नई दिल्लीः दिल्ली में अक्सर अक्टूबर-नवंबर माह के बीच किसानों द्वारा जलाई जाने वाली पराली से होने वाले प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है. इसे नियंत्रण करने को लेकर सरकारें अपने स्तर पर काफी प्रयास कर रही हैं. वहीं गुरु गोविंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय से संबद्ध महाराजा अग्रसेन कॉलेज के एक छात्र रुद्रांश गर्ग ने पराली से थर्माेकोल का विकल्प बनाया है.
पराली से थर्माेकोल का विकल्प बनाने वाले छात्र रुद्रांश गर्ग से ईटीवी भारत ने बात की. रुद्रांश ने बताया कि दिल्ली में अक्टूबर-नवंबर माह में प्रदूषण बहुत बड़ी समस्या हो जाती है. उन्होंने कहा कि वर्ष 2019 में दिल्ली को सबसे प्रदूषित शहरों में से एक बताया गया जिसे काफी चिंता हुई. पराली की समस्या को दूर करने को लेकर किसानों से 6 माह तक बात की कि वह पराली को क्यों जलाते हैं. इस दौरान पता चला कि उन्हें भी पता है कि पराली जलाने से पर्यावरण दूषित होता है. लेकिन इसका कोई और विकल्प नहीं होने की वजह से वह इसे जला देते हैं.
किसान पराली ना जलाएं और उससे उन्हें मुनाफा हो इस पर शोध किया. रुद्रांश ने कहा कि उसके बाद यह सोचा कि पराली से क्यों ना सामान पैक करने का विकल्प बनाया जाए. उन्होंने कहा कि मशरूम टेक्नोलॉजी का उपयोग करते हुए सामान पैक करने के लिए थर्माेकोल का विकल्प बनाया है. इस प्रोडक्ट को आगे बढ़ाने के लिए कई सारी संस्थाएं आगे आई हैं.
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रुद्रांश ने बताया कि दो वर्ष पहले कंपनी की शुरुआत की है. पैकेजिंग के लिए काफी अधिक मांग आ रही है. इसके अलावा उन्होंने कहा कि वस्तु के हिसाब से पैकेजिंग की कीमत होती है. लेकिन इसकी कीमत थर्माेकोल से थोड़ी सी अधिक है. साथ ही कहा कि पराली से बने पैकेजिंग प्रोडक्ट को आसानी से कहीं पर ले जा सकते हैं और कहीं पर भी रखा जा सकता है. इसके अलावा उन्होंने कहा कि यह प्रोडक्ट फायर रजिस्टेंस वॉटर रेजिस्टेंस भी है.