ही इसे सबसे बड़ी सहायक नदी के तौर पर भी पहचाना गया है, लेकिन इतने समृद्ध इतिहास के बाद भी यमुना भारत की सबसे प्रदूषित नदी है. आइये इस लेख में यमुना की वर्तमान दशा और इसके पीछे के कारण को समझते हैं...

इतिहास
इतिहास

नई दिल्ली : देश में नदियों को साफ करने की योजना अब पुरानी सी बात लगने लगी है, क्योंकि नदियों ने केवल सरकारों के दावे ही देखे हैं. अभी तक के आकड़ों के मुताबिक, सरकारों की योजना कभी सफल होती नहीं दिखी है. उन योजनाओं के दावे यमुना नदी ने भी देखे हैं, जिसे पहले कभी टेम्स नदी की तर्ज पर स्वच्छ करने का दावा किया गया था, लेकिन आज यह एक गंदे नाले की शक्ल में प्रवाहित हो रही है. इसकी मुख्य वजह यमुना नदी में कचरा प्रभावित करने वाले नाले हैं. हालांकि दिल्ली सरकार ने 2024 तक यमुना को साफ करने का लक्ष्य रखा है और इसकी झलक भी इस बजट में दिखी है. बताया जा रहा है कि आने वाले 2 सालों में यमुना को पूरी तरीके से साफ कर दिया जाएगा.

क्या है धार्मिक महत्व

हिंदुओं के लिए यमुना एक पवित्र नदी है. दो नदियों का संगम हिंदू के लिए एक विशेष रूप से पवित्र स्थान माना जाता है. यमुना नदी मृत्यु के देवता यम की बहन है. यमुनोत्री मंदिर पवित्र स्थल देवी जमुना को समर्पित है, जो हिंदू संस्कृति में एक महत्वपूर्ण स्थल है. इतना समृद्ध इतिहास होने के बावजूद भी यमुना भारत की सबसे प्रदूषित नदी है. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ऑफ इंडिया के दावे के अनुसार, यमुना का लगभग 600 किलोमीटर क्षेत्र प्रदूषित है. इतना ही नहीं दिल्ली में ही यमुना नदी में अधिकांश कचरा प्रवेश करता है. साथ ही यमुना नदी में हानिकारक कीचड़ और सिवेज डाला जाता है. दिल्ली के निचले हिस्से में अवरोध की वजह से यमुना की स्थिति और भी गंभीर होती जाती है.

जीवनदायिनी यमुना...

यमुनोत्री से होती है प्रवाहित

यमुना नदी को हम जमुना नदी के नाम से भी जानते हैं. दिल्ली को चारों तरफ से घेरे हुए यमुना नदी न सिर्फ दिल्ली बल्कि पूरे देश के कोने-कोने में रची बसी है. यमुना नदी उत्तर भारत की प्रमुख नदी है. यह उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश राज्य में बहती है. गंगा नदी के साथ-साथ यह भी देश के सबसे पवित्र नदियों में से एक है. यमुना का उद्गम स्थान पश्चिमी उत्तराखंड में यमुनोत्री के पास महान हिमालय में बंदर पंच मासिफ़ की ढलान से होता है. यह हिमालय की तलहटी से होते हुए दक्षिण दिशा में तेजी से बहती है. उत्तराखंड से निकलकर भारत गंगा के मैदान में उत्तर प्रदेश और हरियाणा राज्य के बीच की सीमा के साथ पश्चिम में बहती है. पूर्वी और पश्चिमी नहरों को भी यमुना के जल से सीचा जाता है. ऐसा कहा जाता है कि यमुनोत्री दर्शन के बिना तीर्थ यात्रियों की यात्रा अधूरी होती है. समांतर बहते हुए यह नदी प्रयाग में गंगा में मिल जाती है. हिमालय पर इसके उद्गम के पास एक चोटी नाम का बन्दरपुच्छ है.

