नई दिल्ली: दिल्ली की वायु गुणवत्ता बहुत खराब हो (Delhi air quality poor) गई है. इंटरनेशनल मेडिटेशन फाउंडेशन ने समस्या का दीर्घकालिक समाधान खोजने के लिए एक अभियान शुरू किया है. विलायती कीकर के स्थान पर पीपल का पौधा लगाकर वायु गुणवत्ता में सुधार किया जा (Peepal tree will increase Oxygen ) सकता है. स्वामी अद्वैतानंद (Swami Advaitananda Giri) के नेतृत्व में इंटरनेशनल मेडिटेशन फाउंडेशन दिल्ली और आसपास के क्षेत्रों में अधिक से अधिक पीपल के पेड़ लगाने के लिए एक अभियान चला रहा है.
इंटरनेशनल मेडिटेशन फाउंडेशन के अध्यक्ष (chairman of the International Meditation Foundation) ने कहा कि दिल्ली के जंगल में मुख्य रूप से विलायती किकर हैं, जो इसके आस-पास अन्य पेड़ों को उगने नहीं देते हैं और अपनी गहरी जड़ों के साथ इसने जमीन को सूखा दिया है. पीपल (फिकस रिलिजिओसा) के पेड़ इसके पास बहुत अच्छी तरह से उग सकते हैं और वे किसी भी अन्य पेड़ की तुलना में तेजी से बढ़ेंगे. जैसे-जैसे ये नए पेड़ बढ़ते हैं, विलायती कीकरों को एक साथ काटा जा सकता है और अंत में हटाया जा सकता है.
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उन्होंने आगे कहा कि विलायती कीकर के स्थान पर पीपल का वृक्ष लगाने से वायु शुद्ध होगा और आक्सीजन में 40 गुना वृद्धि होगी. शोध रिपोर्टों के अनुसार विलायती किकर की कार्बन सीक्वेस्ट्रेशन क्षमता लगभग 11 प्रतिशत की तुलना में पीपल के पेड़ की कार्बन सीक्वेस्ट्रेशन क्षमता लगभग 87 प्रतिशत है. यह विलायती कीकर से करीब आठ गुना ज्यादा है. पीपल के पेड़ का आकार, इसकी छतरी विलायती कीकर से पांच गुना अधिक है. कार्बन जब्ती क्षमता का मतलब यह भी है कि पीपल 87 प्रतिशत हवा को साफ कर सकता है और समान रूप से ऑक्सीजन का उत्पादन कर सकता है.
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स्वामी अद्वैतानंद (Swami Advaitananda Giri) ने कहा कि पीपल ही एक ऐसा पेड़ है जो रात में भी ऑक्सीजन देता है, विलायती कीकर रात के समय CO2 देता है. इससे पीपल के पेड़ से मिलने वाली ऑक्सीजन की मात्रा दोगुनी हो जाती है क्योंकि दूसरे पेड़ दिन में ही ऑक्सीजन देते हैं.
भारत में वायु प्रदूषण कितना भयावह हाे गया है, इस बारे में स्वामी अद्वैतानंद गिरी ने कहा
भारत में वायु प्रदूषण हर साल 20 लाख लोगों की जान ले रहा है. डब्ल्यूएचओ के अनुसार भारत में दुनिया के सबसे अधिक पुरानी सांस की बीमारियों और अस्थमा से पीड़ित हैं. दिल्ली में खराब वायु गुणवत्ता 22 लाख या दिल्ली के सभी बच्चों के 50 प्रतिशत के फेफड़ों को अपरिवर्तनीय रूप से नुकसान पहुंचाती है.
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