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Moscow Format Meeting : क्या मॉस्को में हो रही बैठक के बाद भारत-तालिबान के बीच बदल जाएंगे रिश्ते ?

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Sep 27, 2023, 6:41 PM IST

Moscow Format Meeting
मास्को प्रारूप बैठक

चीन द्वारा काबुल में राजदूत नियुक्त करने और इस सप्ताह के अंत में अफगानिस्तान की स्थिति पर मास्को प्रारूप बैठक होनी है. ऐसे में क्या तालिबान शासन के साथ भारत का समीकरण बदल जाएगा ? पढ़िए अरुणिम भुइयां की रिपोर्ट...

नई दिल्ली : नए तालिबान शासन के तहत अफगानिस्तान में चीन भले ही इस महीने के शुरू में अपना राजदूत नियुक्त करने वाला पहला देश बन गया है. लेकिन इसको लेकर अटकलें तेज हैं कि रूसी शहर कजान में 29 सितंबर को होने वाली मॉस्को प्रारूप की बैठक में भारत की क्या भूमिका होगी. बता दें कि वार्षिक मॉस्को प्रारूप बैठक 2017 में युद्धग्रस्त अफगानिस्तान में शांति, स्थिरता को बढ़ावा देने और राष्ट्रीय सुलह की सुविधा के लिए रूस, अफगानिस्तान, भारत, ईरान, चीन और पाकिस्तान के विशेष दूतों के बीच परामर्श के लिए एक क्षेत्रीय मंच के रूप में शुरू की गई थी.

बाद में, पांच मध्य एशियाई देश - कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज्बेकिस्तान भी इसमें परामर्श के रूप में शामिल हुए. रिपोर्टों से पता चलता है कि तालिबान ने दक्षिण एशियाई राष्ट्र में आर्थिक स्थिरता और शासन की अंतरराष्ट्रीय मान्यता के लिए भारत के समर्थन की मांग करते हुए संपर्क किया है. तालिबान के राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख सुहैल शाहीन को यह कहते हुए बताया गया है कि उनका देश भारत के साथ पारंपरिक सकारात्मक संबंध रखना चाहता है.

अगस्त 2021 में तालिबान की सत्ता में वापसी के बाद से अफगानिस्तान सरकार के बजट में 80 प्रतिशत की कमी हो गई और खाद्य असुरक्षा काफी बढ़ गई है. तालिबान ने अफगानिस्तान में अपने पिछले शासन के तहत लागू की गई कई नीतियों को वापस कर दिया. इसके तहत महिलाओं को लगभग किसी भी नौकरी पर रखने पर प्रतिबंध लगाना, महिलाओं को बुर्का जैसे सिर से पैर तक ढंकने की आवश्यकता, महिलाओं को पुरुष अभिभावकों के बिना यात्रा करने से रोकना और सभी शिक्षा पर प्रतिबंध लगाना शामिल है. इन्ही सभी वजहों से भारत ने तालिबान को मान्यता देने से इनकार कर दिया है और मानवाधिकारों का सम्मान करने और अल्पसंख्यक समुदायों की सुरक्षा के महत्व पर जोर दिया है.

हालांकि भारत ने मानवीय प्रयासों में सहायता के लिए काबुल में अपने दूतावास में एक तकनीकी टीम बनाए रखी है, लेकिन तालिबान को नई दिल्ली में दूतावास में राजनयिक कर्मचारियों को नियुक्त करने की अनुमति नहीं दी है. दूसरी तरफ अशरफ गनी सरकार के पतन के बाद से नई दिल्ली में अफगान दूतावास को वित्तीय चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. भारत में अफगान राजदूत फरीद मामुंडजे के ठिकाने के बारे में चिंताएं हैं. इससे नई दिल्ली में अफगान मिशन के भीतर आंतरिक मुद्दे प्रतीत होते हैं. कज़ान में शुक्रवार को होने वाली बैठक इस बात को देखते हुए महत्वपूर्ण है कि चीन मौजूदा तालिबान शासन के तहत काबुल में राजदूत नियुक्त करने वाला पहला देश बन गया है.

