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'मानवता की पाठशाला'...ये है संडे वाला स्कूल, 8 बरस से लेकर 80 साल तक के टीचर, बदल रहे झुग्गी बस्ती के बच्चों का फ्यूचर

MP Unique School for Poor Children: मध्यप्रदेश के भिंड जिले में संचालित है मानवता की पाठशाला, ये ऐसा स्कूल हैं जहां किसी शिक्षक की भर्ती नहीं हुई, यहां कोई रिजल्ट नहीं मिलता और ना ही बच्चों में काबिलियत की दौड़ होती है ये पाठशाला उन गरीब बच्चों के लिए संचालित होती है जो आज भी समाज से पिछड़े हुए हैं. गरीब परिवारों के झुग्गी बस्ती के बच्चों को यहां मानवता का पाठ पढ़ाया जाता है. एक नजर भिंड से संवाददाता पीयूष श्रीवास्तव की इस खास खबर पर...

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Oct 30, 2023, 10:06 PM IST

Updated : Oct 30, 2023, 10:22 PM IST

bhind unique school for poor children
मानवता की पाठशाला
भिंड में मानवता की अनोखी पाठशाला

भिंड। स्कूल की बिल्डिंग भले नही है लेकिन झुग्गी बस्ती में रहने वाले बच्चों को जो चाहिए वो सबकुछ संडे को लगने वाली इस मानवता की पाठशाला में है. बच्चों के लिए खरीदी गई किताबें और 8 बरस से लेकर 80बरस तक के हर वर्ग से जुड़े टीचर. जिनमें कोई डॉक्टर है, कोई वकील, कोई कारोबारी. लेकिन सारे इंसान हैं जो मानवता की पाठशाला के जरिए उस सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की नींव मजबूत कर रहे हैं. कोई एनजीओ नहीं बस चंद लोगों ने जुड़कर फैसला लिया बच्चों को पढ़ाने का और पांच बच्चों से शुरु हुई ये रविवार की पाठशाला अब 100 के पार पहुंच गई है.

bhind unique school for poor children
झुग्गी बस्ती के बच्चे आते हैं पढ़ने

हर रविवार को लगती है बच्चों के लिए क्लास: मानवता की इस पाठशाला की शुरुआत हुई थी 2017 में जब भिंड शहर के कुछ युवाओं ने समाज की बहतरी और भविष्य के सुधार के लिए दान की जगह ज्ञान बांटने का फैसला लिया. भिंड बस स्टैंड के पीछे बसी झुग्गी बस्ती में तमाम ऐसे परिवार रहते हैं जिनके पास दो वक्त की रोटी का इंतजाम तक नहीं है, तो बच्चों की पढ़ाई के लिए पैसा कहां से जुगाड़ करें. लेकिन कहते हैं की इस जहान में नेकी करने वालों की भी कमी नहीं है. भिंड के रहने वाले बबलू सिन्धी ने अपने दोस्तों और टीम के साथ मानवता की पाठशाला की शुरुआत की. जहां रविवार के दिन इसी झुग्गी बस्ती के बच्चे पढ़ने आते हैं. टीम के सदस्य भी इस दिन अपने समय में से तीन घंटे यहां बच्चों के बीच बिताते हैं और जीवन के मूल के साथ ही अंग्रेजी, गणित और संस्कार भी सिखाते हैं. यहां डंडे का डर नहीं बल्कि टीचर प्यार से खेल खेल में बच्चों को हर चीज बताते हैं.

आठ साल का टीचर सिखाता है अंग्रेजी: मानवता की इस पाठशाला की सबसे अनोखी बात यह है कि यहां सरकारी स्कूलों की तरह शिक्षकों की बिलकुल भी कमी नहीं है और न ही शिक्षकों की भर्ती के लिए कोई बड़ी क्वालिफिकेशन की जरूरत है. यहां पढ़ाने के लिए महज आपके पास ज्ञान और समय होना चाहिए. यही वजह है कि स्कूल में 8 साल के बच्चे से लेकर 80 साल के बुजुर्ग तक बच्चों को पढ़ाते हैं. मानवता की पाठशाला के सबसे छोटे सदस्य शिक्षक हैं शुभन सिंह, जिनकी उम्र महज आठ साल है और मैं खुद तीसरी कक्षा के छात्र हैं. लेकिन इतनी छोटी उम्र में भी उन्हें बच्चों के बीच आना और उनको पढ़ाना बेहद पसंद हैं. शुभन ने बताया कि ''उन्हें यहां आने की प्रेरणा उनकी दादी से मिली है. वे भी हमेशा समय निकाल कर यहां बच्चों को पढ़ाने आती हैं.'' छोटे टीचर कहते हैं कि ''उन्हें बच्चों के साथ खेलना बहुत पसंद था. यहां बहुत सारे बच्चे थे, तब पढ़ाना अच्छा लगने लगा. आज वे इन बच्चों को हिंदी और अंग्रेज़ी दोनों सब्जेक्ट पढ़ाते हैं.

