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Uniform Civil Code : फिर उठ खड़ा हुआ समान नागरिक संहिता विवाद, जानें क्या है यह मामला

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Published : Jun 15, 2023, 2:56 PM IST

समान नागरिक संहिता पर फिर से विवाद शुरू हो गया है. कांग्रेस पार्टी ने लॉ कमीशन और सरकार दोनों पर सवाल उठाए हैं. एक दिन पहले लॉ कमीशन ने लोगों से इस विषय पर अपनी राय मांगी है. अगर समान नागरिक संहिता को लागू किया जाता है, तो अलग-अलग धर्मों के निजी कानून खत्म हो जाएंगे.

UNIFORM CIVIL CODE
समान नागरिक संहिता

नई दिल्ली : 22वें विधि आयोग (लॉ कमीशन) द्वारा सुझाव मांगे जाने के बाद से समान नागरिक संहिता (यूनिफॉर्म सिविल कोड यानी यूसीसी) का विषय एक बार फिर से सुर्खियों में आ गया है. कमीशन ने आम लोगों और धार्मिक संस्थाओं के प्रमुखों से इस विषय पर अपनी राय देने को कहा है. उन्हें 30 दिनों का समय दिया गया है. यूसीसी- यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड का अर्थ होता है- भारत में रहने वाले प्रत्येक नागरिक के लिए समान कानून का होना, फिर चाहे उनका धर्म या उनकी जाति कुछ भी क्यों न हो.

समान नागरिक संहिता अगर लागू हो जाती है, तो धर्म के आधार पर निजी कानूनों का अस्तित्व खत्म हो जाएगा. फिर शादी हो या तलाक या फिर विरासत विवाद, सबके लिए कानून एक होगा. अभी तलाक, शादी और संपत्ति के वारिस को लेकर अलग-अलग कानून हैं. संविधान के अनुच्छेद 44 में समान नागरिक संहिता का उल्लेख किया गया है. यह संविधान के नीति निर्देशक सिद्धान्तों (डायरेक्टिव प्रिंसिपल्स ऑफ स्टेट पॉलिसी) के तहत उल्लिखित है. संविधान निर्माताओं ने यह उम्मीद की थी कि इस विषय पर जब पूरा देश एकमत हो जाएगा, फिर इसे लागू किया जाएगा.

अभी शादी, तलाक और जमीन का बंटवारा या फिर वारिस को लेकर अलग-अलग धर्मों के अलग-अलग कानून हैं. इस वजह से कोर्ट पर बोझ बढ़ता जा रहा है. अलग-अलग धर्मों में इन मामलों को लेकर अलग-अलग प्रावधान हैं, इसलिए इनसे उठे हुए विवाद सालों तक लटके रहते हैं. यूनिफॉर्म सिविल कोड इस समस्या का निदान कर देगा. इससे देश की एकता भी मजबूत होगी. हर व्यक्ति चाहे उसका धर्म जो भी हो, एक ही कानून से निर्देशित होगा. आम लोगों को कानूनों के मकड़जाल से मुक्ति मिल पाएगी. जटिल मुद्दे सरल हो जाएंगे. क्योंकि निजी कानून खत्म हो जाएंगे, इसलिए किसी के साथ भी कोई पक्षपात नहीं हो पाएगा.

कानूनी विशेषज्ञ भी मानते हैं कि हमारे संविधान की प्रस्तावना में सेक्युलर शब्द का प्रयोग किया गया है, इसका मतलब है कि स्टेट किसी भी धर्म के साथ भेदभाव नहीं करेगा और सभी धर्मों के साथ बराबर का भाव रखा जाएगा. यह तभी संभव होगा, जब यूसीसी की व्यवस्था अपनाई जाए.

विरोधियों का कहना है कि क्योंकि देश में हिंदू बहुसंख्यक हैं, लिहाजा उनका ही कानून पूरे देश पर होगा. यूसीसी उसका एक जरिया है. उनकी राय में यूसीसी संविधान प्रदत्त मूल अधिकार के भी खिलाफ है. उनके अनुसार अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 25, दोनों का उल्लंघन होगा. अनुच्छेद 14 में कानून के समक्ष समानता की अवधारणा है. अनुच्छेद 25 में अपने धर्म को मानने या फिर प्रचार करने की स्वतंत्रता है.

