नई दिल्ली : महात्मा ज्योतिराव गोविंदराव फुले, जिन्हें महात्मा फुले या ज्योतिबा फुले के नाम से भी जाना जाता है. महिलाओं की दशा सुधारने और उन्हें शिक्षित करने की दिशा में ज्योतिबा फुले ने साल 1854 में एक कन्या स्कूल खोला, जो देश का पहला महिला विद्यालय था. लड़कियों को पढ़ाने के लिए अध्यापिका नहीं मिली तो उन्होंने कुछ दिन खुद ही उन्हें पढ़ाया और अपनी पत्नी सावित्री बाई को इस योग्य बनाया कि वे दूसरों को पढ़ा सकें. सावित्री बाई ने उनके विद्यालय में महिलाओं को पढ़ाने का काम किया और देश की पहली महिला अध्यापिका बनीं और देश की पहली शिक्षित महिला भी.
लेकिन यह इतना आसान कहां था, उन्हें समाज की ओर से बहुत कुछ सुनना पड़ता था. खासतौर पर प्रबुद्ध समाज उनके खिलाफ हो गया था. सावित्री बाई पढ़ाने के लिए जब स्कूल जातीं तो उन्हें गोबर फेंक कर मारा जाता था. प्रबुद्ध समाज द्वारा उन्हें डराया और धमकाया जाता था. ज्योतिबा के घर वालों को परेशान किया जाता था, जिस वजह से ज्योतिबा को उनके पिता ने उन्हें पत्नी सहित घर से निकाल दिया था. यहां तक कि उन्हें जान से मारने के भी प्रयत्न किए गए, लेकिन ज्योतिबा ने हिम्मत नहीं हारी और जल्द ही एक के बाद एक तीन बालिका विद्यालय खोले और महिलाओं की शिक्षा को प्राथमिकता के तौर पर आगे बढ़ाते रहे.
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महात्मा फुले ने केवल महिलाओं की शिक्षा पर ही काम नहीं किया, बल्कि उन्होंने समाज में फैली जाति-प्रथा, छुआछूत और धार्मिक कट्टरता के खिलाफ भी लड़ाई लड़ी. उन्होंने निर्धन और निर्बल लोगों को न्याय दिलाने के लिए 1873 में 'सत्यशोधक समाज' की स्थापना की. ज्योतिबा फुले को उनके नि:स्वार्थ समाज सेवा को देखते हुए 1888 में मुंबई की एक विशाल जनसभा में उन्हें 'महात्मा' की उपाधि से नवाजा गया. यही नहीं उन्होंने धार्मिक कट्टरता की भी खिलाफत की और बिना पुरोहित के विवाह संस्कार शुरू करवाया. उनके इस कृत्य को बॉम्बे हाईकोर्ट ने बिना शर्त मान्यता दी. ज्योतिबा फुले बाल-विवाह विरोधी और विधवा विवाह के समर्थक थे.
महात्मा ज्योतिबा फुले का जन्म 1827 में पुणे में हुआ था. जब वह एक साल के थे तभी उनकी माता का निधन हो गया. इनका लालन-पालन एक बाई ने किया. उनका परिवार कई पीढ़ी पहले सतारा से पुणे आकर फूलों के गजरे बनाने का काम करता था. इसलिए माली के काम में लगे ये लोग 'फुले' के नाम से जाने जाते थे. बतौर समाज सुधारक ज्योतिबा फुले का मकसद समाज में फैली कुप्रथा से लोगों को मुक्त कराना था. फुले ने अपनी पूरी जिंदगी धार्मिक कट्टरता, स्त्री पुरुष समानता, स्त्री शिक्षा जैसे कार्यों में समर्पित कर दी. उनकी मृत्यु 28 नवंबर 1890 को पुणे में हुई थी.
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