bhind unique school for poor children
मानवता की पाठशाला

पढ़ाने के साथ बच्चों की जरूरतों का भी रखते हैं खयाल: वहीं बुजुर्ग सदस्यों में से एक ग्रहणी 65 वर्षीय प्रभाती सिंह पिछले एक साल से इस पाठशाला में बच्चों को पढ़ाने आ रही हैं. उन्होंने बताया कि ''वे कोलकाता की रहने वाली हैं, लेकिन उनके पति भिंड ज़िले के रहने वाले हैं. थोड़ा हिन्दी की समस्या होती है बोलने में लेकिन मैनेज हो जाता है. उन्हें शुरू से ही पढ़ाना अच्छा लगता था. लेकिन विवाह के बाद जिम्मेदारियों के चलते ऐसा नहीं हो सका. उनके बेटे को जब मानवता की पाठशाला के बारे में पता चला तो उसके कहने पर वे यहां निःशुल्क शिक्षा और अपना ज्ञान इन गरीब बच्चों को देने आ रही हैं.'' उनका मानना है कि ये बच्चे बहुत सभ्य हैं और तेजी से सीखते हैं. यहां आने वाले पाठशाला के सभी सदस्य मिलकर कुछ अच्छा करने का प्रयास कर रहे हैं. वहीं इस समूह की एक और सदस्य रानू ठाकुर कहती हैं कि ''यहां बच्चों को पढ़ाना अच्छा लगता है. जब ये बच्चे आना शुरू हुए तब इन्हें कुछ नहीं अता था लेकिन अब ये काफी कुछ सीख गए. उनके रहन सहन का ढंग बदल गया. हम उनकी जरूरतों को पूरा करने में मदद करते हैं. इससे खेल-खेल में वे बहुत अच्छी बातें सीखते हैं.''

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मिशन में बदल गया बबलू सिन्धी का प्रयास: इस संडे वाली पाठशाल की शुरुआत करने वाले शख्स हैं बबलू सिन्धी, वह पेशे से व्यापारी हैं, लेकिन समाजसेवा में भी उतने ही आगे हैं और मानवता की पाठशाला भी उन बेहतरीन प्रयासों में से एक है. जिससे समाज में एक अच्छा संदेश गया. इसीलिये इस पाठशाला से कई लोग जुड़े जो बच्चों को पढ़ाने के लिए समय देते हैं. बबलू कहते हैं कि ''2017 में इस पाठशाला की शुरुआत की गई थी क्योंकि ऐसे कई बच्चे थे जो सड़कों पर भीख माँगते थे. उनके मन में हमेशा ये खयाल था कि गरीब बच्चों की आर्थिक मदद करने के साथ साथ अगर उनके लिए कुछ ऐसा किया जाये जिससे उनका सामाजिक स्तर भी सुधार सके. वही खयाल मानवता की पाठशाला की नींव बना. धीरे धीरे लोग जुड़ते गये कोई व्यापारी है, कोई डॉक्टर, कोई वकील है तो कोई शिक्षक, हर वर्ग और हर उम्र के लोग बच्चों को पढ़ाने के लिए आगे आये और आज उसका फायदा इन गरीब बच्चों को मिल रहा है."

