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तमिलनाडु : राजनीति में क्याें सफल नहीं हाे पाते आईएएस और आईपीएस अधिकारी

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Published : May 4, 2021, 1:22 PM IST

तमिलनाडु की राजनीति में अक्सर देखा गया है कि जितने भी भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) और भारतीय पुलिस सेवा (IPS) के पूर्व अधिकारियाें ने राजनीति में हाथ आजमाया है उन्हें असफला ही हाथ लगी है.

तमिलनाडु
तमिलनाडु

चेन्नई : तमिलनाडु में हाल के दिनाें में जितने भी भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) और भारतीय पुलिस सेवा (IPS) के पूर्व अधिकारियाें ने प्रशासनिक सेवा छाेड़ कर राजनीति में हाथ आजमाने की काेशिश की है उन्हें सफलता नहीं मिल पाई है.

इस साल हुए चुनाव की बात करें ताे 6 अप्रैल को 16वीं विधानसभा के चुनावों में पूर्व सरकारी अधिकारी अन्नामलाई और संतोष बाबू काे भी असफलता हाथ लगी. वे क्रमशः करूर जिले के अरावकुरिची और चेन्नई में वेलाचेरी से चुनाव लड़ रहे थे.

यहां भाजपा ने AIADMK के साथ गठबंधन कर विधानसभा चुनाव लड़ा था. इसमें पूर्व IPS अधिकारी अन्नामलाई 24,816 वोट से हार गए. उन्हें कुल 68,553 वोट मिले. चुनाव के नतीजाें पर प्रतिक्रिया देते हुए उन्होंने मतदाताओं को धन्यवाद देते हुए कहा कि यह उनके जीवन में मिली असफलताओं में से एक है.

सोशल मीडिया पर उनके खिलाफ हाे रही आलोचना पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए, अन्नामलाई ने कहा कि भाजपा अगले पांच वर्षों में मजबूती के साथ उभरेगी और 2026 में होने वाले अगले विधानसभा चुनावों में बड़ी सफलता हासिल करेगी.

इसी तरह, तमिलनाडु के सूचना और प्रौद्योगिकी सचिव रहे मक्कम नीधी मैयम उम्मीदवार संतोष बाबू काे भी निराशा हाथ लगी. जिन्हें भारत नेट जैसी कई अग्रणी आईटी परियोजनाओं की सफलता का श्रेय दिया जाता है. वे वेलचेरी निर्वाचन क्षेत्र से हार गए. उन्हें सिर्फ 23,072 वोट मिले थे.

इसी तरह, 2019 के संसदीय चुनावों में दक्षिण चेन्नई के एमएनएम उम्मीदवार रंगराजन, जिन्होंने राजनीति में कदम रखने की खातिर अपने आईएएस का पद छाेड़ दिया है, उन्हें भी असफलता मिली. ऐसे ही 2016 के विधानसभा चुनावों में शिवगामी, जिन्होंने IAS पद छोड़ कर DMK की टिकट पर चुनाव लड़ा था, लेकिन जीत नहीं सकीं.

राजनीति में IAS और IPS अधिकारी चुनावी क्याें सफल नहीं हाे पाते इस पर बात करते हुए अजी सेंथिलनाथन ने कहा कि राजनीति केवल प्रशासन से जुड़ी कोई चीज नहीं है. यह उससे कहीं अधिक है. प्रशासक, जो राजनीति में कदम रखते हैं, भ्रष्टाचार मुक्त शासन की बात करते हैं, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है. उन्हाेंने कहा कि वे शहरी-ग्रामीण विभाजन और जातिगत, आर्थिक और शैक्षिक जटिलताओं के बारे में बात नहीं कर पाते हैं.

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हालांकि उन्हाेंने कहा कि कुछ बड़े राजनीतिक दलों के टिकट पर चुनाव लड़ने पर ऐसे लोग चुनाव जीत सकते हैं.

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