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जानिए शेर-ए-पंजशीर अमरुल्ला सालेह के बारे में, जिसने तालिबान को खुली चुनौती दी है

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Published : Aug 19, 2021, 6:29 PM IST

गुरुवार को ट्विटर ने अफगानिस्तान के उपराष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह का आधिकारिक ट्विटर हैंडल सस्पेंड कर दिया. सालेह उन अफगान नेताओं में शामिल हैं, जिन्होंने तालिबान को खुलेआम चुनौती दी है. अमरुल्ला सालेह के बारे में पढ़ें

amrullah saleh afghanistan
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हैदराबाद : जब काबुल पर तालिबान का कब्जा हुआ तो अशरफ गनी देश छोड़कर चले गए. उनके मंत्रिमंडल के साथी भी भूमिगत हो गए. कई नेताओं ने तजाकिस्तान में शरण ली. जब दुनिया यह मानने लगी कि अशरफ गनी और उनके साथियों ने तालिबान के सामने घुटने टेक दिए हैं, तब 'पंजशीर के शेर' अमरुल्ला सालेह ने ट्विटर पर दहाड़ लगाई. अफगानिस्तान के 48 वर्षीय उपराष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह (amrullah saleh) ने खुद को कार्यकारी राष्ट्रपति घोषित कर तालिबान को खुली चुनौती दी.

  • Clarity: As per d constitution of Afg, in absence, escape, resignation or death of the President the FVP becomes the caretaker President. I am currently inside my country & am the legitimate care taker President. Am reaching out to all leaders to secure their support & consensus.

    — Amrullah Saleh (@AmrullahSaleh2) August 17, 2021 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

अमरुल्ला सालेह ने ट्विटर पर लिखा कि चूंकि राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़कर भाग गए हैं और उनका ठिकाना अज्ञात है, इसलिए वह अब देश के 'वैध' कार्यवाहक राष्ट्रपति हैं. इसके साथ उन्होंने बायो में अपना स्टेटस एक्टिंग प्रेसिडेंट (Acting President - Islamic Republic of Afghanistan) शामिल कर लिया.

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ट्विटर पर आधिकारिक अकाउंट में बदला गया बायो

अमरुल्ला सालेह तालिबान की काबुल में एंट्री के बाद अहमद मसूद और रक्षा मंत्री बिस्मिल्लाह खान मोहम्मदी के साथ पंजशीर चले गए थे. अहमद मसूद पंजशीर के सबसे शक्तिशाली नेता अहमद शाह मसूद के बेटे हैं. पंजशीर काबुल के 150 किलोमीटर उत्तर में अफगानिस्तान का वह इलाका है, जिसे कभी न सोवियत संघ की सेना जीत सकी और न ही अफगानिस्तान की सेना. आज भी यहां तालिबान का कब्जा नहीं है. इसके अलावा 34 राज्यों में अब तालिबान का शासन है. अमरुल्ला आज भी खुद को अहमद शाह मसूद का फॉलोअर बताते हैं.

  • I will never, ever & under no circumstances bow to d Talib terrorists. I will never betray d soul & legacy of my hero Ahmad Shah Masoud, the commander, the legend & the guide. I won't dis-appoint millions who listened to me. I will never be under one ceiling with Taliban. NEVER.

    — Amrullah Saleh (@AmrullahSaleh2) August 15, 2021 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

कौन हैं अमरुल्ला सालेह : अमरुल्ला सालेह (amrullah saleh ) का जन्म 1972 में पंजशीर में ताजिक ट्राइब में हुआ था. उनका बचपन अफगानिस्तान में हो रहे गृहयुद्ध के बीच बीता. काफी कम उम्र में ही वह चर्चित नेता अहमद शाह मसूद के नेतृत्व वाले नार्दर्न एलायंस से जुड़ गए. 1997 में अहमद शाह ने सालेह को ताजिकिस्तान में नार्दर्न एलायंस के संपर्क कार्यालय में नियुक्त किया. इस दौर में उन्होंने अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संगठनों और खुफिया एजेंसियों के साथ अपनी नजदीकी बढ़ाई. 1999 में अहमद शाह मसूद ने अमरुल्ला को ट्रेनिंग के लिए अमेरिका में मिशिगन की यूनिवर्सिटी भेजा. जहां से वह इंटेलिजेंस की बारीकियां सीखी.

आतंकी हमले के बाद खुफिया प्रमुख का पद छोड़ा था : 9/11 के हमले के बाद जब अमेरिका ने अफगानिस्तान का रुख किया तब सालेह सीआईए के करीबी हो गए. अमरुल्ला सालेह ने तालिबान को खदेड़ने के लिए नॉर्दर्न एलायंस की ओर से कई लड़ाइयों का नेतृत्व किया. राजनीति में आने से पहले अमरुल्ला अफगानिस्तान खुफिया एजेंसी, राष्ट्रीय सुरक्षा निदेशालय (एनडीएस) के प्रमुख थे. यह खुफिया एजेंसी 2004 में बनाई गई थी. सालेह ने अपने जासूसों का ऐसा नेटवर्क तैयार किया, जो तालिबान और ISI की हरकतों पर नजर रखता था. अमेरिका और सीआईए को सालेह के नेटवर्क का खूब फायदा मिला. 6 जून 2010 को सालेह ने एक आतंकवादी हमले के बाद एनडीएस से इस्तीफा दे दिया.

