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दिल्ली प्रदूषण: पराली प्रबंधन के लिए पूसा बायो-डिकंपोजर की बढ़ी डिमांड

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Published : Nov 17, 2020, 8:36 PM IST

Updated : Nov 18, 2020, 10:35 AM IST

demand increased of Pusa bio-decomposer for stubble management in view of Delhi NCR pollution
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दिल्ली-NCR में पराली जलाने की वजह से प्रदूषण की समस्या को देखते हुए इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टिट्यूट ने एक बायो डीकंपोजर कैप्सूल तैयार किया है. जिसके इस्तेमाल से पराली खेतों में ही गल जाती है और उससे प्रदूषण भी नहीं बढ़ता है. साथ ही इसके इस्तेमाल से जमीन उर्वरता भी बरकरार रहती है. इस स्पेशल रिपोर्ट से लीजिए पूरी जानकारी...

नई दिल्ली: राजधानी दिल्ली में नवंबर और दिसंबर महीने में प्रदूषण की समस्या आम बात हो गई है. इसके पीछे पड़ोसी राज्यों में पराली जलना प्रमुख कारण बताया जाता है. पराली प्रबंधन को लेकर पिछले दिनों इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टिट्यूट पूसा ने एक कैप्सूल तैयार किया है. जिसे बायो डीकंपोजर का नाम दिया गया. यही कैप्सूल पराली प्रबंधन के लिए अब इतना कारगर साबित हो रहा है कि राज्य सरकारों और किसानों की डिमांड को भी इंस्टीट्यूट पूरा नहीं कर पा रहा है. हर हफ्ते करीब 1600 कैप्सूल तैयार किए जा रहे हैं.

पूसा बायो-डिकंपोजर की मांग बढ़ी

ईटीवी भारत ने मंगलवार को इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टिट्यूट के बायोलॉजिकल डिपार्टमेंट की हेड के. अन्नपूर्णा से इस पूरी तकनीक को लेकर विस्तृत बातचीत की. अन्नपूर्णा ने बताया कि मुख्यमंत्री केजरीवाल के बाद अन्य राज्यों ने भी इस कैप्सूल में अपनी रुचि दिखाई है. दिल्ली के अलावा पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में भी किसान इसका बखूबी इस्तेमाल कर रहे हैं.

'कैप्सूल के प्रयोग से पराली को जलाना नहीं पड़ता है.

'प्रदूषण रोकने में कारगर है ये तकनीक'

अन्नपूर्णा बताती हैं कि ये पूरी तकनीक प्रदूषण रोकने के लिए इसलिए भी कारगर है क्योंकि इसमें पराली को जलाया नहीं जाता. इसके साथ ही इसमें किसी भी तरह के केमिकल का इस्तेमाल भी नहीं होता है. उन्होंने बताया कि छिड़काव के बाद 15-20 दिनों के भीतर ही ये बायो डीकंपोजर पराली को गलाकर जमीन में मिला देता है. इससे उसके न्यूट्रिएंट नष्ट नहीं होते और ये खाद की तरह काम करता है.

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तेजी से फैल रही है ये तकनीक

उन्होंने आगे बताया कि अब तक 17,480 हेक्टेयर जमीन के लिए इसकी किट दी जा चुकी है. कोशिश की जा रही है कि डिमांड को पूरा किया जाए, लेकिन ये मुश्किल हो रहा है. वे बताती हैं कि 90% डीकंपोजीशन 15 दिन में हो जाता है. किसानों को ये पसंद आ रही है. सभी अच्छा फीडबैक दे रहे हैं. इसके बाद खेत अगली फसल के लिए तैयार रहता है.

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मिट्टी की गुणवत्ता बढ़ाता है बायो डीकंपोजर कैप्सूल

'हर हफ्ते बन रही 400 किट'

अन्नपूर्णा बताती हैं कि अभी तक हर हफ्ते 400 किट तैयार की जा रही हैं. एक किट में 4 कैप्सूल होते हैं. एक किट 1 हेक्टेयर जमीन जिसमें 5-6 टन पराली होती है, उसे डीकंपोज करती है. इससे पहले एक घोल बनाया जाता है और फिर उसे पराली पर स्प्रे (छिड़कना) कर दिया जाता है. एक कैप्सूल की कीमत महज 20 रुपये है. सरकारों ने इसके लिए विज्ञापन दिए हैं. साथ ही अलग-अलग नंबर भी जारी किए गए हैं.

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दिल्ली के अलावा अन्य राज्य भी ले रहे दिलचस्पी

मौजूदा समय में तकनीक तेजी से फैल रही है. अन्नपूर्णा कहती हैं कि इस साल इसका अच्छा असर दिख रहा है. आने वाले दिनों में कैप्सूल को और बेहतर किया जाएगा. इसका अनुकूल असर सीधे तौर पर प्रदूषण के स्तर पर देखने को मिलेगा.

Last Updated :Nov 18, 2020, 10:35 AM IST
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