यहां अंग्रेज़ी भी बोलते हैं बच्चे: "कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं होता कोई पत्थर तो शिद्दत से उछालो यारों.." कवि दुष्यंत कुमार की कविता के ये चंद बोल के मायने बहुत अहम है और इन्हें चरितार्थ कर रहे हैं भिंड के बबलू सिन्धी और उनकी मानवता टीम. जिन्होंने कुछ अच्छा करने की चाह में सैकड़ों बच्चों को अच्छी तालीम और संस्कार के साथ साथ वो सब सिखाया जिसके लिये शायद कई गरीब परिवार आज भी जद्दोजहद करते हैं. आज जब झुग्गी बस्ती में रहने वाले बच्चे भी अंग्रेज़ी में बात करने की कोशिश करते हैं तो मानवता के असल मायने समझ आते हैं.

भिंड में मानवता की अनोखी पाठशाला

भिंड। स्कूल की बिल्डिंग भले नही है लेकिन झुग्गी बस्ती में रहने वाले बच्चों को जो चाहिए वो सबकुछ संडे को लगने वाली इस मानवता की पाठशाला में है. बच्चों के लिए खरीदी गई किताबें और 8 बरस से लेकर 80बरस तक के हर वर्ग से जुड़े टीचर. जिनमें कोई डॉक्टर है, कोई वकील, कोई कारोबारी. लेकिन सारे इंसान हैं जो मानवता की पाठशाला के जरिए उस सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की नींव मजबूत कर रहे हैं. कोई एनजीओ नहीं बस चंद लोगों ने जुड़कर फैसला लिया बच्चों को पढ़ाने का और पांच बच्चों से शुरु हुई ये रविवार की पाठशाला अब 100 के पार पहुंच गई है.

bhind unique school for poor children
झुग्गी बस्ती के बच्चे आते हैं पढ़ने

हर रविवार को लगती है बच्चों के लिए क्लास: मानवता की इस पाठशाला की शुरुआत हुई थी 2017 में जब भिंड शहर के कुछ युवाओं ने समाज की बहतरी और भविष्य के सुधार के लिए दान की जगह ज्ञान बांटने का फैसला लिया. भिंड बस स्टैंड के पीछे बसी झुग्गी बस्ती में तमाम ऐसे परिवार रहते हैं जिनके पास दो वक्त की रोटी का इंतजाम तक नहीं है, तो बच्चों की पढ़ाई के लिए पैसा कहां से जुगाड़ करें. लेकिन कहते हैं की इस जहान में नेकी करने वालों की भी कमी नहीं है. भिंड के रहने वाले बबलू सिन्धी ने अपने दोस्तों और टीम के साथ मानवता की पाठशाला की शुरुआत की. जहां रविवार के दिन इसी झुग्गी बस्ती के बच्चे पढ़ने आते हैं. टीम के सदस्य भी इस दिन अपने समय में से तीन घंटे यहां बच्चों के बीच बिताते हैं और जीवन के मूल के साथ ही अंग्रेजी, गणित और संस्कार भी सिखाते हैं. यहां डंडे का डर नहीं बल्कि टीचर प्यार से खेल खेल में बच्चों को हर चीज बताते हैं.

आठ साल का टीचर सिखाता है अंग्रेजी: मानवता की इस पाठशाला की सबसे अनोखी बात यह है कि यहां सरकारी स्कूलों की तरह शिक्षकों की बिलकुल भी कमी नहीं है और न ही शिक्षकों की भर्ती के लिए कोई बड़ी क्वालिफिकेशन की जरूरत है. यहां पढ़ाने के लिए महज आपके पास ज्ञान और समय होना चाहिए. यही वजह है कि स्कूल में 8 साल के बच्चे से लेकर 80 साल के बुजुर्ग तक बच्चों को पढ़ाते हैं. मानवता की पाठशाला के सबसे छोटे सदस्य शिक्षक हैं शुभन सिंह, जिनकी उम्र महज आठ साल है और मैं खुद तीसरी कक्षा के छात्र हैं. लेकिन इतनी छोटी उम्र में भी उन्हें बच्चों के बीच आना और उनको पढ़ाना बेहद पसंद हैं. शुभन ने बताया कि ''उन्हें यहां आने की प्रेरणा उनकी दादी से मिली है. वे भी हमेशा समय निकाल कर यहां बच्चों को पढ़ाने आती हैं.'' छोटे टीचर कहते हैं कि ''उन्हें बच्चों के साथ खेलना बहुत पसंद था. यहां बहुत सारे बच्चे थे, तब पढ़ाना अच्छा लगने लगा. आज वे इन बच्चों को हिंदी और अंग्रेज़ी दोनों सब्जेक्ट पढ़ाते हैं.