जनरल मुशर्रफ को भी दिया था दो टूक जवाब : रिपोर्टस के अनुसार, पाकिस्तान में तालिबान के मसले पर खुफिया और अधिकारियों की मीटिंग चल रही थी. उसमें परवेज मुशर्रफ भी शामिल थे. तब ओसामा बिन लादेन के छिपे होने का मुद्दा उठा. एनडीएस के प्रमुख के हैसियत से अमरुल्ला सालेह ने बताया कि लादेन पाकिस्तान में छिपा है. यह सुनकर मुशर्रफ मीटिंग छोड़ गए. बाद में, ऐबटाबाद में अमेरिकी सैनिकों ने ओसामा बिन लादेन को मार डाला था.

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पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई के पाकिस्तान और तालिबान के प्रति सॉफ्ट रवैये का सालेह हमेशा विरोध करते रहे.

हामिद करजई के पाकिस्तान पॉलिसी से नाखुश थे अमरुल्ला : माना जाता है कि सालेह तत्कालीन राष्ट्रपति हामिद करजई की पाकिस्तान के प्रति नरमदील रवैये से दुखी थे. उन्होंने तालिबान के साथ बातचीत के प्रस्ताव का विरोध किया था. दरअसल खुफिया प्रमुख रहने के दौरान अमरुल्ला सालेह ने स्टडी की तब उन्होंने पाया कि पाकिस्तान की सेना और आईएसआई तालिबान के लिए फंडिग कर रही है. साथ ही, उन्हें हथियार और शेल्टर भी दे रहा है. रिपोर्टस के अनुसार, तालिबान ने 1996 में उनकी बहन के साथ मारपीट की थी, जिससे वह काफी आहत थे. जब करजई सरकार ने उनकी सिफारिशों की अनदेखी तो राष्ट्रीय खुफिया प्रमुख का पद छोड़ दिया.

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अशरफ गनी के साथ एक मीटिंग में सालेह (courtesy -Saleh twitter handle)

अशरफ गनी के मंत्रिमंडल में पहली बार बने मंत्री : जासूसी सेवा से इस्तीफा देने बाद अमरुल्ला ने तालिबान का विरोध करने के लिए राजनीतिक दल, बसेज-ए मिल्ली की स्थापना की. 2011 के बाद सालेह ने हामिद करजई के खिलाफ राजनीतिक अभियान छेड़ दिया. पाकिस्तान के लिए उनकी नफरत और नापसंदगी के कारण उनकी लोकप्रियता तेजी से बढ़ी. उन्होंने हामिद करजई की पाकिस्तान के प्रति झुकाव की आलोचना की. 2017 में वह राष्ट्रपति अशरफ गनी के मंत्रिमंडल में शामिल हुए. 2018 में उन्हें आंतरिक मामलों का मंत्री बनाया गया. फरवरी 2020 में उन्होंने उपराष्ट्रपति का ओहदा संभाला था.

कई बार हुआ है इस शेर- ए-पंजशीर पर हमला : तालिबान और पाकिस्तान की खुलेआम आलोचना के कारण अमरुल्ला सालेह आतंकियों के निशाने पर रहे. जुलाई 2019 में उनके ऑफिस में फिदायीन हमला हुआ था. इस हमले में 20 लोग मारे गए और 50 से ज्यादा घायल हुए थे. गनीमत रही कि सालेह बच गए हालांकि उनके भतीजा इस आत्मघाती हमले का शिकार हो गया. 9 सितंबर 2020 को अमरुल्ला सालेह के काफिले पर बम से हमला हुआ. इस हमले में 10 लोगों की मौत हुई थी.

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21 जुलाई को राष्ट्रपति भवन पर तालिबान के हमले के बाद अमरुल्ला सालेह ने पाकिस्तान को ट्वीट कर 1971 के वॉर की याद दिलाई थी

तालिबान वाले नए अफगानिस्तान में अमरुल्ला सालेह ने खुलेआम जंग का ऐलान किया है. उन्होंने अपने समर्थकों से एकजुट होने की अपील की है. पंजशीर के शेर ने अपने गुरु अहमद शाह मसूद के नक्शे कदम पर चलने का ऐलान किया है. सूत्र बताते हैं कि सालेह पंजशीर में नहीं, बल्कि तजाकिस्तान में हैं. मगर उनके रुख ने यह तय कर दिया है कि पंजशीर का रास्ता तालिबान के लिए मुश्किल भरा ही रहेगा.

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