कई ऐतिहासिक घटनाओं की गवाह रही है कादीपुर की हवेली

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Published : Nov 26, 2020, 6:22 PM IST

delhis Havel of Kadipur witness to many historical events

संस्कृति और सांस्कृतिक विरासत को याद रखने और सहेजने के लिए 19 से 25 नवंबर तक वर्ल्ड हेरिटेज वीक मनाया जाता है. दिल्ली के कादीपुर की हवेली भी कई ऐतिहासिक घटनाओं का गवाह रही है. बताया जाता है कि यह शाहजहां काल में बनाई गई थी.

नई दिल्लीः संस्कृति और सांस्कृतिक विरासत को याद रखने और सहेजने के लिए 19 से 25 नवंबर तक वर्ल्ड हेरिटेज वीक मनाया जाता है. दिल्ली के कादीपुर की हवेली भी कई ऐतिहासिक घटनाओं का गवाह रही है. बताया जाता है कि यह शाहजहां काल में बनाई गई थी.

कई ऐतिहासिक घटनाओं की गवाह रही कादीपुर की हवेली



कई घटनाओं की गवाह है हवेली

कादीपुर गांव की हवेली काफी पुरानी है. इसका ऐतिहासिक घटनाओं से जुड़ाव भी रहा है. हवेली से जुड़े मौजूदा पीढ़ी के सदस्य हरपाल राणा बताते हैं कि 19वीं और 20वीं सदी में हवेली के चौधरी टेकचंद और चौधरी भीम सिंह ने आर्य समाज को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

Havel of Kadipur
कादीपुर की हवेली

1857 के गदर के बाद हरियाणा में 50 हजार लोगों की पंचायत का प्रतिनिधित्व भी चौधरी भीम सिंह ने किया था. शिक्षा के क्षेत्र में जाट महाविद्यालय रोहतक और गुरुकुल कांगड़ी के स्थापना में 5,100-5,100 रुपए का महत्वपूर्ण योगदान भी दिया था. वर्ष 1911 में पंचायत व्यवस्था दोबारा से शुरू कराने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. दिल्ली के पहले पांच पंचों में से एक चौधरी टेक चंद भी एक थे.

inside view of Havel of Kadipur
कादीपुर की हवेली के भीतर का हिस्सा.

राजनीति और वकालत से रहा गहरा रिश्ता

हवेली का राजनीति और वकालत से गहरा नाता रहा है. वर्ष 1911 में टेकचंद दिल्ली के पहले पंच बने. उनके भतीजे और चौधरी भीम सिंह के बेटे चौधरी रघुवीर सिंह 1945 में डिस्ट्रिक बोर्ड के निर्वाचित सदस्य बने. वर्ष 1960 में हवेली से ही जुड़े चौधरी रामकिशन सर्कल पंचायत के लिए चुने गए.

delhi's Havel of Kadipur picture of 1915
1915 में ली गई कादीपुर की हवेली

अब इस हवेली की बहू उर्मिला राणा निगम पार्षद है. वहीं, वर्ष 1924 में चौधरी भीम सिंह के बेटे चौधरी नारायण सिंह वकील बने. उन्होंंने अंग्रेजों से पंचायत व्यवस्था को लेकर समझौता कराया और लाहौर जाकर मुकदमा भी लड़ा. उनकी विरासत को चौधरी रामकिशन ने आगे बढ़ाया. अब चौधरी रामकिशन के पोते अखिल राणा परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं.

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