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यूपी : बेरोजगारी सबसे बड़ा मुद्दा, पर किसकी झोली में जाएंगे बेरोजगार ?

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Published : Feb 13, 2022, 1:31 PM IST

Updated : Feb 13, 2022, 1:47 PM IST

पहले चरण के बाद अब दूसरे चरण की बारी है. उत्तर प्रदेश में कई सारे मुद्दों के बीच बेरोजगारी सबसे बड़ा मुद्दा (unemployment biggest factor up election) है. ये अलग बात है कि इसे जिस तरह से उठाया जाना चाहिए था, उस ढंग से इसे नहीं उठाया गया. अखिलेश ने 22 लाख रोजगार और कांग्रेस ने 20 लाख रोजगार के वादे किए हैं. भाजपा ने भी हर परिवार के कम-से-कम एक सदस्य को स्व-रोजगार के अवसर उपलब्ध करवाने की बात कही है. वाकई में ये तो बड़े वादे हैं. पढ़िए वरिष्ठ पत्रकार अतुल चंद्रा का विश्लेषण.

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कॉन्सेप्ट फोटो

उत्तर प्रदेश में पहले चरण का चुनाव संपन्न हो चुका है. कुछ जगहों पर पोलिंग एजेंट ने बूथ पर नहीं पहुंचने देने की शिकायत की, कुछेक जगहों पर ईवीएम और वीवीपैट में गड़बड़ियों की भी शिकायतें की गईं. हालांकि, चर्चा का विषय मत प्रतिशत ही रहा, क्योंकि पिछली बार यानी 2017 में भाजपा ने इन 58 में से 53 सीटों पर जीत हासिल की थी. 2017 के मुकाबले इस बार मत प्रतिशत थोड़ा कम रहा. पिछली बार 61.04 फीसदी मतदान हुआ था, इस बार 60.17 प्रतिशत मतदान हुआ. (unemployment biggest factor up election).

मतदाताओं के सामने कई सारे मुद्दे थे, जिसके आधार पर उन्होंने वोट किया. किसानों का आंदोलन, जिसमें करीब 700 लोगों ने जान गंवाई. वोटिंग से ठीक पहले योगी आदित्यनाथ का वह वीडियो, जिसमें उन्होंने चेतावनी दी कि अगर समाजवादी पार्टी - आरएलडी गंठबंधन जीता तो यूपी कश्मीर-केरल-प.बंगाल बन जाएगा. अप्रत्यक्ष रूप से उनका इशारा मुस्लिमों के बढ़ते प्रभाव की ओर था. योगी ने कहा आपका मत आपको भयमुक्त जिंदगी की गारंटी देगा.

योगी की यह सांप्रदायिक अपील किस हद तक मुस्लिम बहुतायत वाले विधानसभा क्षेत्र में काम करेगा, खासकर तब जबकि सपा ने इन क्षेत्रों में गैर मुस्लिमों को टिकट देकर भाजपा के लिए पहले ही मुश्किलें खड़ी कर दी है, देखने वाली बात होगी. स्थानीय रिपोर्ट सरकार के विरुद्ध माहौल बता रहे हैं. हालांकि, कुछ भी कहने से पहले दो अन्य फैक्टर पर विचार करने की भी उतनी ही जरूरत है.

पहला फैक्टर है गरीबों को मुफ्त राशन देना. राज्य सरकार ने वादा किया है कि यह स्कीम मार्च तक जारी रहेगी. चुनाव आचार संहिता लागू होने से ठीक पहले महिलाओं के लिए बने सेल्फ-हेल्प ग्रुप के अकाउंट में 1000 करोड़ रुपये ट्रांसफर कर दिए गए. इसके अलावा लैपटॉप-टैबलेट वितरण, गरीब बेटियों की शादी के लिए पैसे, पीएम आवास योजना और कई अन्य कल्याणकारी योजनाएं हैं, जो भाजपा को फायदा पहुंचा सकते हैं. साथ ही आप उज्जवला योजना को भी नहीं भूल सकते हैं, जिसके तहत ग्रामीण परिवारों को मुफ्त में कनेक्शन दिया गया है.

