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राजकोषीय मजबूती के बावजूद राज्यों का कर्ज ज्यादा रहने का अनुमान : इंडिया रेटिंग्स

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Published : Apr 23, 2022, 12:39 PM IST

राजकोषीय घाटा
राजकोषीय घाटा

भारत के 20 राज्यों के नवीनतम बजट आंकड़ों के अनुसार राजकोषीय घाटा, जो मूल रूप से उनके सकल व्यय और सकल राजस्व संग्रह के बीच का अंतर है, चालू वित्त वर्ष में उनके बजट अनुमान से अधिक रहने की उम्मीद है. ऐसा केंद्र और राज्य सरकारों के वित्त का विश्लेषण करने वाली फिच ग्रुप रेटिंग एजेंसी - इंडिया रेटिंग्स का अनुमान है. विस्तृत जानकारी के लिए पढ़ें ईटीवी भारत ब्यूरो रिपोर्ट..

नई दिल्ली: भारत के वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद के 80 प्रतिशत से अधिक का प्रतिनिधित्व करने वाले 20 राज्य हैं. जिनके नवीनतम बजट आंकड़ों के अनुसार राजकोषीय घाटा, जो मूल रूप से उनके सकल व्यय और सकल राजस्व संग्रह के बीच का अंतर है, चालू वित्त वर्ष में उनके बजट अनुमान से अधिक रहने की उम्मीद है. केंद्र और राज्य सरकारों के वित्त का विश्लेषण करने वाली फिच ग्रुप रेटिंग एजेंसी - इंडिया रेटिंग्स का कहना है कि चालू वित्त वर्ष में 20 राज्यों का कुल राजकोषीय घाटा जीएसडीपी का 3.36 प्रतिशत रहेगा जबकि बजट में प्रस्तावित 3.31% है. केंद्र और राज्य दोनों सरकारों द्वारा ब्याज दरों और रिकॉर्ड उधार में वृद्धि के साथ, चालू वित्त वर्ष में सरकार द्वारा ब्याज में बढ़ोतरी किए जाने की संभावना ज्यादा है. चालू वित्त वर्ष 2022-23 में 20 राज्यों की कुल शुद्ध बाजार उधारी रिकॉर्ड 5.72 लाख करोड़ रुपये रहने का अनुमान है. इंडिया रेटिंग्स का कहना है कि बजटीय राजकोषीय घाटे में वृद्धि के बाद भी यह 15वें वित्त आयोग द्वारा निर्धारित सीमा के अंदर ही रहेगा. यहां तक कि केंद्र सरकार भी सहमत है कि संबंधित राज्य के जीएसडीपी का 4% और कुछ शर्तों के अधीन जीएसडीपी का अतिरिक्त 0.5% हो सकता है. उपलब्ध आंकड़ों के विश्लेषण के अनुसार पांच राज्यों अर्थात् हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, मेघालय, राजस्थान और तेलंगाना ने अपने राजकोषीय घाटे को जीएसडीपी के 4% से अधिक या उसके बराबर रखा है.

औसत राज्य सकल घरेलू उत्पाद लक्ष्य प्राप्त करने योग्य : हालांकि विभिन्न राज्यों ने अपने वित्त वर्ष 2022-23 के बजट अनुमान में सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) में मामूली वृद्धि का लक्ष्य रखा है. जबकि पिछले वित्त वर्ष में 20 राज्यों के लिए औसत संयुक्त जीएसडीपी वृद्धि 11.75% अनुमानित था परंतु संशोधित अनुमानों के अनुसार यह 13.58% था. हालांकि वित्तीय वर्ष 2020-21 की तुलना में 2.48% ज्यादा था जब देश तीन माह के लिए पूर्ण लॉकडाउन में था और वहीं वित्त वर्ष 2019-20 में 9.48% था. एजेंसी की गणना के अनुसार उच्च राजकोषीय घाटे के बावजूद अनुमानित जीएसडीपी वृद्धि ज्यादा मुश्किल नहीं प्रतीत होती है. एजेंसी इन 20 राज्यों में 9% -15% की वृद्धि को मामूली जीएसडीपी वृद्धि दर मानती है. इस आधार पर वित्त वर्ष 2022-23 में इन 20 राज्यों की अनुमानित जीएसडीपी वृद्धि 11.55% रहने का अनुमान है.

भारत की नॉमिनल जीडीपी ग्रोथ 13% से ऊपर होगी: इंडिया रेटिंग्स के अनुसार वित्त वर्ष 2023 में भारत की जीडीपी वृद्धि 13.2% से बढ़कर 13.6% होगी परंतु इन 20 राज्यों का कुल राजस्व खाता जीएसडीपी के 1% के घाटे में रहने की उम्मीद है. यह जीएसडीपी के बजटीय 0.8 फीसदी (1.7 लाख करोड़ रुपये) से अधिक है. हालांकि 10 राज्यों ने अपने राजस्व खाते को चालू वित्त वर्ष में अधिशेष में रहने का अनुमान लगाया है क्योंकि उनकी अर्थव्यवस्थाएं कोविड-19 वैश्विक महामारी के प्रभाव से उबर रही हैं. एजेंसी का अनुमान है कि 20 में से आठ राज्यों में उनके राजस्व में साल 2023 में अधिशेष देखा जा सकता है. 20 राज्यों का सकल ऋण जीएसडीपी के अनुपात में चालू वित्त वर्ष में 27.23% अनुमानित है जो कि पिछले वित्तीय वर्ष में 26.53 फीसदी था. यह महामारी से पहले की तीन साल की अवधि यानी वित्त वर्ष 2018-21 के दौरान औसत ऋण और जीएसडीपी अनुपात 25.5% से बहुत अधिक है. एजेंसी का अनुमान है कि चालू वित्त वर्ष में इसके 27.23 फीसदी के समान रहने की संभावना है.

