नई दिल्ली: दिल्ली हिंसा के आरोपी शरजील इमाम की जमानत याचिका पर फैसला टाल दिया गया है.कोर्ट ने चार जनवरी 2022 को फैसला सुनाने का आदेश दिया है. 10 दिसंबर को कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था. सुनवाई के दौरान स्पेशल पब्लिक प्रोसिक्युटर अमित प्रसाद (Special Public Prosecutor Amit Prasad) ने लिखित दलीलें दाखिल करने को कहा था. कोर्ट ने अमित प्रसाद को निर्देश दिया था कि वे लिखित दलीलों की प्रति आरोपियों के वकीलों को भी उपलब्ध कराएं.
चार अक्टूबर को कोर्ट में दोनों पक्षों की दलीलें पूरी हो गई थीं. सुनवाई के दौरान शरजील इमाम की ओर से वकील तनवीर अहमद मीर ने कहा था कि एक व्यक्ति IIT बांबे से ग्रेजुएशन करता है. उसे एक अच्छी नौकरी का ऑफर मिलता है, फिर भी वो छोड़कर आधुनिक इतिहास पढ़ता है. उन्होंने कहा था कि ये उसका अपना फैसला था. मीर ने कहा था कि केदारनाथ के फैसले की व्याख्या देखने की जरुरत है, जिसमें भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) में राजद्रोह की व्याख्या करता है. हम अंग्रेजी कानून का पालन करना चाहते हैं ,जहां भारतीयों को उठने की आजादी नहीं होती थी.
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मीर ने कहा था कि दिल्ली पुलिस कह रही है कि अस्सलाम-ओ-अलैकुम से भाषण शुरु होने का मतलब राजद्रोह था. लेकिन क्या अगर आरोप गुड मार्निंग से भाषण शुरु करता तो आरोप खत्म हो जाते. मीर ने कहा था कि अभियोजन को अपनी मर्जी से कोई निष्कर्ष निकालने की आजादी नहीं होनी चाहिए. हम किसी व्यक्ति पर मुकदमा केवल कानून के बदौलत नहीं बल्कि तथ्यों के आधार पर करते हैं.
उन्होंने कहा था कि दो वर्ष बीतने को है लेकिन अभी ट्रायल शुरु भी नहीं हुआ है. अगर कोई सरकार की नीतियों की आलोचना करता है, तो उसके खिलाफ क्या कई सारे मुकदमे होने चाहिए. किसी नीति का विरोध करने के कई तरीके हो सकते हैं. ये रोड पर प्रदर्शन के जरिये भी हो सकता है. प्रदर्शन के दौरान कोई विवाद नहीं हो सकता है.
उन्होंने कहा था कि केवल संदेह के आधार पर आरोप नहीं लगाया जा सकता है. मीर ने कहा था कि हाल ही में चीफ जस्टिस ने कहा था कि हमें राजद्रोह नहीं चाहिए. ऐसा उन्होंने इसलिए कहा कि सरकार को जनता के प्यार की जरुरत है. अब राजशाही नहीं है कि लोगों को सरकार के आगे झुकने की जरुरत है. यह देश लोकतात्रिक और संवैधानिक मूल्यों से बना है. इन मूल्यों के जरिये ही शरजील इमाम की रक्षा हो सकती है. उसके खिलाफ केवल इस आधार पर अभियोजन नहीं चलाया जा सकता है कि उसने नागरिकता संशोधन कानून का विरोध दिया.
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