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कुतुब मीनार परिसर में पूजा करने की मांग, साकेत कोर्ट में आज होगी सुनवाई

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Published : Aug 24, 2022, 7:23 AM IST

Saket Court Delhi
साकेत कोर्ट

कुतुब मीनार परिसर में पूजा की अनुमति देने की मांग वाली याचिका पर आज सुनवाई होगी. अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र करके इस मामले को दिलचस्प बना दिया गया है. अब कोर्ट इस दलील पर विचार कर सकती है. Saket Court Hearing on Qutub Minar Issue

नई दिल्ली : दिल्ली की साकेत कोर्ट (Delhi Saket Court) आज कुतुब मीनार परिसर में पूजा की अनुमति देने की मांग (Petition on Worship Demand in Qutub Minar Complex) करने वाली याचिका पर सुनवाई करेगा. आज इस मामले में एडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज दिनेश कुमार सुनवाई करेंगे. याचिकाकर्ता की ओर से वकील हरिशंकर जैन ने एंशियंट मॉनुमेंट्स एंड आर्कियोलॉजिकल साईट्स एंड रिमेंस एक्ट (Ancient Monuments and Archaeological Sites and Remains Act) की धारा 16 का हवाला देकर अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र करके पूजा करने का अधिकार भी मांगा है.

कुतुब मीनार परिसर में पूजा करने की मांग के समर्थन में 24 मई को सुनवाई के दौरान कोर्ट ने याचिकाकर्ता की ओर से वकील हरिशंकर जैन ने कहा था कि पिछले आठ सौ वर्षों से इस परिसर का इस्तेमाल मुस्लिमों ने नहीं किया है. उन्होंने कहा था कि जब मस्जिद के काफी पहले यहां मंदिर था तो पूजा की अनुमति क्यों नहीं दी जा सकती है. हरिशंकर जैन ने एंशियंट मॉनुमेंट्स एंड आर्कियोलॉजिकल साईट्स एंड रिमेंस एक्ट की धारा 16 का हवाला दिया था, जिसमें पूजा स्थल की सुरक्षा का प्रावधान किया गया है. उन्होंने अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले (Supreme Court Decision on Ayodhya Case) का जिक्र किया था, जिसमें कहा गया है कि देवता हमेशा देवता रहेंगे और ध्वस्तीकरण से उसका चरित्र या उसकी गरिमा नहीं खत्म हो जाएगी. उन्होंने कहा था कि मैं एक पूजा करने वाला व्यक्ति हूं. वहां के चित्र अभी भी दिखाई देते हैं. अगर देवता हैं तो पूजा करने का अधिकार भी है.

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पूछा था कि याचिकाकर्ता को कौन से कानूनी अधिकार हैं. कोर्ट ने कहा था कि मूर्ति के होने पर कोई विवाद नहीं है, लेकिन पूजा करने के अधिकार पर विवाद है. कोर्ट ने कहा था कि सवाल है कि क्या पूजा का अधिकार एक स्थापित अधिकार है. क्या ये एक संवैधानिक अधिकार है या दूसरे तरह का अधिकार. क्या याचिकाकर्ता को पूजा के अधिकार से रोका जा सकता है. अगर ये मान लिया जाए कि कुतुब मीनार का मुसलमान मस्जिद के रुप में उपयोग नहीं करते हैं तो क्या इससे याचिकाकर्ता को पूजा करने का अधिकार किस आधार पर मिल जाता है. आठ सौ साल पहले हुए किसी घटना के आधार पर आपको कानूनी अधिकार कैसे मिल सकता है.

आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया का जवाब

कुतुब मीनार परिसर में पूजा करने की मांग के मामले में आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) ने कोर्ट में जवाब दाखिल कर कहा था कि जब एएसआई ने स्मारक पर नियंत्रण लिया था, तब वहां पूजा नहीं होती थी. एएसआई ने कहा था कि कानूनन संरक्षित स्मारक में पूजा का कोई प्रावधान नहीं है, इसलिए याचिका खारिज की जाए.

3 अप्रैल को कोर्ट ने एएसआई को निर्देश दिया था कि वो कुतुब मीनार परिसर में मौजूद कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद परिसर में रखी हुई भगवान गणेश की मूर्तियों को परिसर से ना हटाए. इस मामले में पहले से ही पूजा अर्चना अधिकार को लेकर याचिका दायर करने वाले याचिकाकर्ता ने नई अर्जी में कहा है कि गणेश जी की मूर्तियों को नेशनल म्युचुअल अथॉरिटी के दिये सुझाव के मुताबिक नेशनल म्यूजियम या किसी दूसरी जगह विस्थापित नहीं किया जाना चाहिए. इसके बजाए उन्हें परिसर में ही पूरे सम्मान के साथ उचित स्थान पर रखा जाए.

वकील विष्णु जैन के जरिये दायर मुख्य याचिका में कहा गया है कि हिंदुओं और जैनों के 27 मंदिरों को तोड़कर ये मस्जिद बनाई गई है. जैन तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव और भगवान विष्णु को इस मामले में याचिकाकर्ता बनाया गया था. बता दें कि 29 नवंबर 2021 को सिविल जज नेहा शर्मा ने याचिका खारिज कर दिया था. सिविल जज के याचिका खारिज करने के आदेश को डिस्ट्रिक्ट जज की कोर्ट में चुनौती दी गई है.

कुतुब मीनार परिसर में हिंदू रीति-रिवाज से पूजा करने की मांग

याचिका में कहा गया है कि मुगल बादशाह कुतुबद्दीन ऐबक ने 27 हिंदू और जैन मंदिरों की जगह कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद बना दिया. ऐबक मंदिरों को पूरे तरीके से नष्ट नहीं कर सका और मंदिरों के मलबे से ही मस्जिद का निर्माण किया गया. याचिका में कहा गया था कि कुतुब मीनार परिसर के दीवालों, खंभों और छतों पर हिन्दू और जैन देवी-देवताओं के चित्र बने हुए हैं. इन पर भगवान गणेश, विष्णु, यक्ष, यक्षिणी, द्वारपाल, भगवान पार्श्वनाथ, भगवान महावीर, नटराज के चित्रों के अलावा मंगल कलश, शंख, गदा, कमल, श्रीयंत्र, मंदिरों के घंटे इत्यादि के चिह्न मौजूद हैं. ये सभी बताते हैं कि कुतुब मीनार परिसर हिंदू और जैन मंदिर थे. याचिका में कुतुब मीनार को ध्रुव स्तंभ बताया गया था.

याचिका में आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) के उस संक्षिप्त इतिहास का जिक्र किया गया था, जिसमें कहा गया था कि 27 मंदिरों को गिराकर उनके ही मलबे से कुव्वत-उल-इस्लाम मस्जिद का निर्माण किया गया. याचिका में मांग की गई थी कि इन 27 मंदिरों को पुनर्स्थापित करने का आदेश दिया जाए और कुतुब मीनार परिसर में हिंदू रीति-रिवाज से पूजा करने की इजाजत दी जाए.

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