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Pitru Paksha 2021: मृत्यु के बाद की कहानी कहता है गरुड़ पुराण

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Published : Oct 5, 2021, 9:17 AM IST

Pitru Paksha 2021
पितृ पक्ष 2021

गरुड़ पुराण को सनातन धर्म में महापुराण माना गया है. गरुड़ पुराण में मनुष्य के मृत्यु के बाद की कहानी का उल्लेख किया गया है. साथ ही गरुड़ पुराण के पाठ का महत्व, मृत्यु के बाद जीवात्मा का भ्रमण, मौत के दौरान दिव्य दृष्टी, संजीवनी मंत्र, पिंडदान सहित अन्य बातों की व्याख्या की गई है.

नई दिल्ली: मृत्यु एक शाश्वत सत्य है, जिस जीव ने इस धरती पर जन्म लिया है, उसे एक न एक दिन इसे छोड़ कर जाना ही है. मृत व्यक्ति ना केवल यह दुनिया बल्की, अपना घर-परिवार, दोस्त-यार, पैसे-शोहरत सब कुछ त्याग कर जाता है, लेकिन वह साथ लेकर जाता है, तो सिर्फ अपने कर्म, जिसके आधर पर यह तय होता है कि उसकी आत्मा को स्वर्ग की प्राप्ति होगी या नर्क की.

सनातन धर्म में कुछ परंपराएं ऐसी हैं, जिन्हें मृत्यु के पश्चात घर में निभाया जाता है. इसमें गरुड़ पुराण भी शामिल है. गरुड़ पुराण वेदव्यास द्वारा लिखित 18 पुराणों में से एक है. मुख्य रूप से गरुड़ पुराण को मृतक की आत्मा की शांति के उपाय के तौर पर किया जाता है. मृत्यु के पश्चात 12 से 13 दिनों तक घर में गरुड़ पुराण का पाठ किया जाता है, जिससे मृतक की आत्मा को शांति प्राप्त होती है. साथ ही मृतक के परिवार वालों को कष्ट सहने की शक्ति मिलती है.

गरुड़ पुराण में सही और गलत कर्मों की व्याख्या की गई है और कर्मों के आधार पर ही आत्मा को स्वर्ग और नर्क भेजने की बात लिखी है. गरुड़ पुराण में इंसान को बेहतर जीवन के लिए धर्म के मार्ग पर चलने का संदेश दिया है. इस पुराण में भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ और श्रीहरि की वार्तालाप के जरिए लोगों को जीवन जीने के सही तरीके, सदाचार, भक्ति, वैराग्य, यज्ञ, तप आदि के महत्व के बारे में बताया गया है.

गरुड़ द्वारा किए गए प्रश्नों-उत्तरों पर आधारित गरुड़ पुराण के अनुसार जिस मनुष्य की मृत्यु होने वाली होती है वह हिलने-डुलने में असमर्थ हो जाता है. मनुष्य के बोलने की इच्छा होने के बाद भी कुछ बोल नही पाता. मनुष्य के अंत समय में उसकी दिव्य दृष्टि उत्पन्न होती है और वह संपूर्ण संसार को एकरूप देखने लगता है. साथ ही उसकी सभी इंद्रियां भी नष्ट हो जाती हैं.

गरुड़ पुराण के अनुसार जब मृत्यु के बाद यमलोक से दो यमदूत आत्मा को साथ लेने के लिए आते हैं, जिसके बाद आत्मा शरीर को छोड़ यमदूतों के साथ यमलोक चली जाती है. यमलोक में आत्मा को 24 घंटे तक रखा जाता है, जहां उसे दिखाया जाता है कि आत्मा ने मनुष्य के रूप में अपने जीवन में क्या-क्या अच्छे और बुरे कर्म किए हैं. इसके बाद आत्मा को उसी घर में 13 दिनों तक के लिए दोबारा छोड़ दिया जाता है, जहां उसका जीवन बीता होता है. इन 13 दिनों तक आत्मा अपने परिजनों के बीच रहती है.

यह 13 दिन पूरे हो जाने के बाद आत्मा को फिर से यमलोक के रास्ते पर जाना होता है, जहां उसे तीन अलग-अलग मार्ग मिलते हैं. पहला अर्चि मार्ग यानी देवलोक की यात्रा का मार्ग, दूसरा धूम मार्ग जिसे पितृलोक का मार्ग बताया गया है और तीसरा उत्पत्ति विनाश मार्ग जो नर्क की यात्रा के लिए होता है. व्यक्ति के कर्मों के आधार पर ये निर्धारित किया जाता है कि उसे स्वर्ग लोक, पितृ लोक और नर्क लोक तीनों मार्गों में से किस मार्ग पर भेजा जाएगा. जहां अपने पाप और पुण्य को निर्धारित समय तक भोगने के बाद आत्मा को फिर से नया शरीर मिलता है.

सनातन धर्म के इस महापुराण में एक संजीवनी मंत्र भी बताया गया है, जिसे यदि सिद्ध करके मृत व्यक्ति के कान में फूंक दिया जाए तो उसके शरीर में फिर से प्राण वापस आ सकते हैं.

मंत्र है- यक्षि ओम उं स्वाहा

गरुड़ पुराण के अनुसार यदी मृत्यु के पश्चात व्यक्ति के परिजन उसके निमित्त पिंडदान नहीं करते हैं तो वह प्रेत रूप धारण कर लेती है. अत: व्यक्ति के मृत्यु के बाद 10 दिन तक पिंडदान अवश्य करने की बात गरुड़ पुराण में कही गई है. इस पिंडदान के चार भाग हो जाते हैं, जिसमें दो भाग पंचमहाभूत देह को पुष्टि देने वाले होते हैं, तीसरा भाग यमदूत का होता है और चौथा भाग प्रेत-आत्मा का होता है.

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