नई दिल्ली: राजधानी में जाम लगने की समस्या दिनों दिन बिगड़ती जा रही है. ट्रैफिक पुलिस की तरफ से इसके लिए काफी प्रयास भी किये जाते हैं, लेकिन लोगों को राहत नहीं मिलती. लॉकडाउन के बाद यह समस्या ज्यादा होने लगी है क्योंकि सड़कों पर गाड़ियों की संख्या बढ़ गई है. ऐसे में किस तरीके से ट्रैफिक जाम को कम किया जा सकता है इसे लेकर ईटीवी भारत ने सेव लाइफ फाउंडेशन के अध्यक्ष पीयूष तिवारी से बातचीत की.
पीयूष तिवारी ने बताया कि राजधानी में सड़क बनाने के दौरान इंजीनियरिंग का अच्छे से ध्यान नहीं रखा गया है. बहुत सड़कों का डिज़ाइन बोटल नैक वाला है. सड़कें एकदम से चौड़ी हो जाती हैं जहां गाड़ियां रफ्तार से चलती है. इसके बाद अचानक सड़क सिंगल लेन की हो जाती है. इसकी वजह से वहां जाम लग जाता है. उन्होंने बताया कि दिल्ली सरकार इस समस्या को समझते हुए इससे निपटने के लिए काम कर रही है. उन्हें उम्मीद है कि दिल्ली सरकार की पहल से जल्द इस समस्या का समाधान हो सकेगा.
वाहन चालकों की लापरवाही तीसरी वजह
जाम लगने का तीसरा सबसे बड़ा कारण वाहन चालकों की लापरवाही है. देश में वाहन चालकों का प्रशिक्षण ठीक नहीं है. पीयूष तिवारी ने बताया कि दिल्ली में लोग नियमों का पालन करते हुए गाड़ी नहीं चलाते हैं. चाहे लेन ड्राइविंग करनी हो या पार्किंग, इसके लिए उन्हें ठीक से प्रशिक्षण नहीं दिया जाता है. चालकों की लापरवाही की वजह से कई जगह पर आपको जाम की समस्या देखने को मिलेगी. लोगों को लेफ्ट जाना होता है लेकिन वह अंतिम समय तक राइट में ड्राइविंग करते हैं. ऐसे में जब वह अचानक लेफ्ट मुड़ते हैं तो सड़क हादसा या जाम की समस्या हो जाती है. सरकार को चाहिए कि वह अच्छे से प्रशिक्षण के बाद ही ड्राइविंग लाइसेंस दे.
एक गाड़ी घेरती है एलआईजी फ्लैट की जगह
पीयूष तिवारी ने बताया की राजधानी में एक गाड़ी लगभग एलआईजी फ्लैट के जितनी जगह घेरती है. एक गाड़ी घर एवं दफ्तर में पार्किंग की जगह के साथ ही बाजार में भी पार्किंग का इस्तेमाल करती है. तीनों जगह को अगर जोड़ लिया जाए तो इतनी जगह में एलआईजी फ्लैट बन सकता है. ऐसा देखने में आता है कि लोग सड़क पर कहीं भी अपनी गाड़ी को खड़ा कर देते हैं. इसकी वजह से बहुत सी जगह पर आपको जाम की समस्या देखने को मिल जाएगी. लोग सड़कों पर ही गाड़ी की लेन बनाकर उसे खड़ा कर देते हैं जिसकी वजह से जगह-जगह जाम लगता है. इससे निपटने के लिए गलत पार्किंग पर जुर्माने की राशि को बढ़ाना होगा जैसा विदेशों में होता है.