नई दिल्ली: दिल्ली वालों के हित में लिए गए फैसलों को लेकर दिल्ली के उपराज्यपाल तथा केजरीवाल सरकार के बीच टकराव का सिलसिला जारी है. पिछले दिनों दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने उपराज्यपाल को एक पत्र लिखा था. जिसमें सिसोदिया ने उल्लेख किया था कि दिल्ली की निर्वाचित सरकार के अधिकार क्षेत्र के विषयों में बिना मंत्रियों के इजाजत के उपराज्यपाल अधिकारियों की बैठक बुलाते हैं. आरोप लगाया था कि उपराज्यपाल संबंधित विभागीय मंत्री को सूचित किए बिना विभाग के अधिकारियों को निर्देश देते हैं और उन पर निर्देशों को लागू करने का दबाव भी बनाया जा रहा है.
उपराज्यपाल अनिल बैजल ने गुरुवार को मनीष सिसोदिया को छह पन्ने का जवाबी पत्र लिखा है. इस पत्र में उपराज्यपाल ने संविधान व अदालत प्रदत अपने अधिकारों का भी विस्तार से जिक्र किया है और कहा है कि वह दिल्ली के लोगों की सेवा में अपने संवैधानिक कर्तव्य और लोकतांत्रिक सिद्धांतों का पालन करने के लिए प्रतिबद्ध हैं और वे आगे भी करते रहेंगे.
बता दें कि 17 जुलाई को मनीष सिसोदिया द्वारा लिखे गए इस पत्र के जवाब में उपराज्यपाल अनिल बैजल ने बृहस्पतिवार को सिसोदिया को पत्र लिखकर इन आरोपों को निराधार बताया है. उपराज्यपाल ने कहा है कि यह पत्र तथ्यहीन, निराधार है वे इसका पुरजोर खंडन करते हैं. उपराज्यपाल ने सिसोदिया को लिखे पत्र में कहा है कि उपराज्यपाल कार्यालय भारत के संविधान और लोकतंत्र के सिद्धांतों के प्रति सर्वोच्च सम्मान रखता है तथा दिल्ली में संवैधानिक पद्धति से कार्य विभाजन से संबंधित सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को पूरी तरह से लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है.
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सिसोदिया को लिखे पत्र में उपराज्यपाल ने लिखा है कि गत महीनों में उन्होंने जो मीटिंग बुलाई वह संवैधानिक प्रावधानों और जिम्मेदारियों के दायरों में शामिल है. दिल्ली में शासकीय एजेंसियों की बहुलता और राज्य व राष्ट्रीय स्तर की एजेंसियों में आपसी समन्वय करने की आवश्यकता को देखते हुए इन बैठकों का मूल उद्देश्य राष्ट्रीय जनहित में इसकी योजनाओं और कार्यक्रमों के कार्यान्वयन को सुगम और समन्वित करना है.
उपराज्यपाल ने कहा है कि संवैधानिक पदाधिकारी के रूप में और सरकारों के साधन तथा समान उद्देश्यों की प्राप्ति व आम जनता के कल्याण के प्रति उनकी जिम्मेदारियों के निर्वहन के लिए वह महत्वपूर्ण विषयों पर बैठक बुलाते हैं. लेकिन इस प्रकार का कोई मुद्दा कभी नहीं उठाया गया. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि उपराज्यपाल कार्यालय द्वारा आयोजित समीक्षा बैठकों के माध्यम से शहर के बेहतर शासन के लिए विभिन्न एजेंसियों के बीच समन्वय और सामंजस्य की भावना को बढ़ावा देने के मूल उद्देश्य और उनके परिणाम की सराहना करने की बजाय उपमुख्यमंत्री ने उनके ऊपर गलत आक्षेप लगाए हैं.
उपराज्यपाल ने लिखा है कि कारण चाहे जो रहा हो पर संवैधानिक पदाधिकारियों की भूमिका तथा जिम्मेदारियों से संबंधित विषयों की संवेदनशीलता को देखते हुए यह पत्र सार्वजनिक नहीं किया जाना चाहिए था. बल्कि इस मसले पर वे उनसे मिलकर व्यक्तिगत रूप से चर्चा कर सकते हैं दूर कर सकते थे.
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उपराज्यपाल ने सिसोदिया को लिखे पत्र में साफ तौर पर कहा कि वह दिल्ली के लोगों की सेवा में अपने संवैधानिक कर्तव्य और लोकतांत्रिक सिद्धांतों के प्रति दृढ़ और प्रतिबद्ध हैं तथा वह निरंतर अपने कर्तव्यों का पालन करते रहेंगे. सिसोदिया ने जिस तरह मंत्रियों की सहमति के बगैर अधिकारियों की मीटिंग बुलाने का आरोप लगाया है वह जनहित में किए गए कार्यों के लिए एक पक्षपातपूर्ण नजरिया उनका दिखाता है.