नई दिल्ली : दिल्ली हाईकोर्ट वैवाहिक रेप के मामले पर कल यानी 11 मई को फैसला सुनाएगा. जस्टिस राजीव शकधर की अध्यक्षता वाली बेंच फैसला सुनाएगी. 21 फरवरी को कोर्ट ने सभी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था. सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कहा था कि वो सभी राज्यों और संबंधित पक्षों से मशवरा कर रही है.
केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने इस मामले पर सुनवाई टालने की मांग की थी क्योंकि केंद्र सरकार राज्य सरकारों और संबंधित पक्षों से मशवरा कर रही है. उन्होंने कहा था कि केंद्र ने सभी राज्यों के मुख्य सचिवों और राष्ट्रीय महिला आयोग को पत्र लिखकर इस मामले में अपना पक्ष बताने को कहा है. उन्होंने कहा था कि केंद्र सरकार हर महिला की गरिमा, स्वतंत्रता और सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है. इस मामले में केवल संवैधानिक सवाल नहीं है बल्कि इसके दूरगामी परिणाम होंगे. मेहता ने कहा था कि केंद्र सरकार का ये रुख नहीं है कि भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद-2 को हटाया जाए या रखा जाए. केंद्र सरकार अपना रुख संबंधित पक्षों से मशवरा के बाद ही तय करेगी. इस पर कोर्ट ने कहा था कि इस मामले में दो ही रास्ते हैं. पहला कि न्यायिक फैसला और दूसरा विधायिका का हस्तक्षेप. यही वजह है कि कोर्ट केंद्र का रुख जानना चाहती है.
चार फरवरी को सुनवाई के दौरान एक याचिकाकर्ता के वकील कॉलिन गोंजाल्वेस ने वैवाहिक रेप को अपराध बनाने की मांग की थी. गोंजाल्वेस ने ब्रिटेन के लॉ कमीशन का हवाला देते हुए वैवाहिक रेप को अपराध बनाने की मांग की थी. सुनवाई के दौरान गोंजाल्वेस ने कहा था कि यौन संबंध बनाने की इच्छा पति-पत्नी में से किसी पर भी नहीं थोपी जा सकती है. उन्होंने कहा था कि यौन संबंध बनाने का अधिकार कोर्ट के जरिये भी नहीं दिया जा सकता है. ब्रिटेन के लॉ कमीशन की अनुशंसाओं का हवाला देते हुए गोंजाल्वेस ने कहा कि पति को पत्नी पर अपनी इच्छा थोपने का अधिकार नहीं है. उन्होंने कहा था कि पति अगर अपनी पति के साथ जबरन यौन संबंध बनाता है तो वो किसी अनजान व्यक्ति द्वारा किए गए रेप से ज्यादा परेशान करने वाला है.
दो फरवरी को सुनवाई के दौरान एक याचिकाकर्ता की वकील करुणा नंदी ने कहा था कि वैवाहिक रेप का अपवाद किसी शादीशुदा महिला की यौन इच्छा की स्वतंत्रता का उल्लंघन है. उन्होंने कहा था कि इससे जुड़े अपवाद संविधान की धारा 19 (1)(ए) का उल्लंघन है. नंदी ने कहा था कि वैवाहिक रेप का अपवाद यौन संबंध बनाने की किसी शादीशुदा महिला की आनंदपूर्ण हां की क्षमता को छीन लेता है. उन्होंने कहा था कि धारा 375 का अपवाद दो, किसी शादीशुदा महिला के न कहने के अधिकार को मान्यता नहीं देता है. ऐसा होना संविधान की धारा 19(1)(ए) का उल्लंघन है. ये अपवाद असंवैधानिक है क्योंकि ये शादी की निजता को व्यक्तिगत निजता से ऊपर मानता है. इसके पहले सुनवाई के दौरान इस मामले के एमिकस क्युरी रेबेका जॉन ने कहा था कि भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद को बरकरार रखा जाना संवैधानिक नहीं होगा. जॉन ने कहा था कि भारतीय दंड संहिता की धारा 498 ए, 304बी और घरेलू हिंसा अधिनियम और अन्य नागरिक उपचार सहित विभिन्न कानूनी प्रावधान धारा 375 के तहत रेप से निपटने के लिए अपर्याप्त हैं.