नई दिल्ली: कड़कड़डूमा कोर्ट ने दिल्ली हिंसा के मामले में एक दुकान में लूटपाट और आगजनी के आरोपी को जमानत दे दिया है. एडिशनल सेशंस जज विनोद यादव ने कहा कि घटना 25 फरवरी 2020 की है, जबकि दिल्ली पुलिस जो सीसीटीवी फुटेज दिखा रही है वो 24 फरवरी की है. कोर्ट ने आरोपी राशिद की पहचान करने वाले बीट कॉन्स्टेबलों की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाया है.
'वीडियो फुटेज घटनास्थल वाले दिन का नहीं'
घटना 25 फरवरी 2020 की है. शिकायतकर्ता जितेंद्र कुमार शर्मा की लिखित शिकायत पर 28 फरवरी 2020 को एफआईआर दर्ज की गई थी. शिकायतकर्ता की मैसर्स पंडित मेडिकोज नामक दुकान थी, जिसमें दंगाईयो की भीड़ ने 25 फरवरी 2020 को लूटपाट और आगजनी की. इसकी वजह से उसे बड़ा आर्थिक नुकसान झेलना पड़ा था. आरोपी राशिद की ओर से वकील सलीम मलिक ने कहा कि उसे झूठे तरीके से फंसाया गया है. आरोपी 23 साल का है जो सोनी हार्डवेयर नामक दुकान चलाता है. उसके पिता को दिल की बीमारी है. आरोपी का घटना से कोई लेना-देना नहीं है. आरोपी को पहले गोकलपुरी के दूसरे मामले में गिरफ्तार किया गया था. आरोपी का एफआईआर में नाम नहीं है और न ही उसके पास से कुछ बरामद हुआ है.
मलिक ने कहा कि 25 फरवरी को दो समुदायों के बीच तनावपूर्ण माहौल बन गया था और उसकी वजह से पत्थरबाजी शुरु हो गई थी. उन्होंने कहा कि घटना 25 फरवरी 2020 की है, लेकिन पुलिस ने जो सीसीटीवी फुटेज दिखाई है वो 24 फरवरी 2020 की है. आरोपी राशिद 15 अप्रैल से न्यायिक हिरासत में है. सलीम मलिक ने कहा कि एफआईआर दर्ज करने में तीन दिन की जो देरी हुई, उसकी कोई वजह नहीं बताई गई है.
'गवाह विश्वसनीय नहीं'
सलीम मलिक ने कहा कि आरोपी अपनी दुकान की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए हाथों में डंडा लिए हुए था. उन्होंने कहा कि कॉन्स्टेबल संजय विश्वसनीय गवाह नहीं है. उन्होंने कहा कि अगर कॉन्स्टेबल संजय ने आरोपी को घटना वाले दिन घटनास्थल पर देखा तो इसकी सूचना थाने या वरिष्ठ अधिकारियों को क्यों नहीं दी. कॉन्स्टेबल संजय के बयान 20 मार्च को दर्ज किए गए हैं.
उन्होंने कहा कि इस मामले के जो स्वतंत्र गवाहों शेखर भारद्वाज और जगदीश ने घटना की सूचना पुलिस को कॉल कर क्यों नहीं दी. यह उनकी विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करता है. उन्होंने कहा कि आरोपी के खिलाफ दर्ज को मामलों में उसे जमानत मिल चुकी है. इस मामले का एक सह-आरोपी अशरफ अली को जमानत मिल चुकी है. इस मामले में चार्जशीट दाखिल की जा चुकी है और जांच पूरी हो चुकी है. उसकी अब आगे हिरासत की जरुरत नहीं है, इसलिए उसे जमानत पर रिहा किया जाए.
'दिल्ली दंगा एक गहरी साजिश का हिस्सा'
आरोपी की जमानत का विरोध करते हुए दिल्ली पुलिस की ओर से वकील डीके भाटिया ने कहा कि उत्तर-पूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा व्यापक थी. जिसमें 53 निर्दोष लोगों की जानें गई थीं और निजी और सार्वजनिक संपत्तियों का नुकसान हुआ था. उन्होंने कहा कि दिल्ली दंगा एक गहरी साजिश का हिस्सा था. भाटिया ने कहा कि आरोपी घटनास्थल पर दंगाईयों की भीड़ में मौजूद था. ये भीड़ पत्थर, डंडों, पेट्रोल बमों, एसिड की बोतलें के साथ मौजूद थी. उन्होंने कहा कि स्वतंत्र गवाहों जगदीश और शेखर भारद्वाज ने आरोपी को दंगाईयों की भीड़ में साफ-साफ देखा था. आरोपी की पहचान बीट कांस्टेबल संजय ने की थी. उन्होंने कहा कि आरोपी दिल्ली हिंसा के दूसरे मामलों में भी आरोपी है.
सवालों के घेरे में पुलिस कॉन्स्टेबल
कोर्ट ने कहा कि आरोपी का नाम एफआईआर में नहीं है और उसके खिलाफ खास आरोप नहीं लगाए गए हैं. बीट कॉन्स्टेबल संजय की ओर से आरोपी की पहचान 20 मार्च 2020 को किया जाना संदेह से परे नहीं है. जब उन्होंने आरोपी को घटना के समय 25 फरवरी 2020 को देखा था तो उन्होंने पुलिस थाने या उच्च अधिकारियों को सूचना क्यों नहीं दी. कोर्ट ने दिल्ली पुलिस की ओर से पेश सीसीटीवी फुटेज भी सवाल उठाते हुए कहा कि घटना 25 फरवरी 2020 की है, जबकि फुटेज 24 फरवरी 2020 की है. उसके बाद कोर्ट ने आरोपी को बीस हजार रुपये के मुचलके पर जमानत देने का आदेश दिया.