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मजबूरी में बने खतरों के 'खिलाड़ी', जान हथेली पर रखकर नदी पार कर रहे स्कूली बच्चे

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Published : Aug 1, 2022, 10:53 AM IST

भारी बारिश से उत्तराखंड के कालाढूंगी में धापला गांव के समीप बहने वाली निहाल नदी (Kaladhungi Nihal River) इनदिनों उफान पर है. जिससे ग्रामीणों का संपर्क शहर से कट गया है. लेकिन विवशता देखिए इन परिस्थितियों में भी छात्र-छात्राएं और शिक्षक जान हथेली पर रखकर नदी पार कर रहे हैं. जहां जरा सी लापरवाही जान पर भारी पड़ सकती है.

kaladhungi Uttarakhand
जान हथेली पर रखकर नदी पार कर रहे स्कूली बच्चे

कालाढूंगी: मॉनसून के दौरान उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में भूस्‍खलन और नदी नाले उफान पर होने से लोगों का जीवन प्रभावित हो रहा है. हालात ये हैं कि जगह-जगह भूस्खलन और नदी नाले उफान पर हैं. वहीं लोग नदी में उफान के चलते लोग जान जोखिम में डालकर नदी पार करने को मजबूर हैं. गांव में पुल न होने के कारण लोगों को हर साल मॉनसून सीजन में ऐसी ही परेशानियों से रूबरू होना पड़ता है.

कुछ ऐसे ही तस्वीर उत्तराखंड के नैनीताल जिले के कालाढूंगी से 10 किलोमीटर की दूरी पर बसा धापला गांव (Kaladhungi Dhapla Village) से सामने आई है, जहां ग्रामीण जान जोखिम में डालकर उफनते नाले को पार करते दिखाई दे रहे हैं. बारिश के मौसम में थोड़ी सी लापरवाही लोगों पर भारी पड़ सकती है. वहीं बरसात के सीजन में गाड़-गदेरा रौद्र रूप धारण कर लेते हैं. वहीं भारी बारिश से धापला गांव के समीप बहने वाली निहाल नदी (Kaladhungi Nihal River) इनदिनों उफान पर है. जिससे ग्रामीणों का संपर्क शहर से कट गया है. लेकिन विवशता देखिए इन परिस्थितियों में भी छात्र-छात्राएं और शिक्षक जान हथेली पर रखकर नदी पार कर रहे हैं. जहां जरा सी लापरवाही जान पर भारी पड़ सकती है.

जान हथेली पर रखकर नदी पार कर रहे स्कूली बच्चे.
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राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय धापला के शिक्षक राजेश रावत ने बताया कि बरसात के दिनों में स्थिति काफी भयावह हो जाती है. उफनती निहाल नदी को पार करने में छात्र-छात्राओं को ग्रामीणों द्वारा मदद ली जाती है तभी वो विद्यालय तक पहुंच पाते हैं. गौर हो कि उत्तराखंड में बरसात में नदी-नाले उफान पर आ जाते हैं, जिनका जलस्तर बारिश होते ही बढ़ने लगता है. उत्तराखंड में कमोवेश ऐसे ही तस्वीर हर बरसात में देखने को मिल जाती है. कुछ ऐसे ही तस्वीरें धापला गांव से सामने आई है, जहां छात्र-छात्राें और ग्रामीण जान जोखिम में डालकर उफनते नदी को पार करते दिखाई दे रहे हैं. गांव में पुल न होने के कारण लोगों को हर साल मॉनसून सीजन में परेशानियों का सामना करना पड़ता है, जबकि ग्रामीण लंबे समय से पुल की मांग कर रहे हैं. लेकिन विडंबना ये है कि इस ओर शासन-प्रशासन की नजर नहीं जा रही है?

बता दें कि कुमाऊं के अलग-अलग क्षेत्रों में बीते दिनों से हो रही बरसात लोगों के लिए आफत बनी हुई है. भूस्खलन के बाद सड़कों पर मलबा आने से कुमाऊं की करीब 55 सड़कें बंद हैं. पिथौरागढ़ जनपद में रुक-रुक कर हो रही बरसात से सरकारी और निजी संपत्ति को भी भारी नुकसान पहुंचा है. धारचूला क्षेत्र में आधा दर्जन आवासीय भवनों को क्षति पहुंची है. वहीं बीते दिन कुमाऊं कमिश्नर दीपक रावत ने सभी जिलों के डीएम को सड़कों को खोलने और आपदा प्रभावित क्षेत्रों तक राहत पहुंचाने के निर्देश दिए हैं.
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अपर आयुक्त जीवन सिंह नगन्याल ने बताया कि नैनीताल जिले में 14 मार्ग बंद हैं, जबकि अल्मोड़ा में 5 पिथौरागढ़ में 16, बागेश्वर में 13 और चंपावत जनपद में 7 मार्ग बंद है, जिसमें 49 ग्रामीण मार्ग शामिल है, 3 बॉर्डर मार्ग बंद हैं. इसके अलावा सबसे ज्यादा नुकसान पिथौरागढ़ जनपद के धारचूला में हुआ है.जहां पेयजल और विद्युत लाइनें भी क्षतिग्रस्त हुई हैं, जबकि डीडीहाट में वज्रपात के चलते विद्युत विभाग का 25 केवी का ट्रांसफार्मर भी क्षतिग्रस्त हुआ है.

भूस्खलन के चलते सबसे ज्यादा नुकसान नैनीताल जनपद को पहुंचा है, जहां नैनीताल-भवाली राज्य मार्ग पर मलबा आने से मार्ग पूरी तरह से बाधित हो चुका है, जिसको खोलने के लिए 10 दिनों से अधिक समय लग सकता है. इस मार्ग को खोलने के लिए कुमाऊं कमिश्नर ने अधिकारियों को निर्देशित किया है.

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