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वकीलों के दफ्तर पर सर्च और छापे के लिए रेगुलेशन और दिशा-निर्देश तय करने की मांग खारिज

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Published : Oct 6, 2021, 4:29 PM IST

दिल्ली हाईकोर्ट ने वकीलों के दफ्तर पर पुलिस की ओर से सर्च और छापे की कार्रवाई के लिए रेगुलेशन और दिशा-निर्देश तय करने की मांग खारिज कर दी है. चीफ जस्टिस DN पटेल की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि अपराध प्रक्रिया संहिता (IPC) में इसे लेकर पर्याप्त प्रावधान मौजूद हैं.

केंद्र सरकार को जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया
केंद्र सरकार को जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया

नई दिल्ली : गुरुवार को दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) ने वकीलों के दफ्तर पर सर्च और छापे के लिए रेगुलेशन और दिशा-निर्देश तय करने वाली याचिका खारिज कर दी है. कोर्ट ने कहा कि अगर किसी को लगता है कि उसके अधिकारों का उल्लंघन किया गया है, तो वह कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकता है. सर्च और छापे की प्रक्रिया तथ्यों के आधार पर होती है. हर छापे की कार्रवाई की वीडियोग्राफी करना संभव नहीं है. कई बार छापे तुरंत मारने होते हैं और वह भी प्रतिकूल समय में.

पिछले 28 जुलाई को कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था. याचिका वकील निखिल बोरवानकर ने दायर की थी. याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने कहा था कि किसी वकील पर छापा या सर्च करने के लिए अपराध प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों का पालन करने के लिए दिशा-निर्देश जारी करने की जरूरत है. उन्होंने कहा था कि एक वकील के दफ्तर में छापा मारने के दौरान उसका मोबाइल फोन भी ले लिया गया, जिसमें मुवक्किलों की कई गोपनीय जानकारी होती है.

प्रशांत भूषण ने कहा था कि अपराध प्रक्रिया संहिता में सर्च ऑपरेशन से पहले समन जारी करना जरूरी है. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन की ओर से जारी 28 दिसंबर 2020 के उस बयान का जिक्र किया, जिसमें एक वकील के दफ्तर पर सर्च आपरेशन चलाने पर चिंता व्यक्त की गई थी. सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ने इस सर्च आपरेशन को गैरकानूनी और मनमाना बताया था. सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से ASG चेतन शर्मा ने याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि याचिका में किस वकील की चर्चा की गई है, ये नहीं बताया गया है. यहां तक कि याचिका में पक्षकार किसे बनाया गया है ये भी स्पष्ट नहीं है. इस याचिका में IB और NIA को भी जरूरी पक्षकार बनाया जाना चाहिए.

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चेतन शर्मा ने कहा था कि सर्च अभियान अलग-अलग परिस्थितियों में अलग-अलग तरीके से होते हैं. अगर इस याचिका को स्वीकार किया गया तो इसका मतलब है कि नया कानून बनाना, जो बनाया नहीं जा सकता है. उसके बाद कोर्ट ने औपचारिक रूप से नोटिस जारी करने से इनकार कर दिया और केंद्र सरकार को जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया.

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