ETV Bharat / city

#etvbharatdharma: रूप चतुर्दशी पर निखरेगा रूप...यम की होगी पूजा

author img

By

Published : Nov 3, 2021, 6:03 AM IST

Updated : Nov 3, 2021, 10:46 AM IST

छोटी दीपावली (choti diwali ) को नरक चतुर्दशी (narak Chaturdashi) के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करने से लोगों को नर्क की यातनाऐं नहीं भोगनी पड़ती हैं. शास्त्रों में कहा गया है कि धन की देवी मां लक्ष्मी जी उसी घर में रहती हैं, जहां सुंदरता और पवित्रता होती है. लोग लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए घरों की सफाई और सजावट करते हैं.

छोटी दीपावली
छोटी दीपावली

नई दिल्लीः छोटी दीपावली (choti diwali ) , जिसे शास्त्रों में नरक चतुर्दशी (narak Chaturdashi) के नाम से भी जाना जाता है. कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरक चतुर्दशी, यम चतुर्दशी या फिर रूप चतुर्दशी भी कहते हैं. इस दिन यमराज की पूजा करने और उनके लिए व्रत करने का विधान है. ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास ने बताया कि रूप चतुर्दशी तीन नवंबर बुधवार को सर्वार्थसिद्धि योग में मनाया जाएगा. इस दौरान घरों में अभ्यंग स्नान होगा. सभी लोग सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान और पूजन करेंगे. इस दौरान लोग उबटन लगाकर स्नान करेंगे.

स्त्रियों के लिए यह पर्व खास होगा. दरअसल स्त्रियां सज संवरकर पूजा -अर्चना करेंगी. सड़कों, घरों, भवनों में दीपावली की जगमग रहेगी. शाम होते ही वातावरण झिलमिलाने लगेगा. दरअसल, रूप चतुर्दशी को लेकर मान्यता है कि इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करने से लोगों को नर्क की यातनाऐं नहीं भोगनी पड़ती हैं. इस दिन लोग उबटन से स्नान करते हैं. स्नान के बाद दीपदान होता है. श्रद्धालु महिलायें घर आंगन को रंगोली से सजाती हैं. रूप चतुदर्शी (Roop Chaturdashi ) के अलगे दिन कार्तिक अमावस्या पर लक्ष्मी पूजन किया जाता है. ऐसे में यह दीपावली की शुरूआत होती है. रूप चतुर्दशी पर स्नान के दौरान लोग पटाखे चलाकर उत्साह मनाते हैं.

छोटी दीपावली

ज्योतिषाचार्य ने बताया कि माना जाता है कि महाबली हनुमान का जन्म इसी दिन हुआ था, इसीलिए इस दिन बजरंगबली की भी विशेष पूजा की जाती है. शास्त्रों में कहा गया है कि धन की देवी मां लक्ष्मी जी उसी घर में रहती हैं, जहां सुंदरता और पवित्रता होती है. लोग लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए घरों की सफाई और सजावट करते हैं. इसका अर्थ ये भी है कि वो नरक यानी के गंदगी का अंत करते हैं. इस दिन रात को तेल अथवा तिल के तेल के 14 दीपक जलाने की परंपरा है.


ये भी पढ़ें-#etvbharatdharma: धनतेरस पर मां लक्ष्मी का पूजन घर में लाता है वैभव...

देवी लक्ष्मी धन की प्रतीक हैं. धन का अर्थ केवल पैसा नहीं होता. तन-मन की स्वच्छता और स्वस्थता भी धन का ही कारक हैं. धन और धान्य की देवी लक्ष्मी जी को स्वच्छता अतिप्रिय है. धन के नौ प्रकार बताए गए हैं. ये प्रकृति, पर्यावरण, गोधन, धातु, तन, मन, आरोग्यता, सुख, शांति और समृद्धि हैं. लंबी उम्र के लिए नरक चतुर्दशी के दिन घर के बाहर यम का दीपक जलाने की परंपरा है.

मान्यता के अनुसार, हिरण्यगभ नाम के एक राजा ने राज-पाट छोड़कर तप में विलीन होने का फैसला किया. कई वर्षों तक तपस्या करने की वजह से उनके शरीर में कीड़े पड़ गए. इस बात से दुखी हिरण्यगभ ने नारद मुनि से अपनी व्यथा कही. नारद मुनि ने राजा से कहा कि कार्तिक मास कृष्ण पक्ष चतुर्दशी के दिन शरीर पर लेप लगाकर सूर्योदय से पूर्व स्नान करने के बाद रूप के देवता श्री कृष्ण की पूजा करें. ऐसा करने से फिर से सौन्दर्य की प्राप्ति होगी. राजा ने सबकुछ वैसा ही किया जैसा कि नारद मुनि ने बताया था. राजा फिर से रूपवान हो गए, तभी से इस दिन को रूप चतुर्दशी भी कहते हैं.

