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एमबीबीएस के पाठ्यक्रम में बदलाव से क्याें नाराज हैं डॉक्टर्स, जानिये

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Published : Apr 4, 2022, 4:57 PM IST

एमबीबीएस
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नेशनल मेडिकल कमीशन (एनएमसी) ने एमबीबीएस के पाठ्यक्रम में कुछ बदलाव किया है. थर्ड ईयर में पढ़ाये जाने वाली कम्युनिटी मेडिसिन (community medicine) को फर्स्ट ईयर के सिलेबस में ही शामिल कर दिया गया है, जिससे डॉक्टरों का मानना है कि इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी की वजह से ग्रामीण क्षेत्रों में क्वालिफाइड डॉक्टर्स को भेजने से समस्या बढ़ सकती है. डॉक्टर्स संगठन एनएमसी से पाठ्यक्रम में किये बदलाव वापस लेकर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे इनोवेटिव सब्जेक्ट्स शामिल करने की मांग की है.

नई दिल्लीः राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यरत एक लेडी डॉक्टर डॉक्टर अर्चना शर्मा के आत्महत्या का मामला अभी शांत भी नहीं हुआ है कि नेशनल मेडिकल कमीशन (NATIONAL MEDICAL COMMISSION) के एमबीबीएस पाठ्यक्रम में बदलाव काे लेकर डॉक्टराें में राेष है. एनएमसी ने एमबीबीएस के नए पाठ्यक्रम में थर्ड ईयर में पढ़ाया जाने वाला कम्युनिटी मेडिसिन, जिसमें डॉक्टर को ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर अपनी सेवा देनी होती है को फर्स्ट ईयर में ही शामिल कर दिया है.

बता दें कि डॉ अर्चना शर्मा ऐसे ही काेर्स के तहत राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्र में कार्यरत थी. एक प्रेग्नेंट महिला की डिलीवरी के दौरान आने वाली मेडिकल कॉम्प्लिकेशन की वजह से मरीज की मौत हो गयी. डॉ शर्मा के खिलाफ धारा 302 के तहत हत्या का मामला दर्ज किया गया. इससे आहत होकर डॉक्टर शर्मा ने आत्महत्या कर ली. इस मामले काे लेकर पूरे डॉक्टर समुदाय में रोष है. इस बीच एनएमसी द्वारा एमबीबीएस के पाठ्यक्रम में किए गए बदलाव से पूरे डॉक्टर समुदाय नाराज है. वे इस बदलाव पर राेक की मांग कर रहे हैं.

नेशनल मेडिकल कमीशन ने एमबीबीएस के पाठ्यक्रम में बदलाव किया.

फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया मेडिकल एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ रोहन कृष्ण बताते हैं कि बेहतर डॉक्टर बनाने के उद्देश्य से एनएमसी ने एमबीबीएस के पाठ्यक्रम में जो बदलाव किया है उसमें कुछ भी नयापन नहीं है. यह पुरानी रेसिपी से ही एक नया डिश बनाने की कोशिश की गई है. इस नए बदलाव से छात्रों को फायदा होने के बजाय नुकसान होने वाला है. पुराने पाठ्यक्रम में जिस कम्युनिटी मेडिसिन को थर्ड ईयर में पढ़ाया जाता था, उसे अब एमबीबीएस की पढ़ाई शुरू करने के साथ ही फर्स्ट ईयर से ही पाठ्यक्रम में शामिल कर दिया गया है. जो छात्र अभी तक केवल किताबों की दुनिया में रहा है, प्रैक्टिकल अनुभव प्राप्त नहीं किया है उसे अगर सीधे सामुदायिक स्वास्थ्य के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में जाकर अपनी सेवा देनी पड़े तो वह कितना न्याय कर सकता है. इन छात्रों से गलतियां होने की आशंका बनी रहेगी. इनकी गलतियों की वजह से अगर किसी मरीज के साथ कुछ गलत हो जाय तो उनके साथ डॉ अर्चना शर्मा जैसा व्यवहार किया जा सकता है.

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डॉक्टर रोहन बताते हैं कि एमबीबीएस के छात्रों को पहले वर्ष में ही कम्युनिटी मेडिसिन के तहत लोकल लैंग्वेज सीखने, रूरल एवं स्लम एरिया में ड्यूटी करने, फैमिली प्लानिंग के बारे में पढ़ाया जाएगा. प्रैक्टिकल अनुभव के लिए उन्हें स्लम एवं ग्रामीण क्षेत्रों में भेजा जाएगा. उन्हें पहले वर्ष में ही ओवरक्राउडिंग के बारे में, बेसिक हेल्थ के बारे में और सैनिटेशन के बारे में बताया जाएगा. अगर पहले वर्ष से ही छात्रों के ऊपर सरकारी अस्पतालों में आवश्यकता से अधिक भीड़ को नियंत्रण करने, वहां चारों तरफ फैली गंदगी की साफ सफाई के बारे में बताया जाएगा तो उनके मन में नेगेटिविटी आ सकती है.

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बीएलके हॉस्पिटल के आंकोलॉजिस्ट डॉक्टर सरीन बताते हैं कि मेडिकल सिस्टम को दुरुस्त करने के लिए केवल पाठ्यक्रम में बदलाव कर जो चीजें बाद में पढ़ी जानी है उसे पहले शुरू कर कोई बड़ा चमत्कार नहीं किया जा सकता है. इससे समस्या और भी बढ़ सकती. अगर आप सही मायने में मेडिकल सिस्टम में कोई बड़ा बदलाव लाना चाहते हैं और अंतरराष्ट्रीय स्तर का बनाना चाहते हैं तो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को सिलेबस का हिस्सा बनाएं. पैथोलॉजी कार्डियोलॉजी, ऑंकोलॉजी एवं नेफ्रोलॉजी जैसे स्पेशलिस्ट सेवाओं में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस को बढ़ावा देकर मेडिकल सिस्टम में चमत्कारिक बदलाव लाया जा सकता है. लेकिन वही पुराने सिलेबस को एक जगह से उठाकर दूसरी जगह बाद में पढ़ी जाने वाली चीजों को पहले लाकर समस्या को ठीक करने के बजाय और बढ़ाई जा सकती है.

डॉक्टर सरीन बताते हैं कि हमारी जनरेशन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की तरफ मूव कर रही है. एनएमसी को अगर अब इसमें कुछ बदलाव लाना ही है तो इनोवेटिव सब्जेक्ट को पाठ्यक्रम में शामिल करें. एमबीबीएस के पाठ्यक्रम में इन्नोवेटिव टेक्नोलॉजी को शामिल किया जाना चाहिए, जिसकी वैलिडिटी आज से 10 साल बाद भी हो और इसका फायदा मरीज और डॉक्टर दोनों को होगा.

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