नई दिल्ली : वैवाहिक रेप के मामले पर सुनवाई के दौरान एक याचिकाकर्ता के वकील कॉलिन गोंजाल्वेस ने दिल्ली हाईकोर्ट से इसे अपराध करार देने की मांग की है. गोंजाल्वेस ने ब्रिटेन के लॉ कमीशन का हवाला देते हुए वैवाहिक रेप को अपराध बनाने की मांग की. इस मामले पर अगली सुनवाई 7 फरवरी को होगी.
सुनवाई के दौरान गोंजाल्वेस ने कहा कि यौन संबंध बनाने की इच्छा पति-पत्नी में से किसी पर भी नहीं थोपी जा सकती है. उन्होंने कहा कि यौन संबंध बनाने का अधिकार कोर्ट के जरिए भी नहीं दिया जा सकता है. ब्रिटेन के लॉ कमीशन की अनुशंसाओं का हवाला देते हुए गोंजाल्वेस ने कहा कि पति को पत्नी पर अपनी इच्छा थोपने का अधिकार नहीं है. उन्होंने कहा कि पति अगर अपनी पत्नी के साथ जबरन यौन संबंध बनाता है तो वो किसी अनजान व्यक्ति द्वारा किए गए रेप से ज्यादा परेशान करने वाला है.
गोंजाल्वेस ने कहा कि वैवाहिक रेप के मामले में सजा देना आसान कार्य नहीं है. उन्होंने कहा कि वैवाहिक रेप का साक्ष्य देना वैसे ही कठिन कार्य है, जैसा कि यौन अपराधों से जुड़े दूसरे मामलों में होता है. उन्होंने कहा कि ऐसा इसलिए होता है क्योंकि यौन संबंध चाहे सहमति से बने हों या सहमति के बिना. लेकिन अधिकांश वाकये निजी स्थानों पर होते हैं. उसके चश्मदीद साक्ष्य नगण्य होते हैं. इन मामलों में साक्ष्य केवल पक्षकारों से जुड़े होते हैं, और ये पक्षकारों की विश्वसनीयता से जुड़ा होता है.
सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि केंद्र सरकार ने इस मामले की सुनवाई टालने की मांग करते हुए हलफनामा दायर करने की मांग की है. तब कोर्ट ने कहा कि इस पर 7 फरवरी को विचार करेंगे. 3 फरवरी को केंद्र सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट से फिर आग्रह किया था कि वैवाहिक रेप को अपराध करार देने के मामले की सुनवाई टाल दी जाए. केंद्र सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट में दाखिल अपने हलफनामे में अपना पक्ष रखने के लिए समय देने की मांग की थी.
केंद्र सरकार ने कहा है कि वो इस मामले पर सभी पक्षों से राय-मशविरा कर रही है. वो इस मामले के सामाजिक प्रभाव का अध्ययन करना चाहती है. देश की विभिन्नताओं को ध्यान में रखते हुए कुछ वकीलों की दलीलों से इस मामले पर फैसला नहीं किया जा सकता है. दरअसल 2 फरवरी को राज्यसभा में केंद्र सरकार ने कहा था कि आपराधिक कानूनों में संशोधनों के लिए केंद्र सरकार ने सभी पक्षों से राय-मशविरा शुरू कर दिया है.
बीती 2 फरवरी को सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की वकील करुणा नंदी ने कहा था कि वैवाहिक रेप का अपवाद किसी शादीशुदा महिला की यौन इच्छा की स्वतंत्रता का उल्लंघन है. उन्होंने कहा था कि इससे जुड़े अपराध संविधान की धारा 19(1)(ए) का उल्लंघन हैं. नंदी ने कहा था कि वैवाहिक रेप यौन संबंध बनाने की किसी शादीशुदा महिला की आनंदपूर्ण हां की क्षमता को छीन लेता है. उन्होंने कहा था कि धारा 375 का अपराध किसी शादीशुदा महिला के ना कहने के अधिकार को मान्यता नहीं देता है. ऐसा होना संविधान की धारा 19(1)(ए) का उल्लंघन है.
इस साल 1 फरवरी को दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा था कि वैवाहिक रेप को अपराध करार देने से एक नए अपराध का जन्म होगा. जस्टिस सी हरिशंकर ने ये बातें कही थी. सुनवाई के दौरान बेंच की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस राजीव शकधर ने कहा था कि वे फिलहाल अपनी राय नहीं रखना चाह रहे हैं. 31 जनवरी को सुनवाई के दौरान करुणा नंदी ने कहा था कि वैवाहिक रेप को जब तक अपराध नहीं करार दिया जाएगा, तब तक इसे बढ़ावा मिलता रहेगा. उन्होंने कहा था कि शादी सहमति को नजरअंदाज करने का लाइसेंस नहीं देता है. उन्होंने कहा था कि जब तक वैवाहिक रेप को अपराध करार नहीं दिया जाता, इसे बढ़ावा मिलता ही रहेगा.
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25 जनवरी को सुनवाई के दौरान एनजीओ हृदे (Hridey) ने कहा था कि पति-पत्नी के बीच बने यौन संबंध को रेप नहीं करार दिया जा सकता है. इसे ज्यादा से ज्यादा यौन प्रताड़ना कहा जा सकता है. एनजीओ की ओर से पेश वकील आरके कपूर ने ये बातें कही थीं. उन्होंने कहा था कि संसद बेवकूफ नहीं है कि उसने रेप के अपवाद के प्रावधान के तहत पति को छूट दे दी है, लेकिन घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत पति को कोई छूट नहीं दी है. इसके पहले सुनवाई के दौरान इस मामले के एमिकस क्यूरी रेबेका जॉन ने कहा था कि भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद को बरकरार रखा जाना संवैधानिक नहीं होगा. जॉन ने कहा था कि भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए, 304बी और घरेलू हिंसा अधिनियम और अन्य नागरिक उपचार सहित विभिन्न कानूनी प्रावधान धारा 375 के तहत रेप से निपटने के लिए अपर्याप्त है.