ये भी पढ़ें-#etvbharatdharma: नवंबर में इन तीन ग्रहों का बन रहा शुभ संयोग

जब भगवान विष्णु ने वामन अवतार लेकर दैत्यराज बलि से तीन पग धरती मांगकर तीनों लोकों को नाप लिया तो राजा बलि ने उनसे प्रार्थना की- 'हे प्रभु! मैं आपसे एक वरदान मांगना चाहता हूं. आप मुझसे प्रसन्न हैं तो वर देकर कृतार्थ कीजिए. तब भगवान वामन ने पूछा- क्या वरदान मांगना चाहते हो, राजन? दैत्यराज बलि बोले- प्रभु! आपने कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से लेकर अमावस्या की अवधि में मेरी संपूर्ण पृथ्वी नाप ली है, इसलिए जो व्यक्ति मेरे राज्य में चतुर्दशी के दिन यमराज के लिए दीपदान करे, उसे यम यातना नहीं होनी चाहिए और जो व्यक्ति इन तीन दिनों में दीपावली का पर्व मनाए, उनके घर को लक्ष्मीजी कभी न छोड़ें. राजा बलि की प्रार्थना सुनकर भगवान वामन बोले- राजन! मेरा वरदान है कि जो चतुर्दशी के दिन नरक के स्वामी यमराज को दीपदान करेंगे, उनके पितर कभी नरक में नहीं रहेंगे और जो व्यक्ति इन तीन दिनों में दीपावली का उत्सव मनाएंगे, उन्हें छोड़कर मेरी प्रिय लक्ष्मी अन्यत्र न जाएंगी. भगवान वामन द्वारा राजा बलि को दिए इस वरदान के बाद से ही नरक चतुर्दशी के दिन यमराज के निमित्त व्रत, पूजन और दीपदान का प्रचलन आरंभ हुआ, जो आज तक चला आ रहा है.

कथा के मुताबिक, प्रागज्योतिषपुर नगर का राजा नरकासुर नामक दैत्य था. उसने अपनी शक्ति से इंद्र, वरुण, अग्नि, वायु आदि सभी देवताओं को परेशान कर दिया था. वह संतों को भी त्रास देने लगा. महिलाओं पर अत्याचार करने लगा. जब उसका अत्याचार बहुत बढ़ गया तो देवता व ऋषिमुनि भगवान श्रीकृष्ण की शरण में गए. भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें नरकासुर से मुक्ति दिलाने का आश्वासन दिया, लेकिन नरकासुर को स्त्री के हाथों मरने का श्राप था. भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा को सारथी बनाया तथा उन्हीं की सहायता से नरकासुर का वध किया. इस प्रकार श्रीकृष्ण ने कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरकासुर का वध कर देवताओं व संतों को उसके आतंक से मुक्ति दिलाई. उसकी खुशी में दूसरे दिन अर्थात कार्तिक मास की अमावस्या को लोगों ने घरों में दीएं जलाए. तभी से नरक चतुर्दशी तथा दीपावली का त्योहार मनाया जाने लगा.

रूप चौदस की रात मान्यतानुसार, घर का सबसे बुजुर्ग पूरे घर में एक दिया जलाकर घुमाता है और फिर उसे घर से बाहर कहीं दूर जाकर रख देता है. इस दिये को यम दीया कहा जाता है. इस दौरान घर के बाकी सदस्य अपने घर में ही रहते हैं. ऐसा माना जाता है कि इस दिए को पूरे घर में घुमाकर बाहर ले जाने से सभी बुरी शक्तियां घर से बाहर चली जाती हैं.

इस दिन जहां घर की सफाई की जाती है, वहीं घर से हर प्रकार का टूटा-फूटा सामान भी फेंक देना चाहिए. घर में रखे खाली पेंट के डिब्बे, रद्दी, टूटे-फूटे कांच या धातु के बर्तन, किसी प्रकार का टूटा हुआ सजावटी सामान, बेकार पड़ा फर्नीचर व अन्य प्रयोग में न आने वाली वस्तुओं को यमराज का नरक माना जाता है, इसलिए ऐसी बेकार वस्तुओं को घर से हटा देना चाहिए.

इस दिन शाम को चार बत्ती वाला मिट्टी का दीपक पूर्व दिशा में अपना मुख करके घर के मुख्य द्वार पर रखें और ‘दत्तो दीप: चतुर्दश्यो नरक प्रीतये मया. चतुर्वर्ति समायुक्त: सर्व पापा न्विमुक्तये, मंत्र का जाप करें और नए पीले रंग के वस्त्र पहन कर यम का पूजन करें. जो व्यक्ति इन बातों पर अमल करता है उसे नर्क की यातनाओं और अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता.

इस दिन विशेष पूजा की जाती है, जो इस प्रकार होती है. सर्वप्रथम एक थाल को सजाकर उसमें एक चौमुख दिया जलाते हैं तथा सोलह छोटे दीप और जलाएं तत्पश्चात रोली खीर, गुड़, अबीर, गुलाल, तथा फूल इत्यादि से ईष्ट देव की पूजा करें. इसके बाद अपने कार्य स्थान की पूजा करें. पूजा के बाद सभी दीयों को घर के अलग-अलग स्थानों पर रख दें तथा गणेश एवं लक्ष्मी के आगे धूप दीप जलाएं. इसके पश्चात संध्या के समय दीपदान करते हैं, जो यम देवता, यमराज के लिए किया जाता है. विधि-विधान से पूजा करने पर व्यक्ति सभी पापों से मुक्त हो प्रभु को पाता है.

विश्वसनीय खबरों के लिये करें ईटीवी भारत एप डाउनलोड

Last Updated : Nov 3, 2021, 10:46 AM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.