वैसे, यहां पर यह भी जानना जरूरी है कि देश की अलग-अलग अदालतों ने कई ऐसे फैसले दिए हैं, जिस दौरान कोर्ट ने इसकी ओर इशारा किया है. खुद केंद्र सरकार भी कई मौकों पर सुप्रीम कोर्ट में इसके पक्ष में अपनी राय रख चुकी है.

उत्तराखंड ने इस बाबत एक पहल की है. उत्तराखंड सरकार ने जस्टिस रंजना देसाई की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई है. उत्तराखंड में इसे कैसे लागू किया जाए, कमेटी इस पर अपनी रिपोर्ट देगी. इस रिपोर्ट के आधार पर केंद्र सरकार आगे बढ़ सकती है. कमेटी ने स्टेक होलर्डरों से राय मांगी थी. यह प्रक्रिया पूरी हो चुकी है. अब इसे संकलित किया जा रहा है. भाजपा शासित मध्य प्रदेश और गुजरात ने भी इसे लागू करने का वादा किया है.

उत्तराखंड सरकार के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई थी. लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया. देश के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पी.एस नरसिम्हा की बेंच ने कहा कि राज्य सरकार को पैनल बनाने का पूरा हक है. कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि अनुच्छेद 162 के अधीन किसी भी राज्य को राज्य के विषय पर कानून बनाने का पूरा अधिकार है. कोर्ट ने संविधान की सातवीं अनुसूची के एंट्री 5 का भी जिक्र किया. इसके तहत शादी, तलाक, गोद लेना, विल्स, पार्टिशन अन्य विषयों पर राज्यों को कानून बनाने का अधिकार है. वैसे ये सारे विष्य समवर्ती सूची में शामिल हैं. यानि केंद्र यदि कानून बनाता है, और उस पर अलग रूख अपनाता है, तो केंद्र सरकार के कानून ही मान्य होंगे. पर इस मामले पर राजनीति भी जारी है.

कांग्रेस पार्टी ने यूसीसी मुद्दे पर मोदी सरकार को घेरा है. पार्टी का कहना है कि विधि एवं कानून मंत्रालय के इशारे पर 22वें लॉ कमीशन ने समान नागरिक संहिता पर राय मांगी है. कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने कहा, '21वां लॉ कमीशन ने इस पर अगस्त 2018 में कंसल्टेशन पेपर प्रकाशित किया था. इसके बाद 22वां लॉ कमीशन फिर नए सिरे से फ्रेश रेफरेंस जारी कर रहा है. यह समझ के परे हैं. कोई कारण नहीं दिया गया है कि इसे फिर से क्यों रिविजिट किया जा रहा है.'

जयराम रमेश ने कहा कि वास्तविक कारण यह है कि 21 वें लॉ कमीशन ने साफ तौर कहा था कि इस समय समान नागरिक संहिता की जरूरत नहीं है. इसलिए मोदी सरकार फिर से इस मुद्दे को चर्चा में लाकर ध्रुवीकरण और अपनी असफलताओं से ध्यान भटकाने की राजनीति कर रही है.

उन्होंने कहा कि लॉ कमीशन के सामने पहले से ही देश के कई महत्वपूर्ण मुद्दे पड़े हुए हैं. इसलिए उन्हें देश के हितों को सामने रखकर काम करना चाहिए, न कि किसी भी राजनीतिक पार्टी की महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए किसी भी मुद्दे को आगे करना चाहिए. लॉ कमीशन ने एक महीने तक लोगों और धार्मिक संस्थाओं से यूसीसी पर उनकी राय मांगी है.

भाजपा के पक्षधरों का कहना है कि लॉ कमीशन को फिर से इस विषय पर लोगों से राय मांगने का पूरा हक है, क्योंकि 21वें लॉ कमीशन ने जब रिपोर्ट मांगी थी, तब से तीन साल से ज्यादा का समय बीत गया है. कहां-कहां पर लागू है यूसीसी - अमेरिका, आयरलैंड, तुर्की, इंडोनेशिया जैसे कुछ अन्य देशों में यह व्यवस्था लागू है.

क्या है ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की राय - विवाह, तलाक और विरासत को नियंत्रित करने वाले विभिन्न पारंपरिक कानूनों का हम सम्मान करते हैं. अगर इन्हें समान नागरिक संहिता से रिप्लेस करने की कोशिश की गई, तो वह इसका विरोध करेगा.

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