यमुना की स्थिति और भी गंभीर
यमुना की स्थिति और भी गंभीर

यमुना नदी दिल्ली से गुजरती है और यह आगरा शहर की खूबसूरती को भी बढ़ाती है. दिल्ली के दक्षिण में और अब पूरी तरह उत्तर प्रदेश के भीतर यह मथुरा के पास दक्षिण पूर्व की ओर आगरा, फिरोजाबाद और इटावा से होकर गुजरती है. इटावा के नीचे इसमें कई दक्षिणी सहायक नदियां मिलती है, जिनमें चंबल और सेंधवा जैसी बड़ी नदियां भी शामिल हैं. इलाहाबाद के पास लगभग 855 मील के एक कोर्स के बाद यमुना नदी गंगा में मिल जाती है.

यमुना से जुड़ी धार्मिक मान्यता

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यमुना नदी से होकर कृष्ण के पिता वासुदेव ने नवजात श्रीकृष्ण को एक टोकरी में रखकर मथुरा से गोकुल तक उनके पालक पिता नंदराज तक पहुंचाया था. एक धार्मिक मान्यता के अनुसार, कृष्ण के बचपन के दिनों में यमुना नदी जहरीली थी, क्योंकि जब यमुना नदी के नीचे कालिया नाम का एक 5 सिर वाला सांप रहता था, जो नहीं चाहता था कि मनुष्य यमुना के पानी का सेवन करे. श्रीकृष्ण ने बचपन में ही जहरीली नदी में छलांग लगा दी थी और कालिया से युद्ध कर युद्ध जीत लिया था. कृष्ण ने बाद में यमुना नदी के जहर को दूर करके इसका पानी साफ और पीने योग्य बनाया था.

यमुनोत्री में एक गर्म पानी का कुंड
यमुनोत्री में एक गर्म पानी का कुंड

यमुना नदी और सूर्य कुंड

यमुना नदी में यमुनोत्री में एक गर्म पानी का कुंड भी है. इस कुंड को सूर्य कुंड के नाम से भी जाना जाता है. माना जाता है कि यह सूर्य कुंड सूर्य देवता सूर्य की संतान को समर्पित है. सूर्य कुंड के पानी का तापमान लगभग 88 डिग्री सेल्सियस रहने के अनुमान हैं. सूर्य कुंड में पानी इतना गर्म होता है कि लोग इसमें चाय और चावल भी आसानी से बना सकते हैं. साथ ही आलू भी उबाले जा सकते हैं. सूर्य कुंड में तैयार चावल और आलू यमुनोत्री मंदिर में देवता को चढ़ाए जाते हैं.

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हिंदू संस्कृति में पवित्र नदी

महंत गोपेश कृष्ण दास बताते हैं कि यमुना नदी वेदों के काल से गंगा नदी के साथ-साथ बहती है. इसे हिंदू संस्कृति में पवित्र नदी माना गया है. यह उत्तर भारत में बहने वाली सबसे लंबी नदियों में से एक है. इस नदी की लगभग लंबाई 1376 किलोमीटर है. इससे गंगा की सबसे बड़ी सहायक नदी के रूप में माना जाता है. यमुना नदी अपने प्रदेश की नदियों की तरह पूर्व की ओर बहती है. यह नदी दिल्ली और उत्तर प्रदेश के संपन्न औद्योगिक क्षेत्र के लिए पानी का एक महत्वपूर्ण स्रोत है. यमुना पर पानी के लिए अधिक निर्भरता और हमारे व्यवहार से इसका पानी अब तक पर्यावरण के लिए खतरा बन चुका है.

यमुना नदी मृत्यु के देवता यम की बहन है.
यमुना नदी मृत्यु के देवता यम की बहन है.

