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NewYear2022 : तू नया है तो दिखा सुबह नई, शाम नई ...

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Published : Jan 1, 2022, 1:55 PM IST

Updated : Jan 1, 2022, 2:11 PM IST

FIRST PUNCH ON NEW YEAR CELEBRATION
FIRST PUNCH ON NEW YEAR CELEBRATION

'इस गए साल बड़े जुल्म हुए हैं मुझ पर, ऐ नए साल मसीहा की तरह मिल मुझ से' शायर सरफराज़ नवा़ज़ के इस शेर में कोरोना काल में बीते साल और नए साल से उम्मीदों की बानगी नज़र आती है. अक्स़र हम गुजरे साल की बुरी यादों से आज़ाद होने को जश्न के अंदाज में नया साल मनाते हैं, लेकिन ये दौर कुछ अलग है जहां बीते साल की बुरी यादें सबक बनकर साथ चल रही हैं और नए साल में भी पाबंदियों का पहरा है. कोरोना काल में नए साल के मायने क्या हैं, पढ़िए दिल्ली स्टेट एडिटर विशाल सूर्यकांत के इस आलेख में...

- विशाल सूर्यकांत

नई दिल्ली: हर साल नई जनवरी नया सपना दिखाती है और गुजरता दिसंबर बीते वक्त का आईना. कोरोना काल में बीते दो सालों में हमने नए सपने भी देखे और गुजरे वक्त के आईने भी. दोनों मर्तबा हमारी शक्ल पर लापरवाहियों की गर्द के सिवा कुछ नहीं दिखा.

कोरोना ने बता दिया कि हमारी प्राथमिकताएं कहां होनी चाहिए थी और हम किन बातों को प्राथमिक बना बैठे हैं. किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि इतनी बड़ी आबादी को संभालने वाले महानगरों में बीमारी फैलने पर हमें संभालने वाला स्वास्थ्य महकमा पंगु नजर आएगा. देश की राजधानी में ही ऑक्सीजन के सिलेंडर के लिए मारामारी हो जाएगी. अस्पतालों में एक अदद बेड नहीं मिलने से अपनों की सांसें टूट जाएंगी. मरने के बाद भी लाशें अंतिम संस्कार के लिए कतारों में लगाई जाएंगी.

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कोरोना मरीज का इलाज.

आंकडों की नजर से देख लीजिए, जहां देश में अब तक कोरोना तीन करोड़ से ज्यादा लोगों को अपनी चपेट में ले चुका है और चार लाख से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं. गुजरते दिसंबरों के आईने में हमने अपनी जिंदगियों की ये स्याह हकीकतें देखी हैं. जहां परिवारों के चिराग़ हमेशा के लिए बुझ गए. हंसते-खेलते परिवारों में अनाथ बच्चों की मायूसी का मातम पसरा है. दिल्ली सरकार के महिला एवं बाल विकास विभाग का सरकारी आंकडा है कि दिल्ली में ही कोरोना पांच हजार 640 बच्चों से माता और पिता का साया छिन कर उन्हें अनाथ कर गया. 273 ऐसे बच्चें हैं जिनके माता या पिता में से कोई एक परिजन असमय मौत का शिकार बन गया.

देश में चुनावी दौर में नेता और त्योहारों में जनता अपना विवेक खो देती है. कोरोना के मामले में सरकार, सिस्टम के आश्वासनों पर यकीन करना मुश्किल हैं. इनके दावों और वादों पर निर्भर रहने के बजाए वक्त खुद सतर्क हो जाने का है. मास्क लगाना वैक्सीन से भी बेहतर ईलाज है, लेकिन अभी भी बड़ी तादाद में लोग इस समझदारी को नहीं अपना रहे हैं और ऐसे लोगों को सरकार की पाबंदियां और नियम-कायदे भी डरा नहीं पा रहे हैं. ये हाल तो तब है जब दिल्ली में कोरोना से अब तक 25 हजार से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं और 14 लाख से ज्यादा लोग संक्रमित हो चुके हैं. लेकिन अब भी न दिल्ली की मंडियों में मास्क की सावधानी दिख रही है और न ही दिल्ली के बाजार, मेट्रो, बस स्टेशनों पर सोशल डिस्टेंसिंग का ख्याल है.

FIRST PUNCH ON NEW YEAR CELEBRATION
कोरोना की तीसरी लहर में लोग हुए थे परेशान

वक्त रहते, दिल्ली को ओमीक्रोन के कम्युनिटी स्प्रेड के खतरे से बचाया नहीं गया तो हालात भयावह होंगे. हम किसी बड़े संकट के मुहाने पर हैं और बचाव का जरिया सामाजिक जागरूकता है. दिल्ली के धार्मिक, सामाजिक और राजनीतिक लीडर्स अपने-अपने प्रभाव क्षेत्र में नए साल पर ये मुहिम चलाएं कि मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग की पालना हर हाल में होगी.

हमारी जागरूकता और सतर्कता दिल्ली को अनहोनी से बचा सकती है. वक्त बीते सालों की लापरवाहियों से सबक लेकर आगे बढ़ने का है क्योंकि कोरोना न जाति देख रहा है न आबादी, न धर्म देख रहा है और न ही आपका कर्म. 2021 की जनवरी में हमनें कोरोना से जंग जीत जाने के सपने देखे थे लेकिन दिसंबर में सामने हकीकतों ने उन सपनों को चूर-चूर कर दिया. कोरोना से लड़ने में थालियां बजाई, मोमबत्तियां जलाई, लेकिन मन में जागरुकता की अलख जगाना भूल गए. 2022 की नई जनवरी इस अलख को फिर जलाने का मौका दे रही है. सचेत हो जाइए ताकि इस साल के गुजरते दिसंबर के आईने में हम अपना उजला चेहरा देख पाएं. नए साल की सुबह हमें सिर्फ कलेंडर नहीं बल्कि हमारा मुकद्दर भी बदलना है. इन्हीं हालातों के लिए शायद फैज़ लुधियानवी लिख गए-

तू नया है तो दिखा सुब्ह नई, शाम नई

वर्ना इन आंखों ने देखे हैं नए साल कई..

Last Updated :Jan 1, 2022, 2:11 PM IST
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