नई दिल्ली: जिस टीकाकरण से लाखों जिंदगियां बचती हैं, उसी टीकाकरण पर कोरोनाकाल में संकट के बादल छा गए. संकट ऐसा कि घरों से बाहर निकलना बंद, परिवहन बंद, व्यापार बंद, या यूं कहें कि पूरा देश बंद रहा. उसी देशबंदी में टीकाकरण अभियान पर भी ताला लगा हुआ था. ये वो अभियान है जिसे अगर एक साल रोक दिया गया तो 20 से 30 लाख बच्चों इन बीमारियों के शिकार हो सकते हैं.
गर्भवती महिलाओं और नवजात बच्चों के लिए चलाया जाने वाला टीकाकरण अभियान यूनिसेफ के सुझाव पर दोबारा अप्रैल से शुरू हुआ. डॉ. अनिल दुग्गल की मानें तो दुनिया भर में बनने वाले 240 करोड़ वैक्सीन के डोज में से 120 करोड़ डोज भारत में बनाए जाते हैं. यानि एक साल में ये आंकड़ा 2 करोड़ 70 लाख पहुंच जाता है.
डॉ. अनिल दुग्गल के मुताबिक कोरोना वायरस संक्रमण के पहले नवजात बच्चों को जितने टीके लगाए जाते थे उतने ही टीके कोरोना महामारी के दौरान लगाए गये और अभी भी लगाए जा रहे हैं. बच्चों के जन्म के समय टीबी बीमारी से सुरक्षा प्रदान करने के लिए बीसीजी के टीके, हेपेटाइटिस बी और ओरल पोलियो के टीके दिए जाते हैं.जब बच्चा 6 हफ्ते का हो जाता है तो उसे डिप्थीरिया, वूपिंग कफ, हिमोफिलस इनफ्लुएंजा, हेपेटाइटिस बी और रोटावायरस पेंटावेलेंट टीके लगाए जाते हैं. ढाई महीने और साढ़े तीन महीने पूरे होने पर ये टीके दोहराए जाते हैं. जब बच्चे की उम्र 9 महीने होती है तो उसे मीजल्स और रूबेला के पहले डोज दिए जाते हैं. बच्चे की उम्र 1 साल पूरे होने के पहले ये सारे टीके लगाए जाते हैं. कोरोना महामारी शुरू होने के पहले दिल्ली में 80 से 85 फीसदी टीके लगाए गए थे. लेकिन कोरोना महामारी शुरू होने के बाद लॉकडाउन की वजह से आउटडोर वैक्सीनेशन पूरी तरह बंद रहा. अब फिर से पहले की तरह टीके लगाए जा रहे हैं.
बच्चों के लिए ये टीके लगवाना है जरूरी
बच्चों को लगाए जाने वाले टीके के अलावा कई अन्य बीमारियों से बचाव के लिए भी टीकाकरण जरूरी है. दिल्ली मेडिकल काउंसिल के पूर्व सदस्य डॉ. अनिल बंसल के मुताबिक टिटनेस, डिप्थीरिया और हेपेटाइटिस बी के लिए नियमित रूप से वैक्सीन लेने की जरूरत होती है.
टीकाकरण के टारगेट पर संकट
ऐसे में सवाल ये उठता है कि क्या लॉकडाउन के वक्त जिनका टीकाकरण नहीं हो पाया उन्हें क्या करना चाहिए, तो इसका जवाब जल्द से जल्द टीकाकरण के अलावा और कुछ नहीं हो सकता. ताकि टीकाकरण का टारगेट शत प्रतिशत पूरा हो सके.