कुल राज्य ऋण सीमा के साथ रहेगा: हालांकि वित्त वर्ष 2018-21 की अवधि की तुलना में चालू वित्त वर्ष 2023 में औसत-ऋण-से-जीएसडीपी अनुपात लगभग दो प्रतिशत अधिक होगा. फिर भी यह 31.3% के स्तर 15वे वित्त आयोग की अनशंसा की भीतर होगा. असम को छोड़कर 20 राज्यों में से 19 के वित्त वर्ष 22 (संशोधित अनुमान) और वित्त वर्ष 23 (बजट अनुमान) के आंकड़े उपलब्ध हैं. उनमें केवल छह राज्यों अर्थात् छत्तीसगढ़, गुजरात, हरियाणा, झारखंड, मिजोरम और पश्चिम बंगाल ने अपने बजट में मॉडरेशन का बजट रखा है. वित्त वर्ष 2021-22 के संशोधित अनुमानों की तुलना में वित्त वर्ष 2022-23 के बजट अनुमानों में ऋण-से-सकल घरेलू उत्पाद का स्तर. यद्यपि राज्य के सकल घरेलू उत्पाद के स्तर पर कुल ऋण वित्त आयोग द्वारा निर्धारित सीमा के भीतर रहने की उम्मीद है. हालांकि विभिन्न राज्यों के बीच गहरी असमानताएं हैं.

राज्यों को उनके ऋण स्तर के अनुसार चार श्रेणियों में बांटा जा सकता है- पहले समूह में गुजरात और महाराष्ट्र जैसे राज्य शामिल हैं, जिन्होंने महामारी (वित्त वर्ष 2019-20) से पहले अपने श्रृण को 20% से कम रखा था और वित्त वर्ष 2023 में उस स्तर को बनाए रखने में सक्षम होंगे. साथ ही वित्त वर्ष 2020-21 से 2022-23 में अपने राजकोषीय घाटे को राज्य सकल घरेलू उत्पाद के 3% से कम करने में सफल रहेंगे.

दूसरे समूह में कर्नाटक, तेलंगाना, तमिलनाडु, हरियाणा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और असम जैसे राज्य शामिल हैं, जिनका वित्त वर्ष 2019-20 में औसत श्रृण राज्य जीएसडीपी का 22.5% था जो कि 2022-23 में बढ़कर लगभग 27% रहने का अनुमान है. बजट अनुमान के अनुसार 2021-23 के दौरान राज्य के सकल घरेलू उत्पाद का औसत राजकोषीय घाटा लगभग 4.5% है. इन राज्यों में मध्य प्रदेश एक अपवाद है, जिसका वित्त वर्ष 2022-23 में अंतर बढ़कर 33.3% हो जाएगा जबकि वित्त वर्ष 2020-21 में 22.6% था. तीसरे समूह में बिहार, केरल, झारखंड, मेघालय, मिजोरम, आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्य शामिल हैं, जिनका पूर्व-महामारी की अवधि में लगभग 30% का उधार था और इस वित्त वर्ष अर्थात 2022-23 में बजट अनुमान के लगभग 35% का उधारी रहने की उम्मीद है.

हालांकि इस समूह में राज्यों के लिए औसत राजकोषीय घाटा-से-राज्य-जीडीपी अनुपात वित्त वर्ष 2021-वित्त वर्ष 2023 के बजट अनुमानों में 2.9%-6.5% की सीमा में अलग है. इंडिया रेटिंग्स के अनुसार, बिहार को वित्त वर्ष 2019-20 में 30.9% से चालू वित्तीय (बजट अनुमान) में अपने ऋण-से-जीएसडीपी अनुपात में 38.7% की वृद्धि की उम्मीद है, जो कि पिछले दो वित्तीय वर्षों में बजट अनुमानों के अनुसार उच्च राजकोषीय घाटे के कारण औसत 6.5 % था. अंतिम समूह में राजस्थान, पश्चिम बंगाल, हिमाचल प्रदेश और नागालैंड जैसे राज्य शामिल हैं, जिन्होंने वित्त वर्ष 2019-20 में लगभग 35% के उच्च अनुपात के साथ महामारी की अवधि शुरू की, जो चालू वित्तीय वर्ष में भी जारी रहने की उम्मीद है. दिलचस्प बात यह है कि पश्चिम बंगाल जहां ऋण-से-जीएसडीपी को वित्त वर्ष 2019-20 में 35.9% था वहां चालू वित्त वर्ष में 34.2% पर रहने की उम्मीद है.

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