नई दिल्लीः कॉमनवेल्थ गेम 2022 में कुश्ती में कांस्य पदक जीतने वाली दिल्ली की दिव्या काकरान (Wrestler Divya Kakran) इन दिनों सुर्खियों में है. दरअसल, इसकी वजह दिव्या का कॉमनवेल्थ गेम्स में पदक जीतने के साथ-साथ दिल्ली सरकार के साथ टकराव की स्थिति भी है. ईटीवी भारत ने उनसे उनके करिअर के लिए किए गए संघर्ष से लेकर हालिया विवाद पर खास बातचीत की. साथ ही उनके पिता सूरज काकरान से भी हरेक मुद्दों को इस बातचीत के जरिए समझने की कोशिश की गई.
दिव्या ने बताया कि उसके लिए यहां तक का सफर इतना आसान नहीं रहा. यहां तक पहुंचने के लिए उसने काफी संघर्ष किया है. उन्होंने बताया कि उसके पिता लंगोट बेच कर परिवार का जीवन यापन करते थे. मां रातभर जगकर लंगोट को सिलती थी. उसके पास इतने पैसे नहीं होते थे कि वह ट्रेन की टिकट कटा सके. दंगल में भाग लेने के लिए उसे दिल्ली से बाहर जाना पड़ता था तो वह ट्रेन के शौचालय के पास बैठ कर जाती थी. उन्होंने बताया कि यहां तक पहुंचाने के लिए उसके परिवार ने काफी संघर्ष किया है.
दिव्या ने आगे बताया कि 2011 से 2017 के दौरान उसने 58 मेडल दिल्ली के लिए जीता. लेकिन इस दौरान उनका सफर इतना आसान नहीं रहा. हर प्रतिस्पर्धा के लिए उसने कड़ी मेहनत की. 2017 में उसने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से मुलाकात की. उन्होंने सरकार की तरफ से हर मदद का भरोसा दिलाया था, लेकिन उसे कोई मदद नहीं मिली. मजबूर होकर उसने उत्तर प्रदेश की तरफ से कुश्ती लड़ने का फैसला लिया. यूपी सरकार की तरफ से उसे बहुत कुछ मिला, जिसकी वह हकदार थी. 2019 में रानी लक्ष्मीबाई अवार्ड से उसे सम्मानित किया गया. 2020 में उसे यूपी सरकार की तरफ से 20,000 रुपये प्रति महीना आजीवन पेंशन देने की घोषणा की गई. अब कॉमनवेल्थ गेम में मेडल जीतने के बाद यूपी सरकार की तरफ से 50 लाख और गजेटेड ऑफिसर रैंक की नौकरी देने का वादा किया गया है.
दिव्या ने आगे बताया कि दिल्ली की बेटी होने के नाते दिल्ली सरकार की तरफ से उसे कोई मदद नहीं मिली. न तो उसे सम्मान राशि दी गई और ना ही उसे सम्मानित किया गया. आज जब वह कॉमनवेल्थ गेम में कांस्य पदक देश के लिए जीती है और दिल्ली सरकार से अपना हक मांग रही है तो उस पर राजनीति करने का आरोप लगाया जा रहा है. उन्होंने कहा कि वह खिलाड़ी है और उसे खेल का मैदान पसंद है. उसे न तो राजनीति आती है और न वह राजनीति करना चाहती है. मेरी दिल्ली सरकार से यही मांग है कि उसका जो हक है उसे दिया जाए.
23 वर्षीय रेसलर दिव्या ने कहा कि कई ऐसे खिलाड़ी हैं, जो दिल्ली में रहते हैं लेकिन दूसरे राज्यों में खेलते हैं. उसे भी सम्मान राशि दिल्ली सरकार की तरफ से दिया जा रहा है. उसी तरह से उसे भी उसका हक मिलना चाहिए. उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश ने उसे सम्मान दिया है इसलिए वह अब उत्तर प्रदेश के लिए ही खेलेगी. उन्होंने बताया कि उसका अगला लक्ष्य एशियन गेम और ओलंपिक में मेडल जीतना है.
ये भी पढ़ेंः केजरीवाल का केंद्र पर हमला, क्या फंड की कमी से मुफ्त की सभी योजनाएं बंद की जा रहीं
दिव्या के पिता सूरज काकरान ने ईटीवी भारत से बताया कि उनकी बेटी ने आठ साल की उम्र से संघर्ष कर इस मुकाम तक पहुंची है. दिव्या दिल्ली की बेटी है और वह लोग दिल्ली के गोकलपुरी में वर्ष 2000 में आये थे तब से दिल्ली के होकर रह गए. दिल्ली में वह लोग आज भी किराए के मकान में रह रहे हैं. लेकिन आज दिल्ली सरकार को उसे दिल्ली में रहने का सबूत देना पड़ रहा है. उनकी बेटी ने मेहनत कर 50 से ज्यादा मेडल दिल्ली के लिए जीता है. लेकिन आज इस बात का दुख है कि उसकी बेटी ने देश का नाम रोशन किया लेकिन दिल्ली में रहने के बावजूद दिल्ली सरकार के तरफ से उसे कोई सम्मान नहीं मिला. उन्होंने कहा कि वह चाहते हैं कि दिल्ली सरकार दिव्या को दिल्ली की बेटी माने और उसे सम्मान दे.