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दिल्ली के किशनगढ़ में देखिए 'पॉलिटिक्स की पेरिस' और 'राजनीति का क्योटो'!

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Published : Jun 16, 2022, 1:10 PM IST

सरकारें सीवर और शुद्ध पानी देने का भी गाहे-बगाहे बखान करती ही रहती हैं. केंद्र में मोदी सरकार और दिल्ली में केजरीवाल सरकार करीब आठ बरस पूरे कर रही है. इस अर्से में दिल्ली बस इतनी ही बदली है कि समस्याओं को नया नाम मिल गया है. वो नाम हैं पेरिस और क्योटो.

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नई दिल्ली : दिल्ली को पेरिस बनाने के वादे और देश में क्योटो बसाने के सपने आपको कभी कभी पीएम दिखाते हैं तो कभी सीएम. लेकिन दिल्ली कैसी है, कितनी चमकती-दमकती है. इसका एक नजारा किशनगढ़ में मिलेगा. कहने को तो ये दिल्ली का किशनगढ़ गांव है लेकिन इसमें आपको बिहार के किशनगंज और असम के किसी गांव की भी झलक मिल जाएगी.

सरकारें सीवर और शुद्ध पानी देने का भी गाहे-बगाहे बखान करती ही रहती हैं. केंद्र में मोदी सरकार और दिल्ली में केजरीवाल सरकार करीब आठ बरस पूरे कर रही है. इस अर्से में दिल्ली बस इतनी ही बदली है कि समस्याओं को नया नाम मिल गया है. वो नाम हैं पेरिस और क्योटो.

दिल्ली के किशनगढ़ में देखिए 'पॉलिटिक्स की पेरिस' और 'राजनीति का क्योटो'!

किशनगढ़ में प्रवेश करते ही सबसे पहले सीवर के पीले और बदबूदार पानी से आपका छपाक होता है. इसके बाद अगली ही ठोकर में टूटी सड़कें आपका स्वागत करती हैं. और इसी के साथ शुरू हो जाता है सरकारों की कथनी-करनी और सियासी पुराणों का महा बखान. जो घंटे भर के सफर के बाद भी खत्म होने का नाम नहीं लेता है.

किशनगढ़ को सरकारों की सियासत का नमूना कहें तो कत्तई ग़लत नहीं होगा. क्योंकि यहां सत्ता में रहने वाली आप की सरकार और केंद्र में मौजूद बीजेपी की एमसीडी का भी किरदार साफ नजर आता है. बदबूदार सीवर वाला पीला पानी ही नहीं, जहां-तहां लगे कूड़े के अंबार भी सरकारों के किरदार का ही नमूना हैं.

दिल्ली के किशनगढ़ में देखिए 'पॉलिटिक्स की पेरिस' और 'राजनीति का क्योटो'!
दिल्ली के किशनगढ़ में देखिए 'पॉलिटिक्स की पेरिस' और 'राजनीति का क्योटो'!

वैसे कहने को तो किशनगढ़ दिल्ली का एक गांव है, लेकिन यहां रहने वाले लोग कोठियों और महले-दुमहलों में रहते हैं. शानो-शौकत का आलम ये है कि कमोबेश सभी की अपनी एक कार है. जो अक्सर घर के बाहर उनके स्टेटस सिंबल की तरह शान का बखान करती इठलाती है. जिस पर आने-जाने वाली गाड़ियों की छपाक के हजारों निशान हमेशा मौजूद रहते हैं. सरकारों की ऐसी दया दृष्टि रही तो शायद थोड़े दिनों के बाद ये छपाक, टूटी सड़कें और सीवर की सड़ांध भी इलाके की पहचान बन जाए.

इलाके के लोगों का कहना है कि इन तमाम समस्याओं को लेकर पार्षद, विधायक और अफसरों तक से गुहार लगा चुके हैं, लेकिन किसी के कान पर जूं तक नहीं रेंगती है. लोग सरकारी नुमाइंदों को पेरिस बनाने के वादे भी याद दिला चुके हैं. फिर भी सड़क बनवाना तो दूर गड्ढे भरवाने तक की कोशिश किसी ने नहीं की. थक-हारकर अब इलाके के लोग यहां आने वालों को यही बताने पर मजबूर हैं कि यही है सरकार का पेरिस और यहीं बसाया गया है क्योटो. जिसको बनाने और बसाने के वादे कई चुनावी मंचों से देश के दिग्गज किए थे.

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