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विधानसभा का अधिकार कम होने से नाराज अध्यक्ष जाएंगे सुप्रीम कोर्ट

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Published : Aug 6, 2021, 2:50 PM IST

Updated : Aug 6, 2021, 4:17 PM IST

दिल्ली विधानसभा अध्यक्ष रामनिवास गोयल ने बड़ा बयान दिया है. उन्होंने कहा है कि विधानसभा द्वारा गठित समितियों का अधिकार छीना जा रहा है. इसके खिलाफ, वह सुप्रीम कोर्ट जाएंगे.

रामनिवास गोयल
रामनिवास गोयल

नई दिल्लीः दिल्ली विधानसभा अध्यक्ष रामनिवास गोयल ने केंद्र सरकार पर बड़ा आरोप लगाया है. विधानसभा द्वारा गठित समितियों और दिल्ली सरकार की शक्तियों को लगातार कम करने की कोशिश पर, विधानसभा अध्यक्ष रामनिवास गोयल ने कहा है वे अब अदालत जाएंगे. उन्होंने कहा कि दिल्ली के चुने हुए विधायक जब दिल्ली की कानून व्यवस्था, जमीन और सर्विसेज को लेकर विधानसभा में सवाल पूछते हैं, तब वहां से कोई जवाब नहीं आता है. जबकि, सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 2018 में स्पष्ट कर दिया है कि दिल्ली की चुनी हुई सरकार के क्या अधिकार हैं और उपराज्यपाल के क्या अधिकार हैं.


विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि वर्ष 2018 से अभी तक तकरीबन 34 विधायकों ने विधानसभा में, जो सवाल पूछे थे, उसका जवाब नहीं मिला. इसके अलावा डीडीए और कानून व्यवस्था से संबंधित, अगर कोई जानकारी इन विभागों से मांगी जाती है, तो अधिकारी दिल्ली सरकार द्वारा गठित कमेटियों के समक्ष उपस्थित नहीं होते हैं. यह दुर्भाग्यपूर्ण है.

नाराज अध्यक्ष जाएंगे सुप्रीम कोर्ट

कार्यपालिका की जवाबदेही तय करने के लिए विधानसभा और इसकी समितियों ने बहुत बहुत काम किया है. उसमें अड़चन डालने के लिए केंद्र सरकार ने वर्ष 2015 से लगातार हर संभव कोशिश की है. केंद्र के निर्देश पर अधिकारियों को समितियों के साथ सहयोग नहीं करने और उनको जानकारी उपलब्ध नहीं कराने के लिए कहा गया है. जब भी कोई मामला अधिकारियों के लिए असुविधाजनक हो जाता है. तो उन्होंने कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया और विधानसभा के खिलाफ स्टे ऑर्डर लाया है. यह दिल्ली के जनता के हित में कतई नहीं है. समितियों की जांच का सामना करने में कठिनाइयों को देखते हुए केंद्र सरकार ने हाल ही में जीएनसीटी अधिनियम में भी संशोधन किया, ताकि समितियां प्रशासनिक फैसलों पर कोई विचार ना कर सके या उनकी जांच ना कर सके.



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विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि 19 मार्च 2018 को पत्र लिखकर विधानसभा में आरक्षित विषयों जैसे भूमि, पुलिस और सर्वश्रेष्ठ आदि से संबंधित प्रश्नों को स्वीकार नहीं किया जा सकता है. यह बहुत ही हैरानी वाली बात है कि उपराज्यपाल का यह निर्देश केंद्र सरकार के विधि विभाग की सलाह पर आधारित था. इस पत्र के आने के बाद अधिकारियों ने इन आरक्षित विषयों के प्रश्नों के जवाब भी भेजना बंद कर दिया है. वर्ष 2018 से अब तक 34 प्रश्नों के जवाब विधानसभा को नहीं दिए गए.

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जबकि, वर्ष 1993 में गठित पहली विधानसभा से ही इस तरह के मामलों को सदन में बखूबी उठाया गया और उन पर बकायदा चर्चा भी की गई है. अब केंद्र सरकार द्वारा दिल्ली विधानसभा की शक्ति को कमजोर करना या विधानसभा का ही नहीं, बल्कि दिल्ली की पूरी जनता का अपमान है. दिल्ली की जनता ने वोट देकर 70 विधायकों को चुना और विधायक मर्जी से सदन में सवाल तक नहीं पूछ सकते हैं, तो यह कहां का लोकतंत्र है.


बता दें कि संसद ने हाल में ही जीएनसीटी विधयेक पारित होने के बाद से, अब उपराज्यपाल ही दिल्ली के सर्वेसर्वा हैं. पिछले दिनों उपराज्यपाल ने कई बैठकें की. इसमें बिना मंत्रियों को सूचना दिए, उनके अधीन काम करने वाले अधिकारियों तक को बैठक में तलब किया था. इस पर दो दिन पहले मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी ऐतराज जताया था.

Last Updated : Aug 6, 2021, 4:17 PM IST
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