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कोरोना का दंश झेल रहे मजदूरों की परेशानी बरकरार, आज भी नहीं मिल रहा काम

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Published : Mar 25, 2021, 6:04 AM IST

कोरोना महामारी के बाद लगे लॉकडाउन के एक साल पूरे होने के बाद प्रवासी मजदूरों का जीवन आज भी पटरी पर नहीं लौटा है. आज लॉकडाउन का एक साल बीतने के बाद उन मजदूरों में कितने वापस शहरों की ओर लौटे और वे किन हालातों में आज जीवनयापन कर रहे हैं, हमने यह जानने की कोशिश की. इसके बाद सुबह 9 बजे पढ़िए... इस एक साल में व्यापारियों का क्या हाल हुआ. कितनी परेशानी आई और उन्होंने इसका कैसे मुकाबला किया.

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लॉकडाउन का एक साल

नई दिल्ली: कोरोना महामारी की रोकथाम के लिए आज से एक साल पहले सरकार ने देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा की, जिसके बाद आम जीवन खासा प्रभावित हुआ. एक साल बीत जाने के बाद भी आज कई तबकों में कोरोना का कहर बरकरार है. एक साल गुजर जाने के बाद भी प्रवासी मजदूरों का जीवन अभी पटरी पर नहीं लौटा है.

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि लॉकडाउन के बाद इस देश ने अब तक का सबसे बड़ी प्रवासी मजदूर त्रासदी देखी जहां दिल्ली के अलग-अलग इलाकों से मजदूर हाथ में अपने बच्चे और सिर पर सामान लिए हाइवे पर निकल पड़े थे. अब लॉकडाउन का एक साल बीतने के बाद उन मजदूरों में कितने वापस शहरों की ओर लौटे और वह किन हालातों में आज जीवन यापन कर रहे हैं, हमने यह जानने की कोशिश की.

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काम के लिए आज भी पड़ता है भटकना

दिल्ली के शादीपुर इलाके में कलिंगा चौक पर काम के इंतजार में खड़े छोटेलाल बताते हैं कि लॉकडाउन का दौर याद करके आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं. वे बताते हैं कि लॉकडाउन की घोषणा होते ही हम अपने गांव चले गए थे. कुछ महीने गुजारने के बाद काम की तलाश में फिर हमें शहर की ओर लौटना पड़ा. छोटेलाल बताते हैं कि आज भी उन्हें काम के लिए पूरे दिन वैसे ही भटकना पड़ता है.

वहीं एक अन्य मजदूर पूर्णपाल बताते हैं कि लॉकडाउन के दौरान उन्होंने 6 महीने घर पर बिताए. फिर काम की तलाश में वापस दिल्ली आ गए. वह कहते हैं कि कोरोना के एक साल बाद भी अभी हफ्ते में 2 या 3 दिन ही काम मिलता है. प्रवासी मजदूरों के पलायन में सबसे ज्यादा चर्चा बिहार की हुई. वहां के रहने वाले मोहम्मद नजरूल बताते हैं कि उनकी परेशानी एक साल बाद भी वैसे ही बनी हुई है. वह कहते हैं कि गांव गए तो रोज़ी-रोटी की परेशानी थी और जब शहर लौटे तो यहां काम नहीं मिलता है.

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बता दें कि दिल्ली में लगभग 10 लाख प्रवासी मजदूर हैं, जिनमें से 1.31 लाख मजदूर दिल्ली निर्माण श्रमिक कल्याण बोर्ड में रजिस्टर्ड हैं. इसके अलावा दिल्ली के कई इलाकों में बने हुए स्वघोषित लेबर चौक पर रोजाना सैकड़ों मजदूर काम की तलाश में इकट्ठा होते हैं, लेकिन इनमें से कुछ ही लोगों को रोज काम मिल पाता है.

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