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सुप्रीम कोर्ट ने चार महीने की प्रेग्नेंट अविवाहित महिला को गर्भपात की इजाजत दी

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Published : Jul 22, 2022, 8:10 AM IST

Updated : Jul 22, 2022, 12:02 PM IST

Supreme Court judgement on abortion
Supreme Court judgement on abortion

सुप्रीम कोर्ट ने वीरवार को अपने एक अहम फैसले में कहा कि एक अविवाहित महिला को भी विवाहित महिला की तरह गर्भपात का अधिकार है. इसी के साथ उसने एक अविवाहिता को 24 सप्ताह (चार महीने) का गर्भ गिराने की अनुमति प्रदान कर दी. न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ पर आधारित पीठ ने कहा कि एक अविवाहित महिला को अनचाहे गर्भ का शिकार होने देना मेडिकल टर्मिनेशन आफ प्रेग्नेंसी अधिनियम के उद्देश्य और भावना के विपरीत होगा.

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एक महिला को केवल इस आधार पर अपनी गर्भपात के अवसर से वंचित नहीं किया जा सकता है कि वह अविवाहित है. इसके साथ ही कोर्ट ने महिला को गर्भपात की इजाजत दी. इसके साथ ही कोर्ट ने दिल्ली एम्स से कहा कि गर्भपात कराने से पहले ये सुनिश्चित करें कि कहीं कोई खतरा तो नहीं है. जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ ने कहा कि महिला को अवांछित गर्भधारण की अनुमति देना कानून के उद्देश्य और भावना के विपरीत होगा. पीठ ने कहा कि हमारा विचार है कि याचिकाकर्ता को अवांछित गर्भधारण की अनुमति देना संसदीय मंशा के खिलाफ होगा और मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) अधिनियम के तहत लाभों से केवल उसके अविवाहित होने के आधार पर इनकार नहीं किया जा सकता है. शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में कहा कि अधिनियम में 2021 के संशोधन के बाद, यह धारा 3 के स्पष्टीकरण में पति की बजाय पार्टनर शब्द का उपयोग करता है.

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बता दें कि 25 वर्षीय महिला ने शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था, जब दिल्ली हाईकोर्ट ने सहमति से यौन संबंध से पैदा हुई गर्भावस्था को गर्भपात की अनुमति देने से इनकार कर दिया था. तब कोर्ट ने यह कहा था कि यह भ्रूण को मारने के बराबर है. वहीं, शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में कहा कि दिल्ली हाईकोर्ट ने महिला को गर्भ गिराने से इनकार करते हुए एमटीपी नियमों के प्रावधानों पर अनुचित प्रतिबंधात्मक दृष्टिकोण लिया. शीर्ष अदालत ने एम्स दिल्ली के निदेशक को 22 जुलाई के दौरान एमटीपी अधिनियम की धारा 3(2)(डी) के प्रावधानों के तहत एक मेडिकल बोर्ड गठित करने का निर्देश दिया.

कोर्ट ने आदेश में कहा कि यदि मेडिकल बोर्ड यह निष्कर्ष निकालता है कि याचिकाकर्ता के जीवन के लिए बिना किसी खतरे के भ्रूण को गर्भपात किया जा सकता है, तो एम्स याचिका के अनुसार गर्भपात करेगा. रिपोर्ट पूरी होने के बाद अदालत को प्रस्तुत की जाएगी. पीठ ने कहा कि महिला या उसके साथी' शब्दों का इस्तेमाल अविवाहित महिला को कवर करने के इरादे को दर्शाता है, जो संविधान के अनुच्छेद 14 के अनुरूप है.

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शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में महिला की इस दलील पर गौर किया कि वह पांच भाई-बहनों में सबसे बड़ी है और उसके माता-पिता किसान हैं. यह प्रस्तुत किया गया था कि आजीविका के स्रोत के अभाव में, वह बच्चे की परवरिश और पालन-पोषण करने में असमर्थ होगी. अपनी याचिका में, महिला ने कहा कि वह अविवाहित है और उसके साथी ने उसे अंतिम क्षण (गर्भावस्था के लगभग 18 सप्ताह) में छोड़ दिया. उनके वकील ने तर्क दिया कि सामाजिक कलंक के साथ मानसिक और वित्तीय बाधाओं ने उन्हें गर्भावस्था को एक उन्नत चरण में समाप्त करने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाने के लिए मजबूर किया है.

Last Updated :Jul 22, 2022, 12:02 PM IST
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