लेकिन भाजपा के विरोध में जो बातें जा सकती हैं वह है बेरोजगारी. ये अलग बात है कि चुनाव के दौरान इस मुद्दे को उस ढंग से उठाया नहीं गया, जिस तरह से इसे उठाया जाना चाहिए था. इसी तरह से आरआरबी परीक्षा का मुद्दा है, उसके बाद प्रयागराज में नौकरी की मांग करने वाले बेरोजगार युवकों पर लाठी चार्ज भी फैक्टर है, भले ही इसे किसी ने मजबूती से उठाया नहीं. बेरोजगारी के मुद्दे पर सरकार ने खुद 3000 लोगों के आत्महत्या की बात स्वीकारी है. और इसमें से यूपी के लोग भी शामिल हैं. ये आंकड़ें कोरोना काल यानी 2020 के हैं. इसके बावजूद कुछेक मतदाताओं ने ही रोजगार नहीं होने की बात प्रमुखता से उठाई है. जिन परिवारों ने अपनों को खोया है, वे तो आंसू बहाएंगे ही, क्योंकि उनके पास निर्वाह के लिए कुछ नहीं है.

कोविड के दौरान भारत में इतनी खराब स्थिति थी, और इसके बाद भी स्थिति नहीं बदली है, कम से कम यूपी में तो यही कहा जा सकता है. रोजगार के मामले में राज्य देश के औसत से भी पीछे है. 2021 में नौकरी पाने वाले युवाओं की संख्या 2016 में 1.5 करोड़ से गिरकर 30 लाख हो गई, जबकि इसी दौरान युवा आबादी में 90 लाख की वृद्धि हुई. 2012 की तुलना में, जब अखिलेश मुख्यमंत्री बने थे, योगी आदित्यनाथ के शासन में कुल बेरोजगारी 2.5 गुना और युवा बेरोजगारी लगभग 5 गुना बढ़ी है.

रोजगार नहीं होने की वजह से हुए मोहभंग के कारण युवाओं ने अपनी जिंदगी समाप्त कर ली. विश्व आर्थिक फोरम ने भी सामाजिक स्थायित्व, व्यक्तिगत कल्याण और आर्थिक उत्पादकता पर इसके प्रभाव को उल्लिखित किया है. अब इस चुनावी राज्य यूपी में सभी पार्टियां युवाओं का दिल जीतने के लिए चांद लाने का भरोसा दिला रहे हैं. अखिलेश ने 22 लाख रोजगार, कांग्रेस ने 20 लाख रोजगार के वादे किए हैं. उनके जीतने की कितनी उम्मीदें हैं, यह तो अलग बात है. भाजपा ने भी अपने संकल्प पत्र में रोजगार और हर परिवार के कम से कम एक सदस्य को स्व-रोजगार के अवसर उपलब्ध करवाने की बात कही है. वाकई में ये तो बड़े वादे हैं.

सपने बेचने वाले वादे कर जाते हैं, भले ही उनके पास कोई योजना न हो, क्योंकि उनकी नजरें बड़े वोट बैंक पर टिकी होती हैं. युवाओं की उम्मीदें टूट जाए, इसका उन्हें कोई मलाल नहीं होता है. रोजगार पैदा करने के लिए बडे़ निवेश की जरूरत है. मायावती और अखिलेश के शासन काल में बहुत अधिक निवेश नहीं हुआ. दुर्भाग्यवश योगी के दौर में भी निवेश का जो उन्होंने वादा किया था, वह नहीं आया और रोजागर पैदा नहीं हुआ. सपा के शासन काल में सकल जीडीपी 6.92 प्रतिशत वार्षिक थी, जबकि योगी के समय में यह 1.95 प्रतिशत ही रहा. कम वृद्धि दर का मतलब प्रति व्यक्ति कम आमदनी होती है. ये है यूपी की हकीकत जो अब दूसरे चरण के मतदान की तैयारी कर रहा है.

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Last Updated : Feb 13, 2022, 1:47 PM IST
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