नई दिल्ली: पिछले कुछ दिनों से मीडिया में लगातार भारतीय कप्तान विराट कोहली के कप्तानी से इस्तीफे की चर्चाएं हो रही थी. उनके कई फैन्स, प्रशंसक और भारतीय दर्शक इस खबर को महज अफवाह बता रहे थे, लेकिन बीते गुरुवार को विराट कोहली ने इस पर मुहर लगाते हुए अपने सोशल मीडिया पर टी-20 फॉर्मेट की कप्तानी से इस्तीफा देने की जानकारी दी. ऐसे में आइये विराट का यह सफर कैसा रहा इस पर एक नजर डाले.
इस बेहतरीन खिलाड़ी की कहानी की शुरुआत 5 नवंबर 1988 दिल्ली के उत्तम नगर से होती है. विराट कोहली का जन्म दिल्ली के ही एक पंजाबी परिवार में हुआ था. उनके पिता 'प्रेम कोहली' पेशे से एक वकील थे और उनकी मां 'सरोज' एक हाउस वाइफ. विराट अपने परिवार में सबसे छोटे हैं, उनका एक बड़ा भाई और एक बड़ी बहन है. विराट की मां कहती हैं कि जब वह 3 साल के थे तभी से उन्होंने बैट पकड़ लिया था और अपने पापा को अपने साथ खेलने के लिए हमेशा परेशान करते थे.
विराट की स्कूलिंग दिल्ली के विशाल भारतीय पब्लिक स्कूल से हुई. उन्हें पढ़ने लिखने का शौक तो था लेकिन अक्सर क्रिकेट के आगे सब कुछ भूल जाते थे. विराट को क्रिकेट खेलते देख उनके मिलने वाले उनकी प्रशंसा करते नहीं थकते थे. लोग हैरान थे कि इतनी कम उम्र में ऐसी खेल प्रतिभा होना वाकई कमाल है. उनकी इस रुचि को देख विराट के पड़ोसियों का कहाना था कि उन्हें गली क्रिकेट में समय व्यर्थ नहीं करना चाहिए, बल्कि किसी अच्छी एकेडमी से जुड़ कर प्रोफेशनल तरीके से क्रिकेट सीखना चाहिए. विराट की खेल प्रतिभा का गवाह उनका परिवार भी था. ऐसे में लोगों के कहने पर उनके पिता ने विराट को 9 साल की छोटी उम्र में दिल्ली क्रिकेट एकेडमी भेज दिया. जहां विराट ने उनके कोच राजकुमार शर्मा से ट्रेनिंग ली. एकेडमी में गली क्रिकेट के मुकाबले कई कड़े आयाम थे, जिसके लिए पहले से कहीं ज्यादा मेहनत और लगन की जरुरत थी. विराट इस बात को समझ गए थे और अब वह इसके लिए तैयार भी थे.
विराट ने असल मायने में अपनी प्रोफेशनल क्रिकेट की शुरुआत 2002 में की जब उन्हें पहली बार दिल्ली के अंडर-15 में शामिल किया गया था. फिर साल 2004 के अंत तक उन्हें दिल्ली अंडर-17 का सदस्य बना दिया गया.
सब कुछ सही चल रहा था, फिर 18 दिसंबर 2006 के एक दिन अचानक ब्रेन स्ट्रोक की वजह से कुछ दिन बीमार रहने के बाद उनके पिता की मृत्यु हो गई, जिसका विराट के जीवन पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा.
विराट आज भी अपनी सफलता के पीछे अपने पिता का हाथ बताते हैं. कोहली का कहना है कि वह समय मेरे और मेरे परिवार के लिए काफी मुश्किल था. आज भी उस समय को याद करते हुए मेरी आंखें नम हो जाती हैं. बचपन से ही उनके क्रिकेट प्रशिक्षण में उनके पिता की अहम भूमिका रही थी. अपने पिता की मृत्यु के बाद विराट अंदर से टूट चुके थे लेकिन फिर भी उन्होंने अपने खेल को जारी रखा.
जुलाई 2006 में विराट कोहली को भारतीय टीम के अंडर-19 में खेलने का मौका मिला, जिससे वह अपने पहले विदेशी टूर पर इंग्लैंड गए, जहां उनका प्रदर्शन काबिले तारीफ रहा. फिर उनके अच्छी पर्फोमन्स को देख मार्च 2008 में कोहली को भारत के अंडर-19 टीम का कप्तान बना दिया गया. उन्होंने मलेशिया अंडर-19 वर्ल्ड कप की कप्तानी की, जिसमें उनका प्रदर्शन चौंकाने वाला था. लोगों ने इस मैच के खत्म होने तक यह समझ लिया था कि अब शायद भारतीय टीम को एक उम्दा खिलाड़ी मिलने जा रहा है.
फिर एक साल बाद विराट कोहली को 2009 में इंडियन क्रिकेट टीम में श्रीलंका दौरे के लिए चुना गया. इस टूर की शुरुआत में उन्हें टीम इंडिया के टीम A के तरफ से खेलने का अवसर मिला था.
इस दौरान वो दौर भी आया जब भारतीय टीम के ओपनर सलामी बल्लेबाज 'वीरेंद्र सहवाग' और 'सचिन तेंदुलकर' दोनों घायल हो गए थे, तब टीम पर पर्फोमेन्स प्रेशर बढ़ गया. ऐसे में तब विराट को उनकी जगह पर पहली बार भारतीय टीम में खेलने का अवसर मिला. इस टूर में उन्होंने अपना पहला एकदिवसीय अर्ध शतक मारा था और इस सीरीज में भारत की जीत हुई थी.
इस के बाद से विराट ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा और निरंतर तेज गति से अपने खेल की बदौलत क्रिकेट में लोकप्रियता हासिल की और भारत की कई जीत के साक्षी रहे.