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देवघर रोपवे हादसा: 48 घंटे से हवा में झूल रही जिंदगियां, आधुनिक भारत का तंत्र बेबस

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Published : Apr 11, 2022, 10:53 PM IST

झारखंड के देवघर जिले में त्रिकूट पर्वत पर हुआ त्रिकूट रोपवे हादसा प्रशासनिक लापरवाही, खौफ और लोगों की जिजीविषा की दास्तान है. जहां 48 घंटे बाद कई लोगों को जमीन नसीब हुई, जबकि 22 लोगों को अभी डर के साये और जिंदगी की उम्मीद में एक रात और काटनी होगी. इस पूरे हालात को शब्दों में बयान किया है ईटीवी भारत झारखंड के स्टेट हेड भूपेंद्र दुबे ने. पेश है रिपोर्ट

देवघर रोपवे हादसा
देवघर रोपवे हादसा

रांची : झारखंड के देवघर जिले के त्रिकूट रोपवे पर पिछले 48 घंटे तक 42 लोगों की जिंदगी हवा में झूलती रही. इस दौरान आधुनिकता का दावा करने का दंभ भरने वाली हमारी पूरी व्यवस्था का लब्बोलुवाब यह है कि पूरे दिन चले रेस्क्यू ऑपरेशन के बाद अभी भी 22 लोग सरकने वाले झूले में अपनी जिंदगी के बचने का इंतजार कर रहे हैं. पूरे दिन सेना का हेलीकॉप्टर हवा में उड़ता रहा. लेकिन जो कुछ नजारा देखने को मिला उससे एक बात तो साफ लग रही है कि आधुनिक होने के लिए हमने पहाड़ों पर रस्सियां बिछा दीं लेकिन इन रस्सियों पर घूमने के लिए आने वाले लोगों की चिंता नहीं की. यही कारण है कि यहां जो हालात बने उससे जिंदगी की डोर हवा में लटक गई और सुरक्षा का हर दावा फेल हो गया.

सोमवार को पूरे दिन चले रेस्क्यू ऑपरेशन में जितने लोगों को निकाला गया, वे निश्चित तौर पर सेना के लोगों के हौसले और विश्वास को सलाम कर रहे हैं, लेकिन जो लोग अभी भी बचे हैं उनकी भी हिम्मत कम नहीं है कि वह आज भी रस्सी पर कल की सुबह का इंतजार कर रहे हैं. जीवन की डोर संजोये रस्सी पर अपनी जिंदगी काट रहे हैं और उनके अपने उनके कुशलता से लौटने के लिए नीचे दुआएं कर रहे हैं.

त्रिकूट रोपवे हादसे में 15 हजार फिर ऊंचाई पर लटके लोग
त्रिकूट रोपवे हादसे में 15 हजार फिर ऊंचाई पर लटके लोग

15 हजार फिट से अधिक ऊंचाई पर है रोपवेः त्रिकूट पर्वत के रोपवे की पूरी संरचना को अगर समझो तो यह समुद्र से 2470 फीट ऊपर और देवघर जिला मुख्यालय से लगभग 20 किलोमीटर दूरी पर देवघर दुमका रोड मोहनपुर ब्लॉक में है. इसकी सतह से ऊंचाई 15100 फिट है. त्रिकूट पर्वत की तलहटी मयूराक्षी नदी से घिरी हुई है. इस पूरे रोपवे की लंबाई 2512 फिट है इस रोपवे में कुल 26 केबिन हैं और नीचे से चोटी तक पहुंचने में 8 से 10 मिनट लगते हैं.

अंधेरा होने से रेस्क्यू ऑपरेशन रूकाः सोमवार को शुरू हुए रेस्क्यू ऑपरेशन की बात करें तो सबसे पहले सेना के एक हेलीकॉप्टर से इसे पूरा करने की कोशिश की गई लेकिन जब सेना का हेलीकॉप्टर आया तो उसकी हवा से रोपवे के सारे कूपे हिलने लगे, उसके बाद सेना का हेलीकॉप्टर लौट गया. बाद में आईटीबीपी और एयरफोर्स को रेस्क्यू ऑपरेशन में लगाया गया. सेना का हेलीकॉप्टर लगातार उड़ान भरता रहा और जितने लोगों को वहां से निकाल पाए, उन लोगों को निकालने का काम किया गया. हालांकि अभी भी 22 लोग उस रोपवे में फंसे हुए हैं, जिसे निकालने का काम.. इसलिए रोक दिया गया कि अंधेरा हो गया है. अब कल जब उजाला होगा तो फिर सेना का हेलीकॉप्टर उड़ान भरेगा लेकिन तब तक जिन लोगों की जिंदगी रस्की पर टंगी हुई है निश्चित तौर पर उनके लिए यह रात बहुत काली है.