13 सितंबर को अफगानिस्तान के कार्यवाहक प्रधानमंत्री मोहम्मद हसन अखुंद और विदेश मंत्री अमीर खान मुत्ताकी ने काबुल में राष्ट्रपति भवन में चीन के नव नियुक्त राजदूत झाओ शेंग का स्वागत किया. इसके बाद, अफगानिस्तान में चीनी दूतावास ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से तालिबान के साथ बातचीत जारी रखने का आग्रह किया और तालिबान को उदारवादी नीतियां अपनाने और एक समावेशी सरकार स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित किया. तालिबान रूस, पाकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान के साथ भी राजनयिक संबंध मजबूत कर रहा है, लेकिन इनमें से किसी भी देश ने मौजूदा परिस्थितियों में काबुल से पूर्ण राजदूत को स्वीकार नहीं किया है. यह देखते हुए कि चीन ने आधिकारिक तौर पर अफगानिस्तान में एक दूत नियुक्त किया है अब कज़ान बैठक में भारत का रुख क्या होगा? हालांकि कजान में मॉस्को फॉर्मेट बैठक में भारत की भागीदारी के बारे में विदेश मंत्रालय की ओर से कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है.

ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन थिंक टैंक के स्ट्रैटेजिक स्टडीज प्रोग्राम के फेलो अयाज वानी ने ईटीवी भारत को बताया कि देखिए, भारत का तालिबान के साथ कोई आर्थिक या सुरक्षा संबंध नहीं है. उन्होंने कहा कि चीन के विपरीत हमारी अफगानिस्तान के साथ कोई सीमा नहीं है. वे (चीन) क्षेत्र में दोस्तों का एक समूह बनाने की कोशिश कर रहे हैं. वानी ने बताया कि चीन अपने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) को सुरक्षित करने के लिए तालिबान का इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहा है. सीपीईसी, जो पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से होकर गुजरती है, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की प्रिय बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (बीआरआई) की एक प्रमुख परियोजना है. जबकि भारत ने शुरू से ही इस परियोजना और समग्र रूप से बीआरआई का विरोध किया है.

वानी ने आगे कहा कि तालिबान द्वारा अमु दरिया नदी के पानी को मोड़ने के लिए एक नहर का निर्माण शुरू करने के बाद मध्य एशियाई देशों को अफगानिस्तान से समस्या हो रही है. कोश टेपा नहर 285 किमी लंबी होने की उम्मीद है और इससे 550,000 हेक्टेयर रेगिस्तान को कृषि भूमि में बदलने का लक्ष्य है. तालिबान सरकार ने नहर को एक प्राथमिकता परियोजना बना दिया है और निर्माण 2022 की शुरुआत में शुरू हो गया है.

बताया जाता है कि अप्रैल 2022 से फरवरी 2023 तक 100 किमी से अधिक नहर की खुदाई की गई थी. वानी ने कहा कि तालिबान एक आतंक प्रभावित राष्ट्र है. चीन उसके साथ जुड़ने की कोशिश कर रहा है, लेकिन इस मामले की सच्चाई यह है कि कम्युनिस्टों और इस्लामवादियों के बीच कोई संबंध नहीं हो सकता है. पर्यवेक्षकों का कहना है कि भारत शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों के जरिए यह संदेश देने में सफल रहा है कि अफगानिस्तान में एक समावेशी सरकार होनी चाहिए. यही वजह है कि कई देशों ने भारत की स्थिति का समर्थन किया है. अफगानिस्तान में तालिबान शासन के साथ भारत के समीकरण को जानने के लिए कज़ान में मॉस्को फॉर्मेट मीटिंग के समापन तक इंतजार करना होगा.

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