यमुना से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां

राष्ट्रवादी चिंतक के एन गोविंदाचार्य ने बताया कि यमुना नदी उत्तराखंड की एक ग्लेशियर से निकलती है. उत्तराखंड से यह पवित्र नदी हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश में बहती है. आंकड़े बताते हैं कि यह नदी अपने जन्म स्थान से शुद्ध होकर निकलती है और आगे आते-आते प्रदूषित हो जाती है. दिल्ली एनसीआर में यमुना के साथ प्रवाहित होता कचरा इसके प्रदूषण का मुख्य कारण है. हालांकि साल 1984 में भारत सरकार ने यमुना को साफ करने का मिशन भी शुरू किया था, लेकिन उसमें सफल नहीं हो सके. दिल्ली एनसीआर में औद्योगिक कचरे को नदी में फेंकना प्रदूषण का मुख्य कारण रहा है. इस प्रकार विभिन्न तथ्यों को खुद में समेटे हुए यमुना नदी भारत की कई अन्य पवित्र नदियों में से एक है, जो अपने उद्गम स्थान के साथ जहां से गुजरती है उन स्थानों को पवित्र बनाती है. राष्ट्रीय चिंतक के.एन. गोविन्दाचार्य ने बताया कि 12 अप्रैल 2022 को दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में “नदियां बचाओ- देश बचाओ, यमुना बचाओ-दिल्ली बचाओ” की उद्घोषणा के साथ “नदी संवाद” नाम से सम्मलेन का आयोजन किया जाएगा.

गोविंदाचार्य ने बताया कि पर्यावरणविदों, वैज्ञानिकों द्वारा “जलवायु परिवर्तन” रूपी संकट का जो वर्णन हो रहा है, नदियों की यात्रा में उसके प्रमाण देखें गए हैं. पर्यावरण प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के संकट को समझने के लिये “नदियों की दशा का अध्ययन किया गया. 500 वर्षों में “मानव केन्द्रित विकास” की अवधारणा पर चलकर “जलवायु परिवर्तन” रूपी ऐसा भीषण संकट खड़ा हो गया है, जिसने मानव सहित सम्पूर्ण जीव-जगत सृष्टि के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिह्न लगा दिया है. प्रकृति के शोषण एवं विध्वंस पर आधारित इस मानव केन्द्रित विकास का विकल्प अब आगे केवल “प्रकृति केन्द्रित विकास (Eco-Centric Development)” ही है.

नदियों की वर्तमान दशा को देखकर सभी संवेदनशील और विवेकशील लोग “जलवायु परिवर्तन” रूपी संकट और “प्रकृति केन्द्रित विकास” रूपी समाधान पर एकमत होते जा रहे हैं. इन नदियों की यात्रा के दौरान ऐसे कई क्रियाशील सज्जनशक्तियों से संवाद का अवसर मिले. उस संवाद के पश्चात आपसी विचार विमर्श के पश्चात् “नदियों की दशा” को सुधारने में सामूहिक प्रयत्नों पर सहमति बन रही है. उस सहमति को सहकार के प्रत्यक्ष धरातल पर उतारने के लिये समान विचार वाले व्यक्तियों और संस्थाओं के सम्मलेन का नाम है – “नदी संवाद”. नदियों पर क्रियाशील व्यक्तियों और संस्थाओं को मिलाकर एक समिति का गठन हो और फिर उस समिति के माध्यम से नदियों को पुनर्जीवित करने का आंदोलन आकार ले, यही इस संवाद का उद्देश्य है. आपको बता दें कि कोरोना संकट के लॉकडाउन काल में गोविन्दाचार्य ने अपने सहयोगियों के साथ गंगा, नर्मदा और यमुना की अध्ययन यात्रा की जिसमें कई तथ्य निकल कर सामने आए थे.

नदियों को पुनर्जीवित करने में प्रयत्नशील अनेक सामाजिक नेताओं, पूज्य संतों और पर्यावरणविदों की सहभागिता इस सम्मलेन में होने जा रही है, जिनमे कुछ प्रमुख नाम पूज्य स्वामी राजेंद्र दास जी (मलूक पीठ), पूज्य स्वामी ज्ञानानंद जी महाराज (गीता मनीषी), सरयू राय, राम बहादुर राय, रवि चोपड़ा, विक्रम सोनी, यमुना मिशन के संयोजक प्रदीप बंसल आदि शामिल हैं.

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