बचाव के बारे में क्यों नहीं सोचाः सरकार के दावों पर भरोसा करके खुशहाल और हरियाली देखने के लिए जो लोग निकले थे. उनकी जिंदगी एक ऐसे अंधेरी रात में आसमान में लटक गई है, जिसका उजाला उम्मीदों के उस हाथ के साथ है, जिसमें सेना का रेस्क्यू ऑपरेशन उन्हें बाहर निकाले. पूरी रात जो लोग ट्रॉली में लटके रहेंगे उनके लिए जीवन की यह रात बताने के लिए कैसी होगी, सुनाने के लिए कैसी होगी. यह तो तब होगा जब वह इस हादसे के दर्द से बाहर निकल पाएंगे. लेकिन पूरा झारखंड अभी इस पसोपेश में पड़ा हुआ है कि जो 22 लोग अभी भी फंसे हुए हैं उनकी जिंदगी बचाई कैसे जाए.

जो लोग वहां फंसे हैं निश्चित तौर पर उनका हौसला, उनकी हिम्मत और उनके जज्बे को सलाम करना होगा कि नीचे जिस तरह की खाई है. उससे जिंदगी को बचाकर रखना इस जज्बे की जितनी तारीफ की जाए उतनी कम है. लेकिन जो कुछ हुआ है वह कई सवाल खड़ा कर रहा है कि जिस तरीके का रोपवे बनाया गया, अगर इस तरह की दुर्घटना हो जाए तो बचाव की तैयारियों के लिए आपदा प्रबंधन ने आज तक सोचा क्यों नहीं और अगर सोचा गया तो अधिकारियों के ठंडे कमरे के उस टेबल पर जहां चाय में बिस्किट भीगा कर खाया गया. आम लोग क्या करेंगे यह कहना मुश्किल है. क्योंकि जो लोग रस्सियों पर लटके हैं उनकी जिंदगी मुश्किल से भीग रही है और जो लोग उनके इंतजार में हैं उनके दामन आंसुओं से भीग रहे हैं.

सवाल और भी हैंः सवाल झारखंड की सरकार से है कि आखिर त्रिकूट रोपवे को इस इस तरह क्यों नहीं तैयार किया गया कि ऐसी कोई स्थिति बन जाए तो रेस्क्यू ऑपरेशन करने के लिए इतना इंतजार न करना पड़े. बड़ा सवाल यह भी है कि इस तरह की घटना भविष्य में क्या नहीं हो सकती है. यह सरकारी तंत्र हमारे तमाम दूर दृष्टि रखने वाले इंजीनियर और बनाने वाले लोगों ने सोचा क्यों नहीं.

लोगों ने तो भरोसा यह किया कि रस्सी पर चलकर उनकी जिंदगी इतनी ऊंचाई पर चली जाएगी, वहां से देखने पर उन्हें सब कुछ रोमांचक दिखेगा. लेकिन जिस तरह से चीजें अब दिख रही हैं, उसमें तो सब कुछ वीरान और खामोश सा दिख रहा है. झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने यह तो कह दिया कि सबको निकालेंगे और सभी को बचाया जायेगा. विपक्ष ने मांग कर दी जो घटना हुई है उसके निष्पक्ष जांच होनी चाहिए. लेकिन जिनकी जान सरकार की इस अनदेखी के कारण फंसी पड़ी हुई है उसका क्या होगा. यह सबसे बड़ा सवाल है.

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आधी रात की कसक और उजाले का इंतजारः जो लोग अभी भी वहां फंसे हुए हैं उन लोगों के लिए यह रात निश्चित तौर पर बहुत कसक लेकर आई है क्योंकि उनके अपने नीचे इंतजार कर रहे हैं और ऊपर जान हलक में अटकी है. सबकी उम्मीदें इसी पर टिकी हैं कि अपने आ जाएंगे, उन्हें गले लगा कर जीभर के रोएंगे. लेकिन जो लोग ऊपर फंसे हैं वे शायद ही कभी इस तरह के सरकारी दावे पर भरोसा करें. लेकिन यह रात निश्चित तौर पर बहुत भारी है और लोगों को नए उजाले का इंतजार भी है. ईटीवी भारत आप सभी लोगों से अपील करता है कि हौसला बनाए रखिए, हिम्मत बनाए रखिए क्योंकि हौसले और हिम्मत से ही मुश्किलों को जीता जा सकता है. पहाड़ जैसी समस्या तक को हराया जा सकता है और इस जीत के लिए आप सभी लोगों को तैयार रहना है.

नए सवेरे का इंतजारः जो लोग देवघर के त्रिकूट रोपवे पर फंसे हुए हैं उन्हें निश्चित तौर पर हमारी सेना निकालेगी, यह हमारी सेना पर भरोसा है. लेकिन उनको भी इस बात के लिए सलाम करना है जो लोग जिंदगी जीने के लिए अंधेरी रात में रस्सी पर लटके हुए हैं. ये जब लौटेंगे तो निश्चित तौर पर एक नई सुबह होगी, एक नया सवेरा होगा और ईटीवी भारत ऐसे तमाम वीरों को उनके हिम्मत और हौसले के लिए बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता है.

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