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#Positive Bharat Podcast: जंग, साहस और वीरता की सच्ची कहानी, सुनिए जांबाज लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल की शौर्य गाथा

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Published : Oct 8, 2021, 8:44 AM IST

Second Lieutenant Arun Khetarpal story
जांबाज लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल की शौर्य गाथा

आज के पॉजिटिव भारत पॉडकास्ट में कहानी उस वीर भारतीय सैनिक की, जिसने अपनी छोटी सी उम्र में 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान वो कारनामा कर दिखाया, जिस पर हम भारतीयों को आज भी नाज है. आज के पाॅडकास्ट में कहानी भारत के सबसे कम उम्र के परमवीर चक्र विजेता अरुण खेत्रपाल की.

नई दिल्ली: शहादत को याद करने का कोई वक्त नहीं होता. यह वो किस्से और कहानियां हैं, जो केवल नसीब वालों के हिस्से में होती हैं. यह उन जांबाजों की दास्तान है, जिनकी बहादुरी के कारण आज हम सुरक्षित हैं. यह वो शख्सियत हैं, जिन्होंने हमारे आज के लिए अपने कल को कुर्बान किया.

यह चेहरे आज भले ही हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन इनके साहसिक कारनामों की गूंज आज भी हमें सुनाई देती है. तो चलिए आज के इस पॅाडकास्ट में एक ऐसे ही सिपाही की कहानी सुनें, जिसने 21 साल की छोटी सी उम्र में वो गाथा लिखी, जिससे वह हर नौजवान के लिए साहस का पर्यायवाची सिद्ध हुए. आज के पॅाडकास्ट में कहानी भारत के सबसे कम उम्र के परमवीर चक्र विजेता अरुण खेत्रपाल (Arun Khetrapal) की.

जांबाज लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल की शौर्य गाथा

साल 1971, भारत-पाकिस्तान युद्ध (India Pakistan war). रण मैदान में हिंदुस्तान और पाक सैनिक आमने सामने थे, लड़ाई में पाकिस्तान (India Pakistan war 1971) के पास 5 बटालियन थीं और हिंदुस्तान के पास सिर्फ तीन. 17 पूना हॉर्स के सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल (Second Lieutenant Arun Khetrapal) को पाकिस्तानी 13 लांसर्स के पैटर्न टैंक्स की कतार को रोकने की जिम्मेदारी दी गई. अपने टैंक के अंदर तंग सी जगह में बैठे सेकेंड लेफ्टिनेंट अरुण खेत्रपाल ने एक के बाद एक पाकिस्तान के कई टैंक ध्वस्त कर रहे थे. इसी बीच पाकिस्तान टैंकों की तरफ से फेंका हुआ एक गोला उनकी टैंक पर आ गिरा और उनके टैंक में आग लग गई.

उस वक्त यह देख उनके साथी कैप्टन मल्होत्रा (Captain Malhotra with Second Lieutenant Arun Khetrapal) ने कहा कि 'टैंक छोड़कर बाहर निकल जाओ, टैंक से दूर चले जाओ, इसके पास रहना खतरे से खाली नहीं है', लेकिन अरुण ने पीछे हटने से मना कर दिया (Second Lieutenant Arun Khetrapal Bravery) . उन्हें यह बिल्कुल भी स्वीकार नहीं था कि वे अपने कदम पीछे लें. रेडियो पर अरुण ने जवाब दिया 'सर, मेरी गन अभी फायर कर रही है, जब तक ये काम करती रहेगी, मैं फायर करता रहूंगा' औऱ उसके बाद अपना रेडियो सेट ऑफ़ कर दिया.

इसके बाद वह सोचने लगे कि अगर वो 75 गज़ की दूरी पर आते हुए टैंक पर सही निशाना लगा लेते हैं, तो उनके द्वारा ध्वस्त किए हुए टैंकों की संख्या पांच हो जाएगी. तभी अचानक तीखी सीटी की आवाज़ के साथ एक गोला पाकिस्तान की ओर से खेत्रपाल के टैंक को भेदता हुआ निकल गया और छोटी सी उम्र में अरुण वीरगति (Second Lieutenant Arun Khetrapal Martyr Story) को प्राप्त हो गए.

भारत के सबसे कम उम्र के परमवीर चक्र विजेता अरुण खेत्रपाल की यह कहानी आज अजर और अमर है, जो हमें यह सिखाती है कि कोई काम उम्र का मोहताज नहीं, हारा वही जो लड़ा नहीं.

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