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सरगुजा के विक्की मालाकार की प्रेरणादायक कहानी आपकी सोच बदल देगी

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Published : Jun 8, 2022, 10:07 PM IST

Vicky Malakar becomes gold medalist
सरगुजा के विक्की मालाकार की प्रेरणादायक कहानी

मेहनत और लगन से इंसान कुछ भी हासिल (Vicky Malakar of Surguja drop row ball player) कर सकता है. सरगुजा के विक्की मालाकार ने इसे सच साबित कर दिखाया है. महज 15 साल की उम्र में विक्की ने नेशनल स्कूल गेम्स ( Vicky Malakar becomes gold medalist) में गोल्ड मेडल जीता है. पढ़िए विक्की मालाकार की कामयाबी की दास्तां...

सरगुजा : कहते हैं कि अगर कुछ हासिल करने की जिद हो तो कोई भी मंजिल इंसान के लिए दूर नहीं (Vicky Malakar of Surguja drop row ball player) होती. इस बात को साबित किया है सरगुजा के विक्की मालाकार ने. वह आर्थिक तंगी में भी हार नहीं माने बल्कि उस तंगी से जूझते हुए उन्होंने चैंपियन बनने का रास्ता निकाल लिया. विक्की मालाकार ने साबित कर दिया कि जिद के आगे जीत है. विक्की की कहानी आपको सचमुच उत्साह और (Surguja Basketball player Vicky Malakar success story) आशाओं से ओत प्रोत कर देगी.

आर्थिक तंगी को मात देकर विक्की बना ड्रॉप रो बॉल का खिलाड़ी: विक्की आर्थिक तंगी से जूझ रहा है. लेकिन उसने हार नहीं मानी वह सुबह पांच बचे से अपनी दिनचर्या में लग जाता है. सबसे पहले वह पांच बजे अखबार लाता है. फिर घर घर घूमकर अखबार बांटता है. उसके बाद वह खेल के मैदान में जाकर ड्राप रो बॉल की प्रैक्टिक्स करता है. उसके बाद वह घर आता है. फिर पिता के फल ठेले को चलाता है और फल बेचने का काम करता है. फिर स्कूल जाता है. उसके बाद शाम होते ही फिर खेल के मैदान में जाता है और स्कूल की पढ़ाई कर होम वर्क ( Vicky Malakar becomes gold medalist) करता है. इस दिनचर्या और जीतोड़ मेहनत के बाद खेल के प्रति समर्पण और लगन ने विक्की को कम उम्र में ड्रॉप रो बॉल का खिलाड़ी बना दिया है.

सरगुजा के विक्की मालाकार की प्रेरणादायक कहानी
अखबार बांटने से गोल्ड मेडलिस्ट खिलाड़ी बनने तक का सफर: विक्की अखबार बांटते हैं. पिता के साथ ठेले में फल बेचते हैं. बावजूद इसके विक्की ने नेशनल स्कूल गेम्स और ओपन में 2 गोल्ड मेडल प्राप्त किये हैं. इतना ही नही बास्केटबॉल में विक्की ने 4 बार छत्तीसगढ़ टीम में अपने खेल का कमाल दिखाया है. ब्रॉन्ज और सिल्वर जैसे मेडल अपने नाम किये हैं.

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नेशनल स्कूल गेम्स में जीता गोल्ड: विक्की की उम्र महज 15 वर्ष है. लेकिन इस उम्र में उसने बड़ा कारनामा किया है. नेशनल स्कूल गेम्स में दो गोल्ड मेडल जीतना आम बात नहीं है. एक तरफ परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर और दूसरी तरफ खेल में बेहतर प्रदर्शन ये इतना भी आसान नहीं जितना सुनने और देखने में लगता है. इसके पीछे विक्की की वो मेहनत छिपी है जो शायद किसी ने नहीं देखी. विक्की ने अपनी लगन और तपस्या से यह सब हासिल किया है. विक्की बताते हैं की घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है, पिता अकेले ही कमाने वाले हैं. ऐसे में पढ़ाई का खर्च और अन्य खर्च उठाना मुश्किल था. तब विक्की भी कमाने निकल पड़ा और अखबार बांटने लगा. अखबार बांट कर विक्की को महीने के 15 सौ रुपये मिल जाते हैं. जिससे विक्की अपने पिता का आर्थिक बोझ कम कर देता है. हालांकि कोच राजेश प्रताप सिंह काफी सपोर्ट करते हैं. उनके कारण ही विक्की आज इस मुकाम पर है.



कोच ने किया प्रेरित: विक्की मालाकार पहले सिर्फ बास्केटबॉल ही खेलते थे. लेकिन कोच राजेश प्रताप ने उसे अन्य खेल के प्रति जागरूक किया और विक्की ड्रॉप रो बॉल खेलने लगा और ड्रॉप रो बॉल में उसने स्कूल गेम्स में नेशनल खेलते हुये 2 गोल्ड अपने नाम किये. जबकि बास्केटबॉल में विक्की स्टेट से आगे नहीं बढ़ पाए थे और ब्रॉन्ज और सिल्वर से ही संतोष करना पड़ा. अब 2 गोल्ड पाकर विक्की के हौसलों को पर लग चुके हैं अब वो रुकने वाला नहीं है.

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बहरहाल ऐसी कहानियां उन सब बच्चों के लिये आदर्श है. जो कुछ बेहतर या कुछ अलग करने की मंशा रखते हैं. जो भी अपने जीवन मे असफलताओं से जूझ रहा हो वो एक बार विक्की की दिनचर्या और उसके कारनामों पर नजर डाले उसे अपनी दिक्कतें कम लगने लगेंगी. दूसरी बात अगर आपके अंदर अच्छे काम करने की जिद हो तो आपको यह जिद हर क्षेत्र में जीत दिला सकती है. मेहनत और लगन से आप आप हर क्षेत्र में सिकंदर न सकते हैं.

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