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जामिया हिंसा मामले की जांच की मांग पर सुनवाई आज

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Published : Oct 9, 2020, 8:06 AM IST

दिल्ली हाईकोर्ट जामिया हिंसा मामले में जांच की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगा. पिछले 18 सितंबर को सुनवाई के दौरान दिल्ली पुलिस की ओर से एएसजी अमन लेखी ने जामिया हिंसा की जांच दिल्ली पुलिस से हटाकर दूसरी एजेंसी को सौंपने का विरोध किया था.

Jamia violence case
जामिया हिंसा मामले की सुनवाई आज.

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट आज जामिया हिंसा मामले में जांच की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगा. पहले की सुनवाई के दौरान दिल्ली पुलिस ने कहा था कि पुलिस को हिंसा पर काबू करने के लिए जामिया युनिवर्सिटी में घुसना पड़ा था. चीफ जस्टिस डीएन पटेल की अध्यक्षता वाली बेंच सुनवाई करेगी.

जामिया हिंसा मामले की सुनवाई आज.

शांति स्थापित करने के लिए किसी बल का प्रयोग किया जा सकता है

पिछले 18 सितंबर को सुनवाई के दौरान दिल्ली पुलिस की ओर से एएसजी अमन लेखी ने जामिया हिंसा की जांच दिल्ली पुलिस से हटाकर दूसरी एजेंसी को सौंपने का विरोध किया था. लेखी ने कहा कि वहां गैरकानूनी भीड़ थी और वो कोई साधारण भीड़ नहीं थी। लेखी ने गैरकानूनी भीड़ पर बलप्रयोग को लेकर एक फैसले का उदाहरण दिया था। उन्होंने कहा था कि पुलिस किसी गैरकानूनी भीड़ को तितर-बितर करने के लिए बल का प्रयोग कर सकती है। उन्होंने कहा था कि पुलिस को भीड़ हटाने का आदेश मिला हुआ था और भीड़ हिंसा कर रही थी। वहां शांति स्थापित करने का सवाल था और शांति स्थापित करने के लिए किसी बल का प्रयोग किया जा सकता है।

दिल्ली पुलिस के खिलाफ कोई केस नहीं बनता

अमन लेखी ने कहा था कि भीड़ हिंसा कर रही थी और पुलिस के आदेश के बावजूद तितर-बितर नहीं हो रही थी। पुलिस को हिंसा पर लगाम लगाने के लिए युनिवर्सिटी में घुसना पड़ा। अमन लेखी ने कहा था कि जिनके खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई है उनके अलावा यहां सभी जनहित याचिका के नाम पर मौजूद हैं। उन्होंने कहा था कि सही काम के लिए उठाए गए कदम पर सवाल नहीं उठाया जाना चाहिए। प्रथम दृष्टया दिल्ली पुलिस के खिलाफ कोई केस नहीं बनता है।

आपत्तिजनक नारे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ नहीं ले सकते

पिछले 28 अगस्त सुनवाई के दौरान दिल्ली पुलिस ने कहा था कि अनियंत्रित भीड़ पर पुलिस का हस्तक्षेप जरुरी था। सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने दिल्ली पुलिस की ओर से सीलबंद लिफाफे में दी गई सीसीटीवी फुटेज को देखने की मांग की था। अमन लेखी ने कहा था कि उकसाने की कार्रवाई के बावजूद पुलिस ने स्थिति को नियंत्रित किया। लेखी ने कहा था कि 13 दिसंबर को दो हजार लोग जामिया युनिवर्सिटी के गेट नंबर 1 पर एकत्र हो गए और पत्थरबाजी करने लगे। इस दौरान निजी संपत्तियों को नुकसान हुआ। उन्होंने कहा था कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने कमोबेश वही कहा है जो दिल्ली पुलिस ने कहा है। पुलिस अपनी कार्रवाई से अनजान नहीं थी बल्कि उसने वैध आधार पर हस्तक्षेप किया। स्थानीय नेता भीड़ को उकसा रहे थे और आपत्तिजनक नारे लगा रहे थे। ये नारे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ नहीं ले सकते हैं। भीड़ लाठियों और पेट्रोल बमों से लैस थी।

पुलिस पर लगाए थे गंभीर आरोप

पिछले 4 अगस्त को सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से दिल्ली पुलिस पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा गया था कि पुलिस छात्रों पर इसलिए बर्बरता से पेश आई ताकि वे नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदर्शनों में हिस्सा न ले सकें। याचिकाकर्ताओं के वकील कॉलिन गोंजाल्वेस ने कोर्ट के सामने दो सीडी भी प्ले कर दिखाया था।

स्वतंत्र जांच की मांग की

सुनवाई के दौरान गोंजाल्वेस ने पुलिस बर्बरता की स्वतंत्र जांच की मांग की थी। उन्होंने कहा था कि छात्रों ने संसद मार्च की योजना बनाई थी जिससे पुलिस भयभीत हो गई थी। छात्रों पर आंसू गैस के गोलों का इस्तेमाल किया गया। एक छात्र का हाथ टूट गया, एक छात्र की आंखों की रोशनी चली गई। इस मामले में चार छात्रों पर पूरी घटना की साजिश रचने का आरोप लगाया गया है। गोंजाल्वेस ने कहा था कि छात्र विवाद करने के मूड में नहीं थे।

छात्र आंदोलन की आड़ में हिंसा को अंजाम दिया गया

इस मामले में दिल्ली पुलिस ने अपने हलफनामे में कहा है कि जामिया हिंसा सोची समझी योजना के तहत की गई थी। दिल्ली पुलिस ने कहा है कि जामिया हिंसा की इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्यों से साफ पता चलता है कि छात्र आंदोलन की आड़ में स्थानीय लोगों की मदद से हिंसा को अंजाम दिया गया।

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