नई दिल्लीः दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने पल्ला फ्लड प्लेन परियोजना के सफल ट्रायल का दावा किया था. जबकि स्थानीय लाेगाें का कहना है कि परियोजना का अभी तक 50 परसेंट भी काम नहीं हुआ है. मौके पर पहुंचे अधिकारी से जब ईटीवी भारत ने बात करनी चाही ताे उन्हाेंने कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया. फ्लड विभाग के प्रिंसिपल सेक्रेट्री कैमरे से बचते हुए गाड़ी में बैठ कर चले गए.
दिल्ली सरकार ने करीब दो साल पहले अलीपुर के पल्ला इलाके में यमुना किनारे 26 एकड़ में तालाब बनाने की परियोजना की शुरुआत की थी. उसका नाम पल्ला फ्लड प्लेन परियोजना दिया गया था. दिल्ली सरकार के मंत्री मनीष सिसोदिया द्वारा दावा किया जा रहा है कि इस परियोजना का सफलतापूर्वक ट्रायल पूरा कर लिया गया और उसकी वजह से दिल्ली में दाे मीटर तक भूजल स्तर भी बढ़ गया है. जब ईटीवी भारत ने इन मुद्दाें पर स्थानीय लाेगाें और विशेषज्ञाें से बात की तो असलियत कुछ और ही निकली.
जिन जगहों पर पानी जमा करना है, वाटर ट्रीटमेंट प्लांट और स्टोरेज प्लांट लगना है वहां पानी की एक बूंद तक नहीं दिखाई दे रही है. ऐसे में ट्रायल कब हुआ और इससे दाे मीटर जलस्तर कैसे बढ़ा यह जांच का विषय है. कला इलाके में खेती कर रहे लोगों का कहना है कि किसानों के साथ धोखा किया गया. शुरुआती दौर में ही किसानों ने इस प्रोजेक्ट की खिलाफत की थी. करोड़ों रुपए इस प्रोजेक्ट में लगा दिए गए बावजूद इसके किसी को कोई फायदा नहीं मिल रहा है. किसानों का कहना है कि भूजल स्तर बढ़ना तो दूर की बात है, हर गर्मी की तरह इस बार भी भूजल स्तर नीचे गया है. ट्यूबवेल चलाने में भी दिक्कत आ रही है.
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वरिष्ठ समाजसेवी और पर्यावरण विशेषज्ञ हरपाल राणा ने ईटीवी भारत से बताया कि वह खुद ही उस साइड के आसपास जाते रहते हैं. जो तस्वीर दिल्ली सरकार द्वारा दिखाई जा रही है उसमें और असलियत में जमीन आसमान का अंतर है. उनका कहना है कि साधारणतया अगर कुछ समय के लिए बोरिंग का इस्तेमाल करना बंद कर दिया जाए तो फिर भूजल स्तर करीब एक मीटर तक बढ़ जाता है. हरपाल राणा ने बताया कि वह पहले भी कई बार दिल्ली सरकार को सुझाव दे चुके हैं कि पानी संकट कैसे दूर किया जा सकता है. लेकिन 2016 से अभी तक हर जवाब में विचाराधीन लिख कर आ जाता है.
राजधानी दिल्ली में कई सालों से दीवान सिंह जल संकट पर रिसर्च कर रहे हैं. दीवान सिंह काे 2022 में जल प्रहरी से पुरस्कृत किया गया था. इसी मुद्दे पर जब उनसे बातचीत की गयी ताे उन्हाेंने बताया कि सरकार को पहले ही इस ओर ध्यान देना चाहिए. खुद उनकी टीम ने यमुना के आसपास के इलाके में कुछ साल पहले रिसर्च किया था जिसमें यह साफ पता चला कि जमुना की रेतीली जमीन पानी को जल्द ही एक स्थान से दूसरे स्थान पहुंचाने की क्षमता रखती है. उनका कहना है सरकार जो भी दावे कर रही है उसमें रिपोर्टेड संस्थान द्वारा रिसर्च करने के बाद ही पुख्ता करना चाहिए.