bhind unique school for poor children
मानवता की पाठशाला

पढ़ाने के साथ बच्चों की जरूरतों का भी रखते हैं खयाल: वहीं बुजुर्ग सदस्यों में से एक ग्रहणी 65 वर्षीय प्रभाती सिंह पिछले एक साल से इस पाठशाला में बच्चों को पढ़ाने आ रही हैं. उन्होंने बताया कि ''वे कोलकाता की रहने वाली हैं, लेकिन उनके पति भिंड ज़िले के रहने वाले हैं. थोड़ा हिन्दी की समस्या होती है बोलने में लेकिन मैनेज हो जाता है. उन्हें शुरू से ही पढ़ाना अच्छा लगता था. लेकिन विवाह के बाद जिम्मेदारियों के चलते ऐसा नहीं हो सका. उनके बेटे को जब मानवता की पाठशाला के बारे में पता चला तो उसके कहने पर वे यहां निःशुल्क शिक्षा और अपना ज्ञान इन गरीब बच्चों को देने आ रही हैं.'' उनका मानना है कि ये बच्चे बहुत सभ्य हैं और तेजी से सीखते हैं. यहां आने वाले पाठशाला के सभी सदस्य मिलकर कुछ अच्छा करने का प्रयास कर रहे हैं. वहीं इस समूह की एक और सदस्य रानू ठाकुर कहती हैं कि ''यहां बच्चों को पढ़ाना अच्छा लगता है. जब ये बच्चे आना शुरू हुए तब इन्हें कुछ नहीं अता था लेकिन अब ये काफी कुछ सीख गए. उनके रहन सहन का ढंग बदल गया. हम उनकी जरूरतों को पूरा करने में मदद करते हैं. इससे खेल-खेल में वे बहुत अच्छी बातें सीखते हैं.''

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मिशन में बदल गया बबलू सिन्धी का प्रयास: इस संडे वाली पाठशाल की शुरुआत करने वाले शख्स हैं बबलू सिन्धी, वह पेशे से व्यापारी हैं, लेकिन समाजसेवा में भी उतने ही आगे हैं और मानवता की पाठशाला भी उन बेहतरीन प्रयासों में से एक है. जिससे समाज में एक अच्छा संदेश गया. इसीलिये इस पाठशाला से कई लोग जुड़े जो बच्चों को पढ़ाने के लिए समय देते हैं. बबलू कहते हैं कि ''2017 में इस पाठशाला की शुरुआत की गई थी क्योंकि ऐसे कई बच्चे थे जो सड़कों पर भीख माँगते थे. उनके मन में हमेशा ये खयाल था कि गरीब बच्चों की आर्थिक मदद करने के साथ साथ अगर उनके लिए कुछ ऐसा किया जाये जिससे उनका सामाजिक स्तर भी सुधार सके. वही खयाल मानवता की पाठशाला की नींव बना. धीरे धीरे लोग जुड़ते गये कोई व्यापारी है, कोई डॉक्टर, कोई वकील है तो कोई शिक्षक, हर वर्ग और हर उम्र के लोग बच्चों को पढ़ाने के लिए आगे आये और आज उसका फायदा इन गरीब बच्चों को मिल रहा है."

यहां अंग्रेज़ी भी बोलते हैं बच्चे: "कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं होता कोई पत्थर तो शिद्दत से उछालो यारों.." कवि दुष्यंत कुमार की कविता के ये चंद बोल के मायने बहुत अहम है और इन्हें चरितार्थ कर रहे हैं भिंड के बबलू सिन्धी और उनकी मानवता टीम. जिन्होंने कुछ अच्छा करने की चाह में सैकड़ों बच्चों को अच्छी तालीम और संस्कार के साथ साथ वो सब सिखाया जिसके लिये शायद कई गरीब परिवार आज भी जद्दोजहद करते हैं. आज जब झुग्गी बस्ती में रहने वाले बच्चे भी अंग्रेज़ी में बात करने की कोशिश करते हैं तो मानवता के असल मायने समझ आते हैं.

Last Updated : Oct 30, 2023, 10:22 PM IST
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